भोपाल, मध्यप्रदेश। लंबी प्रतीक्षा के बाद विभाग ने जिस ग्रामीण शिक्षा को सुदृढ़ करने के लिए नई तबादला नीति बनाई थी। उस पर सिस्टम ने पानी फेरकर रख दिया है। गांव के स्कूल खाली हो गये हैं और शहरों में जरूरत न होने के बाद भी बड़े पैमाने पर प्रभावशाली शिक्षकों को पदस्थ कर दिया गया है। अब हालात यह है कि राजनैतिक हस्तक्षेप का जबर्दस्त दखल होने से 80 फीसदी गांव के स्कूलों में शिक्षकों की दरकार बन गई है।
बताना होगा कि गुजर चुके वर्ष 2022 में विभाग ने संकल्प तैयार किया था कि गांव की शिक्षा का गुणात्मक विकास करना है। इसके लिए विशेषज्ञों से सलाह मशविरा करके नई तबादला नीति बनाई गई थी। इसमें यह उल्लेख भी था कि शहरों में सालों से पदस्थ शिक्षकों को गांव में जाना होगा। गांव के स्कूलों में बच्चों के संख्या अनुपात में शत-प्रतिशत शिक्षकों की उपस्थिति की जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया है। यहां तक कि नई भर्ती से नियुक्त जिन शिक्षकों को बतौर परीवीक्षा तीन साल गांव में रहना था। उन्हें भी गांव से शहर में ही पदस्थ कर दिया गया है। इस अव्यवस्था को लेकर अब विभाग की मुश्किलें भी बढ़ रही हैं।
अफसरों ने कर दी सारी व्यवस्था चौपट :
मप्र राज्य कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष विश्वजीत सिंह सिसौदिया कहते हैं कि गांव के सरकारी स्कूलों में किसान मजदूरों के बच्चे अध्ययन कर रहे हैं। विभाग ने जब नीति बनाई थी तब ऐसा लग रहा था कि अब गांव के स्कूलों में सालों से बिगड़ी व्यवस्था सुधरेगी, लेकिन राजनैतिक हस्तक्षेप से अधिकारी झुके और शहरों में पूर्व से अतिशेष स्थिति होने के बाद भी यहां शिक्षकों को पदस्थ किया गया है। उन्होंने कहा कि इस मामले में मुख्यमंत्री को तत्काल संज्ञान लेना चाहिए, क्योंकि सर्वाधिक आबादी ग्रामों में होती है। सबसे अधिक बच्चे गांव के स्कूलों में ही अध्ययनरत हैं। इसके बावजूद यहां के सरकारी स्कूल शिक्षकों से खाली हो गये हैं। यह नई तबादला नीति का पूरी तरह से उल्लंघन है।
शिक्षकों की कमी चिंता का विषय :
मप्र शिक्षक संघ के प्रदेश महामंत्री क्षत्रवीर सिंह राठौर का कहना है कि गांव के स्कूलों का शिक्षकों से खाली होना चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि विभाग ने नीति तैयार करने के बाद तरीके से कार्य नहीं किया है। उनका कहना है कि पहले शहरों से अतिशेष शिक्षकों का समायोजन किया जाना था। इसका उल्लेख नीति में भी था। फिर खाली पदों पर शिक्षकों के तबादले किए जाने थे, लेकिन ऐसा नहीं किया गया है। नतीजतन यह हालात निर्मित हुए हैं।
उल्लंघन करने वालों पर कार्यवाही हो :
शासकीय शिक्षक संघ के अध्यक्ष राकेश दुबे कहते हैं कि ग्रामों में 80 फीसदी ऐसे स्कूल हैं, जहां बच्चों के संख्या अनुपात में शिक्षक ही नहीं है। नई तबादला नीति से यह उम्मीद जागी थी कि अब सालों से बिगड़ा सिस्टम सुधरेगा, लेकिन जिस राजनैतिक हस्तक्षेप को इस नीति से दूर रखा जाना था, उसके विपरीत काम हुआ है। उनका कहना है कि विधायकों से लेकर मंत्रियों ने ग्रामों के बच्चों का कोई ख्याल नहीं रखा और अपने चहेते शिक्षकों को ग्रामों से लाकर शहरों में पदस्थ करवा दिया। यह ग्रामीण बच्चों के साथ खिलवाड़ है।
विभाग पीएस हुई चिंतित : बताया जा रहा है कि इस अव्यवस्था को लेकर विभाग की पीएस भी चिंतित हुई है। जानकारी है कि इस मामले में लोक शिक्षण संचालनालय से लेकर शिक्षा पोर्टल का काम संभालने वाली टीम से जवाब मांगा जा रहा है। कारण है कि पीएस के पास जो मैदानी रिपोर्ट आ रही है, वह संतोषजनक नहीं है। जानकारी है कि निकट दिनों में इन हालातों को लेकर बड़ा बदलाव भी हो सकता है।
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