भोपाल। प्रदेश की करीब एक लाख आंगनबाडि़यों में जुलाई से हर बच्चे की दक्षताएं परखी जाएंगी। प्रायवेट स्कूलों में जिस प्रकार नर्सरी से बच्चों को पढ़ाया जाता है, ठीक उसी तरह आंगनबाड़ी केन्द्रों में शून्य से 6 वर्ष तक के बच्चों को अर्ली चाइल्ड केयर एज्युकेशन (ECCE) यानि शाला पूर्व शिक्षा दी जाएगी। महिला बाल विकास में अधिकारियों का कहना है कि हर केन्द्र की निगरानी कराई जाएगी।
विभागीय नियमों के अनुसार केन्द्रों में प्रत्येक बच्चे की लर्निंग और कला क्षमताओं का आंकलन होगा। प्रशिक्षित कार्यकर्ता (शिक्षक) एवं देखभालकर्ता तथा बच्चों के बीच समन्वय तथा बेहतर वातावरण बनेगा, ताकि बच्चा अपने को सहज महसूस कर सके। साफ-सफाई, संतुलित और पौष्टिक आहार के साथ अच्छी आदतों को दैनिक व्यवहार में लाना होगा। शारीरिक सामाजिक एवं भावनात्मक सुरक्षा सहित बच्चों की सुरक्षा और देखभाल के लिए अनिवार्य व्यवस्थाएं की जाएंगी। साफ-सुथरा हरित क्षेत्र होगा जहां बच्चे सुरक्षा के साथ सहज रूप से पहुंच सकें। कक्ष के अंदर तथा बाहर निर्धारित मापदंडों के अनुसार पेयजल और शौचालय सहित सभी व्यवस्थाएं बनानी होंगी।
फ्रेमवर्क सिद्धांतों का पालन जरूरी
राष्ट्रीय ईसीसीसी नीति कैरीकुलम फ्रेमवर्क के सिद्धांतों और दिशा-निर्देशों के अनुरूप पाठ्यक्रम तथा कार्य योजना, व्यवस्थित अभिलेखीकरण, वित्तीय प्रबंधन, पर्याप्त अमला तथा अभिभावकों की सहभागिता होगी। बच्चों के लिए रचनात्मक वातावरण में सीखने और सौंदर्य अनुभूति के लिए अवसरों की उपलब्धता बनानी होगी। भाषा एवं साक्षरता, शारीरिक क्षमताओं को बढ़ावा, समस्याओं के समाधान ढूंढऩे, अंकों की पहचान, साथियों से समन्व्य, स्वयं कीभावनाओं को व्यक्त करने के तरीके भी बताए जाएंगे। यह पूरी जवाबदारी जिला कार्यक्रम अधिकारियों की होगी।
विभाग का फोकस
वैसे तो आंगनबाड़ी केन्द्र वर्ष में बारह माह खोलने का प्रावधान है, लेकिन इस समय बच्चों की संख्या में कमी है। कारण है कि अनेक अभिभावक गर्मी में अपने पैतृक घरों की ओर गये हैं। दूर के रिश्तेदारों में होने वाले शादी समारोहों में इनकी भागीदारी हुई है। गर्मी का प्रकोप बढ़ रहा है। तमाम कारणों को लेकर आंगनबाडि़यों में बच्चे नहीं आ रहे हैं। हालांकि अधिकारियों का कहना है कि जुलाई से केन्द्रों पर बच्चों की शत-प्रतिशत उपस्थिति होगी।
इनका कहना है
शासन के जो नियम हैं, उसके अनुसार प्रतिदिन तीन घंटे बच्चों को शाला पूर्व शिक्षा दी जा रही है। निश्चित तौर पर उन बच्चों के लिए यह शिक्षण उपयुक्त है, जो आर्थिक अभाव से प्रायवेट स्कूलों की नर्सरी में नहीं पढ़ पाते हैं।
राजीव सिंह, जिला कार्यक्रम अधिकारी, छतरपुर
जिस प्रकार प्रायवेट स्कूलों में नर्सरी कक्षाओं में पढ़ाया जाता है। ठीक वैसा ही माहौल आंगनबाडि़यों में विकसित करने की कोशिश की जाती है। इन केन्द्रों पर बच्चों को भेजने में पालकों का रूझान भी बढ़ रहा है।
अंजू कोपे, पर्यवेक्षक, रायसेन
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