नर्मदापुरम, मध्यप्रदेश। सरकारी अस्पताल में मरीज यह सोचकर जाता है कि बिना किसी खर्चे अथवा नाम मात्र खर्चे पर उसका बेहतर इलाज हो जाएगा। सरकार ने भी अपनी तरफ से मरीजों की जांच इलाज और दवाओं की व्यवस्था कर रखी है। इसके बावजूद जिला अस्पताल में आने वाले मरीज शहर के साथ-साथ भोपाल और नागपुर के निजी अस्पतालों में जाने के लिए मजबूर है। इसका एकमात्र कारण यह है कि जिला अस्पताल में रेफर करने और करवाने वालों का एक रैकेट सक्रिय है, जो सरकारी अस्पताल में आने वाले मरीजों को बरगला कर निजी अस्पताल में भेजने का काम करते हैं। यही कारण है कि अस्पताल के हर वार्ड में दलाल घूमते रहते हैं और मरीज के परिजनों को निजी अस्पताल जाने के लिये प्रोत्साहित करते रहते हैं। जैसे ही किसी मरीज के परिजन हामी भरते हैं, तो मिलीभगत के चलते अस्पताल के डॉक्टर तत्काल उसे रेफर कर देते हैं और मरीज को दलालों द्वारा निजी अस्पताल भेज दिया जाता है।
जिला अस्पताल में मरीजों का इलाज तो किया जाता है, लेकिन इसके बाद भी कुछ दलाल अस्पताल के मरीजों से संपर्क कर और उनके परिजनों को बरगलाते हैं और कहते हैं कि सरकारी अस्पताल में इलाज सही नहीं हो पाएगा, इसके लिए तुम्हें इंदौर, भोपाल या नागपुर में इलाज कराना चाहिये, ऐसा कहकर मरीजों को मोटिवेट कर दिया जाता है और उक्त मरीज बाहर खड़ी प्राइवेट गाड़ियों के एजेंट जोकि मरीजों को भोपाल, इंदौर के निजी अस्पताल में भर्ती करवा देते हैं। जिला अस्पताल के अंदर बड़ा खेल चल रहा है, इसमें अस्पताल प्रबंधन के प्रबंधक से लेकर डॉक्टर, कंपाउंडर, वार्डबॉय जैसे कई लोग लगे हुए। अधिकांश मरीजों को भोपाल में भर्ती करा दिया जाता है, ऐसे निजी नर्सिंग होम में गरीब लोगों से जमकर पैसा लूटते हैं या फिर मरीज खत्म हो जाता है।
जिला चिकित्सालय में बाहर खड़ी प्राइवेट लग्जरी कारों के दलाल उन्हें जिला अस्पताल से लेकर भोपाल निजी अस्पताल में भर्ती करा रहे हैं, इन सब का रोजाना और हफ्ता बना हुआ है। एक निजी एंबुलेंस जिसमें सब सुविधा रहती है, वेंटीलेटर आदि तक उक्त वाहन में रहता है और उन्हें इस वाहन में बैठाकर निजी अस्पताल में भर्ती कर दिया जाता है। जबकि अस्पताल परिसर के अंदर प्राइवेट वाहन खड़े करना पूरी तरह प्रतिबंधित है, परंतु अस्पताल प्रबंधन की मिलीभगत से यह सब चल रहा है। 24 घंटे अस्पताल परिसर में प्राइवेट एंबुलेंस खड़ी रहती हैं। इन एंबुलेंस के संचालकों के घरों में लगभग हर कमरे में एक-एक ए.सी. लगी हुई है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि एक निजी वाहन चलाने वाले के परिवार और मकानों में इस प्रकार की सुविधा है और यह कहां से आ रही है। यह सब सरकारी अस्पताल की देन ही है, जो गरीबों से अनाप-शनाप पैसा लेकर उन्हें एंबुलेंस में बैठा कर भोपाल नागपुर भर्ती कर रहे हैं और कमीशन ले रहे हैं। पूरा काम सेटिंग से चल रहा है। इसके साथ ही यदि किसी व्यक्ति को ब्लड की जरूरत हो, वहां भी तत्काल आपको मुहैया करा दिया जायेगा। हां लेकिन आपको इसके लिए दलालों को पैसा देना पड़ेगा और 1 घंटे के अंदर कोई भी ग्रुप का ब्लड आपको प्राप्त हो जाएगा। इस पूरे खेल में सरकारी अस्पताल प्रबंधन से लेकर स्टाफ तक मिला हुआ है। यह गोरखधंधा वर्षों से चल रहा है। पूरी सेटिंग के तहत यह खेल चल रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि अस्पताल परिसर के अंदर सीसीटीवी कैमरे भी लगे हुए हैं, लेकिन उन्हें किस तरीके से बंद करना है, चालू करना है, इससे भी उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता या कैमरे में हो या कैमरा बंद हो इसके बाद भी मरीजों के साथ किस प्रकार से खिलवाड़ चल रहा है, इसका सीधा उदाहरण जिला चिकित्सालय में देखा जा सकता है।
अस्पताल की कमियां बताकर डराए जाते हैं मरीज और उनके परिजन :
जिला अस्पताल के हर वार्ड में दलाल घूमते हैं। जैसे ही ओपीडी में भर्ती होने के लिए कोई मरीज आता है तो निजी अस्पतालों के दलाल तत्काल हाल-चाल और बीमारी की हिस्ट्री जानने के बहाने मरीज और उनके परिजनों से सहानुभूति जताते हैं और फिर अस्पताल में अव्यवस्था, कमियां और खामियां बताकर उन्हें निजी अस्पताल में जाने के लिए मोटिवेट करते हैं। यह दलाल इस तरीके से पेश आते हैं, मानो ये मरीज के बहुत बड़े हितेषी हो और उन्हें अस्पताल तथा मेडिकल के बारे में बहुत ज्यादा नालेज है। यही कारण है कि बीमारी से जूझ रहे मरीज और उनको भर्ती करने के लिए लाए परिजन इनकी बातों में आ जाते हैं और बेहतर इलाज तथा मरीज के अति शीघ्र स्वस्थ होने की उम्मीद में इनकी बात मान कर खुद भी डाक्टरों से मरीज को रेफर करने के लिए कहते हैं। दरअसल निजी अस्पतालों में जाने के लिए मरीजों और परिजनों को मोटिवेट करने वाले यह मेडिकल विशेषज्ञ नहीं, बल्कि निजी अस्पतालों के दलाल है, जिन्हें प्राइवेट अस्पतालों में मरीज पहुंचाने के बदले खासा कमीशन मिलता है। यही कारण है कि यह दलाल ओपीडी से लेकर सभी वार्डों में मंडराते रहते हैं। इतना ही नहीं कुछ दलाल तो अस्पताल के इमरजेंसी विभाग में बारी-बारी से 24 घंटे बैठे रहते हैं, जैसे ही कोई गंभीर मरीज अथवा एक्सीडेंटल केस आया, तो उन्हें सरकारी अस्पताल की कमियां बता कर सीधे प्राइवेट अस्पताल में जाने के लिए मोटिवेट कर दिया जाता है।
इनका कहना :
गंभीर मरीजों को ही रेफर किया जाता है, जिला अस्पताल में निजी एम्बूलेंस खड़ी होने की जानकारी नहीं हैं। यदि निजी एम्बूलेंस खड़ी हो रहीं हैं, तो इसकी जानकारी लेता हूं।डॉ. दिनेश दहलवार, प्रभारी सीएमएचओ
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