नर्मदा ग्रीन बेल्ट में बहुमंजिला इमारत बनकर तैयार Prafulla Tiwari
मध्य प्रदेश

नर्मदा ग्रीन बेल्ट में बहुमंजिला इमारत बनकर तैयार, शिकायतों पर नहीं हुई कार्यवाही

नर्मदापुरम, मध्यप्रदेश : कलेक्टर, तहसीलदार व नपा सीएमओ के नोटिस की अनदेखी, अग्रवाल के रसूख के सामने बोनी पड़ रही व्यवस्था।

Prafulla Tiwari

नर्मदापुरम, मध्यप्रदेश। नर्मदा ग्रीन बेल्ट के 500 मीटर दायरे के अंदर ट्रस्ट की जमीन को खरीदकर बिना अनुमति निर्माण कार्य कराए जाने का मामला अब हाईकोट पहुंच गया है। माननीय न्यायालय ने याचिका स्वीकार करते हुए प्रमुख सचिव राजस्व मप्र शासन, कलेक्टर, नर्मदापुरम, तहसीलदार नर्मदापुरम, सीएमओ नगरपालिका, नर्मदापुरम एवं मोहित अग्रवाल पुत्र जगमोहन अग्रवाल वार्ड 1 कोरी घाट नर्मदापुरम को नोटिस भी जारी किया गया है। बता दें कि माननीय उच्च न्यायालय द्वारा नर्मदा के दोनों ओर 500 मीटर के दायरे को ग्रीन बेल्ट घोषित करते हुए किसी भी प्रकार के निर्माण पर प्रतिबंध लगाया है। लेकिन नर्मदापुरम में माँ नर्मदा के तट कोरी घाट पर नर्मदा से महज 50 मीटर की दूरी पर मोहित अग्रवाल द्वारा आलीशान बहु मंजिला इमारत खड़ी कर दी गई है। जबकि उक्त इमारत ट्रस्ट की जमीन पर बिना किसी अनुमति के बनाई गई है। इस मामले को लेकर कुछ जागरूक लोगों ने पूर्व में उक्त निर्माण शुरू होते ही कलेक्टर, तहसीलदार और नगरपालिका में शिकायत की थी। लेकिन अधिकारियों द्वारा इस गंभीर समस्याओं को अनदेखा करते हुए पूरी इमारत खड़ी करवा दी। जिसे हटाना अब स्थानीय प्रशासन के बस में नहीं हैं। जिसको लेकर शिकायतकर्ता जगदीश प्रसाद ने माननीय उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है।

बता दें कि हाईकोर्ट के प्रतिबंध के बावजूद नर्मदा किनारे मोहित अग्रवाल द्वारा नियमों को ताक पर रखकर और अधिकारियों से मिली भगत कर पूरी इमारत तैयार कर ली है। इस मामले को लेकर पूर्व में कलेक्टर नीरज कुमार सिंह के निर्देश पर तत्कालीन मुख्य नगर पालिका अधिकारी ने नोटिस भी जारी किए थे। लेकिन निर्माणकर्ता पर इसका कोई असर नहीं हुआ। नोटिस जारी होने के बाद भी निर्माण कार्य जारी रहा। और अब भवन को किराए से देने की भी तैयारी शुरू हो गई है। बता दें कि मोहित अग्रवाल को अधिकारियों का संरक्षण प्राप्त है। जिसकी वजह से वह जारी नोटिस के बाद भी हटधर्मी कर निर्माण कार्य करा लिया। जबकि भवन निर्माण नर्मदा ग्रीन बेल्ट के 100 मीटर दायरे के अंदर किया है वह भी किसी समक्ष अनुमति लिए बिना। लेकिन पूरे मामले का सबसे खास पहलू यह भी है कि आखिर जिस जमीन पर भवन बनाया गया है, वह अग्रवाल तक कैसे पहुंची। क्योंकि उक्त जमीन ट्रस्ट की है और किसी भी नियम के तहत ट्रस्ट की जमीन को खरीदा अथवा बेचा नहीं जा सकता है। ऐसी स्थिति में जांच का विषय है कि ट्रस्ट की जमीन को किस ने बेचा और खरीदा। दोषियों पर कार्रवाई की जाना चाहिए थी, लेकिन सांठगांठ और मिलीभगत से अब निर्माण कार्य पूर्ण हो चुका है और उसका व्यवसायिक उपयोग भी लगभग शुरू ही हो चुका है।

हाईकोर्ट के आदेश की अवहेलना :

नर्मदा के दोनों किनारों पर हाईकोर्ट ने किसी भी प्रकार के नये निर्माण पर प्रतिबंध लगाया है। नर्मदा के किनारे 500 मीटर दायरे में निर्माण करना सख्त मना है। यदि कोई व्यक्ति भवन या मकान का निर्माण करता है तो क्षेत्र के एसडीएम, तहसीलदार, नगरपालिका को ऐसे निर्माण पर सख्ती से रोककर निर्माण कार्य रुकवा सकते हैं और जरूरत पडऩे पर संबंधित के विरुद्ध कठोर कार्रवाई भी कर सकते हैं। लेकिन समय पर शिकायतों पर कार्यवाही न होने और अधिकारियों की मिली भगत के चलते स्थानीय कोरी घाट पर मोहित अग्रवाल द्वारा हाईकोर्ट के आदेशों की अव्हेलना करते हुए आलीशान भवन का निर्माण कर लिया है।

मकान ढहने से हानि हुई तो दोषी कौन?

कोरी घाट निवासी जगदीश प्रसाद का कहना है कि निर्माण की वजह से उनके और आसपास के मकानों में बड़ी-बड़ी दरारे आ गई है। जिसकी वजह से उनके मकान कमजोर हो गए और छतिग्रस्त हो सकते हैं और ऐसे में किसी भी दिन मकान ढह सकता है। यदि मकान के ढहने की वजह से जान माल की हानी होती है तो इसकी पूरी जवाबदारी किसकी होगी।

ट्रस्ट की जमीन की खरीदने वालों की जांच हो :

मोहित अग्रवाल ने जिस जमीन पर भवन निर्माण कराया है वह जमीन सालों पहले एक वृद्धा ने वारिस नहीं होने की वजह से ट्रस्ट को दान कर दी थी। दान की गई जमीन को साठ-गाठ कर बेच दिया गया। जबकि नियामानुसार दान दी गई जमीनों को कोई भी ट्रस्ट कभी भी नहीं बेच सकती। लेकिन इस जमीन को ट्रस्ट के लोगों ने नियम विरुद्ध तरिके से किसी चौकसे को बेच दिया। चौकसे ने जमीन को मोहित अग्रवाल को बेच दी, इस मामले में भी जांच होकर कार्यवाही की जाना चाहिए।

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