नर्मदापुरम, मध्यप्रदेश। एक तरफ सरकार बेरोजगार को रोजगार देने के लिये नये-नये आयाम स्थापित कर रही है और जगह-जगह उद्योग लगाए जा रहे हैं। दूसरी तरफ माखननगर (बाबई) के अंतर्गत आने वाले मोहासा औद्योगिक क्षेत्र के 110 एकड़ में कोकाकोला कंपनी का प्लांट प्रस्तावित किया गया था। इस प्लांट के बनने से जिले भर के करीब 10 हजार बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध होता। लेकिन जिले के बेरोजगारों की उम्मीदों को बड़ा झटका लगा है, क्योंकि मोहासा में प्रस्तावित कोका कोला कंपनी का प्लांट अब शुरू नहीं होगा। कंपनी ने इस प्रोजेक्ट से अपने हाथ खींच लिए हैं। वहीं एकेवीएन ने कंपनी के अनुरोध पर वाटर प्लांट के लिए आवंटित की गई जमीन की लीज भी रद्द कर दी है। कुल मिलाकर जिले में एक बड़ी औद्योगिक इकाई स्थापित होने से बेरोजगारों को काम मिलने की उम्मीदें लगाई गई थी, लेकिन अब यह उम्मीद पूरी तरह खत्म हो गई। जबकि प्रदेश की भाजपा सरकार द्वारा अरबों रुपये खर्च करके मोहासा औद्योगिक क्षेत्र को विकसित कर सड़कें, बिजली, पानी सहित अन्य मूलभूत सुविधाएं स्थापित की गई थी, लेकिन कई साल बीत जाने के बाद भी इस क्षेत्र में एक भी उद्योग स्थापित नहीं हो सका है।
माखननगर अंतर्गत मोहासा में हिन्दुस्तान कोकाकोला वेवरेज प्रा. लि. कंपनी अपना वाटरिंल प्लांट स्थापित करने जा रही थी। इसके लिए प्रदेश भाजपा सरकार के निर्देश पर एकेवीएन ने कोकाकोला कंपनी को 110 एकड़ भूमि आवंटित की थी, करीब 5 साल पहले 2017 में कोको कोला कंपनी ने अपने प्लांट का शिलान्यास किया था। जमीन के बदले प्रदेश सरकार के कंपनी के बीच हुए करार में स्पष्ट उल्लेख था कि इस वाटलिंग प्लांट में स्थानीय बेरोजगार युवकों को काम देने में प्राथमिकता दी जाएगी। जिले के हजारों बेरोजगार इस बॉटलिंग प्लांट के शुरू होने का चार-पांच साल से इंतजार कर रहे थे, लेकिन अचानक उनकी उम्मीद उस समय तार-तार हो गई, जब कोका कोला कंपनी ने बॉटलिंग प्लांट की स्थापना से अपने हाथ खींच लिये और एकेवीएन को जमीन की लीज रद्द करने का अनुरोध पत्र सौंप दिया। कंपनी के अनुरोध पर एकेवीएन ने भी प्लांट के लिए आवंटित की गई 110 एकड़ भूमि का लीज रद्द करने के आदेश जारी कर दिए हैं। कुल मिलाकर अब यह प्लांट इस क्षेत्र में नहीं लगेगा।
जिले के 10 से 15 हजार बेरोजगारों को लगा बड़ा झटका :
प्रदेश में औद्योगिकीकरण के विस्तार और निवेश को बढ़ावा देने के लिए सरकार ग्लोबल सम्मिट करवाती है, देश और विदेश के उद्योगपतियों को आमंत्रित किया जाता है और उन्हें सस्ती दर पर जमीन, बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने का ऑफर देकर प्रदेश में निवेश करके उद्योग लगाने का प्रस्ताव दिया जाता है। उद्योगपति आते हैं, बैठकों में शासकीय सुविधाओं का आनंद लेते हैं बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। सरकार के साथ एमओयू साइन होते हैं और सरकार बड़े गर्व से बताती है कि कितने करोड़ के निवेश पर समझौता हुआ है और इतने रोजगार बढ़ेंगे। इन घोषणाओं में युवक युवती रोजगार की उम्मीद लगा लेते हैं। और उद्योगों के शुरू होने का बेसब्री से इंतजार करते हैं, लेकिन उनकी उम्मीदों को कोकाकोला जैसी कंपनियां जोर का झटका धीरे से दे देती हैं और बेचारे बेरोजगार मन मसोसकर रह जाते हैं। मोहासा स्थित कोकाकोला प्लांट में करीब 10 से 15 बेरोजगारों को रोजगार मिलना था, लंबे समय से इस प्लांट के शुरू होने का इंतजार कर रहे थे। इससे जिले के बेरोजगार निराश हैं। उम्मीद है कि सरकार इन्हें काम धंधा रोजगार दिलाने की दिशा में कोई प्रयास करेगी।
पीलूखेड़ी संयंत्र के फेर में शुरू नहीं हो पाया मोहासा प्लांट :
बताया जाता है कि कोको कोला कंपनी ने मोहासा प्लांट के लिए पूरी तैयारी कर रखी थी और प्लांट का काम शुरू होने ही वाला था। इस दौरान कोरोना ने दस्तक दे दी और प्रस्तावित प्लांट के निर्माण का काम ठंडे बस्ते में चला गया। 2017 में कंपनी ने प्रदेश सरकार से इस क्षेत्र में जमीन की मांग की थी और कहा था कि वह स्थानीय बेरोजगारों को काम देने में प्राथमिकता देगी। जिले में औद्योगिक प्रगति और स्थानीय बेरोजगार युवाओं को काम या रोजगार मिल सके, इसी को ध्यान में रखते हुए सरकार ने कंपनी को मोहासा में 110 एकड़ जमीन बहुत मामूली दरों पर लीज पर आवंटित की थी। बीच-बीच में कंपनी के अधिकारी बेरोजगारों को भरोसा देते रहे कि प्लांट के निर्माण का काम शीघ्र शुरू होगा। इसी बीच कोकोकोला कंपनी ने पीलूखेड़ी स्थित प्लांट के विस्तार की योजना बनाई और उस पर काम शुरू कर दिया। लेकिन नफा-नुकसान का आंकलन लगाने के बाद कंपनी के अधिकारियों ने मोहासा स्थित बॉटलिंग प्लांट में भारी भरकम घाटे का सौदा समझा और यही कारण है कि कंपनी इस प्लांट का कामकाज बंद करके पीलूखेड़ी प्लांट को विस्तार देने जा रही है। मालूम हो कि कोकाकोला कंपनी को बाटलिंग के लिये जमीन आवंटित हुए 5 साल का समय बीत गया। लेकिन इस जमीन पर लगने वाला बाटलिंग प्लाट का कुछ नहीं हो पाया। तार फेंसिंग के अलावा उक्त जमीन पड़ती ही पड़ी है। कंपनी द्वारा प्रोजेक्ट बंद करने के बाद अब नये उद्योग की संभावना भी नहीं आ रही है। कुल मिलाकर सरकार का करोड़ों रुपये बर्बाद हो गया है।
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