इंदौर। प्रदेश के सभी 13 मेडिकल कॉलेजों के साथ एमजीएम मेडिकल कॉलेज से संबद्ध एमवायएच की भी पैथोलाजी, माइक्रोबायोलाजी और बायोकेमेस्ट्री जांचें निजी एजेंसी को सौंपी जा रही हैं। इसकी पूरी तैयारी हो चुकी है और माना जा रह है कि पीपीपी माडल को एक माह के अंदर लागू कर दिया जाएगा। मेडिकल कॉलेजों की लैब को निजी हाथों में सौंपे जाने का अंदर ही अंदर विरोध भी शुरू हो गया है।
सूत्रों से जानकारी के मुताबिक जिन जांचों के लिए वर्तमान में एमवायएच में साढ़े चार करोड़ का बजट है, उसके लिए निजी कंपनी को करीब 19 करोड़ रुपए चुकाने की बात सामने आई है। यह तो केवल एक मेडिकल कॉलेज और अस्पताल की बात है, अगर पूरे प्रदेश की बात की जाए, तो यह एक बहुत बड़ी राशि है। वहीं एमजीएम मेडिकल कॉलेज के डीन डा. संजय दीक्षित का कहन है कि कितनी राशि कंपनी को दी जा रही है, इसकी जानकारी तो हमें भी नहीं मालूम है। केवल किट्स, रिजेंट और केमिकल के लिए ही पीपीपी के तहत अनुबंध हुआ है।
लैब टेक्निशियन, लैब अटेंडेंट अस्पताल के...
जानकारी के मुताबिक निजी कंपनी के सुपरवाइयर, कम्प्यूटर ऑपरेटर और जो मशीन अस्पताल में नहीं है, वो लगाएगी। इसके राथ रीजेंट और कैमिकल कंपनी का होगा। बाकी सभी पैरामेडिकल स्टॉफ जैसे लैब टेक्निशियन, लैब अटेंडेंट, नर्सिंग स्टाफ के साथ डॉक्टर और जगह के साथ लाइट, पानी और जगह अस्पताल की होगी। इतना ही नहीं रिपोर्टिंग का काम भी सरकारी स्टाफ करेगा। इस पर लगभग सभी कुछ अस्पताल का होने के बाद भी इतनी अधिक राशि निजी कंपनी को क्यों दी जा रही है। 21 प्रमुख जांचे वर्तमान में भी एमवायएच में फ्री होती थीं और कंपनी भी फ्री में करेगी। अंतर यह होगा कि जांच कम्प्यूटर प्रिंटेट होगी।
पूर्व में हो चुका है विरोध, वर्तमान में चुप्पी
चिकित्सा शिक्षा विभाग इतनी ज्यादा राशि निजी कंपनियों को क्यों दे रहा है? यह सवाल तो बड़ा है और इसको लेकर विभाग में जोर-शोर से चर्चाएं भी चल रही हैं। दबी जुबान में अस्पताल प्रबंधन ही इसका विरोध कर रहा है, लेकिन विरोध में कोई भी सामने नहीं आ रहा है, जबकि कुछ वर्ष पूर्व इसी तरह का मामला सामने आया था और एमवायएच की लैब के साथ ही अन्य जांचें अरविंदो मेडिकल कॉलेज को देने के लिए एमओयू साइन होने वाला था। इसके खिलाफ मेडिकल टीचर एसोसिएन ने मोर्चा खोल दिया था, तो ऐसा नहीं हो पाया। वर्तमान में सभी चुप्पी साधे बैठे हैं। एमटीए, इंदौर ब्रांच के अध्यक्ष डॉ. अरविंद घनघोरिया ने कहा कि वो वर्तमान में समर वेकेशन पर हैं, उन्हें इस मामले की पूरी जानकारी नहीं है। वहीं सचिव डॉ. अशोक ठाकुर ने कहा कि अभी इस मामले को लेकर चर्चा चल रही है और निजीकरण का विरोध भी है, जो भी आगे एक्शन होगा, हम बताएंगे।
केवल किट्स और केमिकल के लिए हुआ है टेंडर
एमजीएम मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. संजय दीक्षित ने चर्चा में बताया कि यह गलत बात है कि किसी निजी लैब को लैब संचालन का ठेका दिया जा रहा है। केवल किट्स और केमिकल ही कंपनी सप्लाई करेगी और यह ठेका 10 वर्षों के लिए भोपालस्तर पर हुआ है। वर्तमान में आटोनॉमस से किट्स और केमिकल खरीदे जाते थे, जिसमें बहुत धांधली होती थी, कई बार समय पर किट्स, रिजेंट्स, केमिकल न होने पर जांच बंद हो जाती थी, अब इससे बेफिक्र होगी। साथ ही अब हर दो घंटे में जांच होगी, इससे मरीजो को समय पर रिपोर्ट मिल जाएगी। इससे मरीजों को बहुत ज्यादा फायदा होगा। वाट्सअप पर कंसल्टेंट और मरीजों को रिपोर्ट मिल जाएग। इसके चलते उन्हें रिपोर्ट लेने भी नहीं आना पड़ेगा। मेरे हिसाब से यह बहुत अच्छा कंसेप्ट है और जिला अस्पतालों में पहले से लागू है।
हाउसकीपिंग और सुरक्षा भी निजी हाथों में
एमवायएच सहित अन्य संबद्ध अस्पताल में पूर्व जब कॉलेज प्रबंधन स्वयं सफाई, सुरक्षा व्यवस्था कराता था, तो कुछ लाख रुपए खर्च होते थे, वर्तमान में यह निजी हाथों में सौंप दिए गए हैं और करोड़ों का भुगतान हो रहा है। सुरक्षकर्मीयों के साथ ही सफाईकर्मियों आदि पर प्रबंधन का पहले जैसा नियंत्रण भी नहीं है। कहीं ऐसा ही इस मामले में न हो और मरीजों के परिजनों को इसके परिणाम भुगतने पड़ें।
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