राज एक्सप्रेस। छतरपुर में रासायनिक खेती से बर्बाद होती भारतीय कृषि व्यवस्था को वापिस पटरी पर लाने के लिए जैविक खेती ही वरदान साबित हो सकती है। यह सिद्ध किया है केरल अंकल यानी केएन सोमन ने। उन्होंने बुंदेलखंड की बंजर जमीन पर भी ऐसे पौधों, फलों और सब्जियों की पैदावार शुरु की है जो यहां कि मिट्टी और जलवायु के लिए अनुकूल नहीं हैं फिर भी जैविक खेती के माध्यम से इन पौधों की पैदावार किसानों के लिए सफलता के नए द्वार खोल रही है।
जैविक खेती से यह हुआ चमत्कार
छतरपुर के गांधी आश्रम में, जमीन पर इन दिनों अनानास, साबूदाने का निर्माण करने वाले पौधे टपियाको और लाल भिंडी जैसी सब्जियां उगाई जा रही हैं।
केरल अंकल ने कर दिया कमाल मूलत:
केरल के निवासी केएन सोमन वर्षों से मध्यप्रदेश के अलग-अलग जिलों में स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी के तौर पर काम करते रहे। 27 सालों की अपनी शासकीय सेवा के दौरान वे स्वास्थ्य विभाग में बतौर लैब टेक्नीशियन काम करतेहुए जैविक खेती से जुड़े वर्ष 2007 से 2012 तक छतरपुर में सेवाएं दीं और इसके बाद रिटायर होकर अपना जीवन जैविक खेती को समर्पित कर दिया। गांधी आश्रम में लोग उन्हें प्यार से केरल अंकल के नाम से पहचानते हैं।
केएन सोमन बताते हैं कि :
उन्होंने गांधी आश्रम की जमीन को अपनी प्रयोगशाला के रूप में इस्तेमाल किया और देश की अलग-अलग जलवायु में होने वाले कई पौधों को यहां लाकर उगाने की कोशिश की। इस कोशिश में जैविक खेती के सहारे वे कामयाब हुए। आज गांधी आश्रम की जमीन पर वे केरल में पाया जाने वाले टपियाको की फसल खड़ी कर चुके हैं। टपियाको एक तरह का ऊंचा पेड़ होता है। इसकी जड़ में आलू से बड़े आकार का एक फल निकलता है जिसमें भरपूर मात्रा में कार्बोहाइड्रेट और स्टार्च पाया जाता है। इसी फल से साबूदाने का निर्माण होता है और इसकी स्वादिष्ट चिप्स भी बना सकते हैं। इसी तरह उन्होंने यहां 11 सेंटीमीटर की लालभिंडी उगाई है।
मुख्यत: गर्मियों में पैदा होने वाली यह लाल भिंडी मधुमेह रोगियों के लिए एक शानदार आहार है। उन्होंने यहां अनानास के पौधे भी उगाने में सफलता हासिल की है। इन सब्जियों को गाय के गोबर से बनी खाद और गौमूत्र से बने कीटनाशकों के उपयोग से उगाया गया है।
छत पर बनाएं किचिन गार्डन, ग्रोबैग में उगेगी पूरे परिवार की सब्जी :
केएन सोमन बताते हैं कि रासायनिक खाद से निर्मित सब्जियां शरीर के लिए बेहद हानिकारक हैं। जैविक खेती के माध्यम से तमाम सब्जियों को अपने घर पर ही उगाया जा सकता है और इसका इस्तेमाल पूरे परिवार के लिए लाभकारी होगा।
बोरियों से बने ग्रो बैग दिखाते हुए केएन सोमन ने कहा कि इस तरह के बैग, पुरानी बाल्टियां, तसले या फाल्तू पड़े डिब्बे, पुराने ट्री गार्ड किचिनगार्ड के लिए उपयोगी संसाधन हैं। इसमें मिट्टी और खाद भरके हम छत पर ही पूरे परिवार के लिए सब्जी उगा सकते हैं। गांधी आश्रम में रहने वाले कृष्णकांत मिश्रा ने बताया कि गांधी आश्रम की कोशिश है कि लोग यहां आकर जैविक खेती का प्रशिक्षण लें और अपने घर पर ही जैविक सब्जियां उगाएं।
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