राजएक्सप्रेस। राजनीतिक दल विकास की बातें और दावे तो करते हैं पर चुनाव करीब आते ही एक दूसरे पर आरोप लगाने का सिलसिला तेज हो जाता है। कई बार तो यह मर्यादाएं तोड़ता नजर आता है। प्रदेश की सियासत में करप्शन को लेकर सियासत शुरू हो गई है। करप्टनाथ, कमीशन नाथ जैसे जुमले गढ़कर भ्रष्टाचार के आरोप-प्रत्यारोप का खेल खेला जा रहा है। भ्रष्टाचार के इन आरोपों के बीच विकास की बातें फिर पीछे चली गईं हैं।
वादों और करप्शन के आरोपों का नया खेल शुरू हो गया है। राजनीतिक शुचिता के नजरिए से यह भले ही उचित न हो पर जंग में जीत के लिए सब जायज की तर्ज पर कमर के नीचे भी प्रहार शुरू हो गए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और उसके चंद घंटों बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर राजधानी भोपाल में लगे पोस्टरों ने प्रदेश का राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है। दोनों दलों के प्रदेश अध्यक्ष इन पोस्टरों को लेकर एक दूसरे से सवाल खड़े कर चुके हैं पर दिलचस्प यह भी है कि दोनों दल इस बात को नकार रहे हैं कि इन पोस्टरों में उनके पार्टी के कार्यकर्ताओं की कोई भूमिका है।
सवाल यह है कि अगर यह सब राजनीतिक कार्यकर्ताओं का काम नहीं है तो कौन यह सब कर रहा है। दोनों दल एक दूसरे को करप्ट बता रहे हैं। भारतीय लोकतंत्र में करप्शन को नापने का पैमाना अब तक नहीं बना है पर जब राजनेता राजनीति को सेवा की बजाए अपना प्रोफेशन बताने लगें तब वहां करप्शन को राजनीति का छिपा हुआ अंग ही माना जाएगा। चुनाव करीब आते ही राजनीति में एक दूसरे के खिलाफ भ्रष्टचार के आरोप तो खूब लगते हैं पर जब इन्हें उजागर करने का समय आता है तब चुप्पी साध ली जाती थी।
पिछले विधानसभा में भाजपा पर भ्रष्टाचार के लंबे चौड़े आरोप लगाने वाली कमलनाथ सरकार ने सत्ता में आने के बाद किसी भी भ्रष्टाचार को तथ्य सहित उजागर नहीं किया। यही हाल भाजपा का है, वह कमलनाथ के 15 महीनों की सरकार के भ्रष्टाचार का गुणगान तो खूब करती है पर एक भी मामले में कोई जांच उसने कराई हो, ऐसा अब तक सामने नहीं आया। केस दर्ज होना तो दूर की बात है। राजनीति अब कामों से ज्यादा जुमलों की होती जा रही है। लोक लुभावन वादे और मुफ्त बांटने की योजनाओं को हर राजनीतिक दल चुनाव जीतने का औजार बनाता जा रहा है। इसके दूरगामी परिणाम क्या होंगे इस ओर किसी का ध्यान नहीं है। करप्शननाथ और घोटालेबाज शीर्षक से शुरू हुआ पोस्टर वार तो चुनाव प्रचार की शुरूआत है।
राजनीतिक कटुता लगातार बढ़ रही है। अभी ऐसे और कई पोस्टर और वीडियो सामने आने की संभावना बढ़ गई है। मध्यप्रदेश की सियासत में राजनीतिक सामंजस्य का वातावरण रहता आया है और एक दूसरे पर निजी आक्षेप, आरोप कम ही लगाए जाते रहे हैं पर इस बार शुरूआती दौर में ही सियासी वातावरण में जो तपिश दिखाई दे रही है वह आने वाले समय में और बढ़ेगी, यह तय है। राजनीतिक दलों को ही इस पर लगाम लगाने के लिए तरीके खोजने होंगे।
सभी दलों की एक जिम्मेदारी होती है कि राजनीति में सुचिता बनाए रखें ताकि मध्यप्रदेश की जो अपनी अलग छबि है, वह बनी रहे। राजनीति से अलग हटकर मध्यप्रदेश में सभी दलों के नेताओ में आपसी सामंजस्य बहुत अच्छा है। हम उम्मीद करते है कि यह आगे भी बना रहे। राजनीतिक लड़ाई मुद्दों पर होनी चाहिए न कि एक दूसरे पर व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोप की...।
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