आवारा गौवंश :
वर्ष 2012 में 19वीं पशुगणना में कुल 4,37,090 आवारा गौवंश
वर्ष 2019 में 20वीं पशुगणना में कुल 8,53,971आवारा गौवंश
19वीं पशुगणना में गौवंश की संख्या - 1,96,02,366
20वीं पशुगणना में गौवंश की संख्या - 1,87,50,828
गौशालाओं की संख्या :
अशासकीय स्वयंसेवी - 627
मनरेगा संचालित गौशाला - 905
गौ-अभयारण अनुसंधान केंद्र सालरिया सुसनेर आगर में 472.63 हैक्टेयर में स्थापित।
दूध का उत्पादन और खपत :
प्रदेश में कुल दूध का उत्पादन - 17108.97 मीट्रिक टन
प्रतिदिन एक व्यक्ति पर दूध की खपत - 543 ग्राम (2020-21)
भोपाल, मध्यप्रदेश। मध्यप्रदेश की सड़कों पर 8 लाख 53 हजार 971 गौवंश आवारा घूम रहे हैं, इसमें शामिल गाय भी आवारा होने के दाग को बर्दाश्त करने पर मजबूर हैं। प्रदेश में साल 2012 तक 4 लाख 37 हजार 90 गौवंश आवारा की सूची में दर्ज थी, सिर्फ छह साल में यह आंकड़ा बढ़कर दोगुना हो गया। आवारा गौवंश के बढ़ते आंकड़े के पीछे का बड़ा कारण है, चारे की कमी और उसका लगातार महंगा होना।
20वीं पशुगणना के अनुसार मध्यप्रदेश में कुल 1,87,50,828 गौवंश और भैंसवंश की 1,03,07,131 संख्या दर्ज की गई है। गणना की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में देसी नस्ल 1,70,55,853 और शंकर नस्ल का गौवंश 16,94,975 है। इसके इतर सड़कों पर साढ़े आठ लाख से अधिक गौवंश भटक रहे हैं। सड़कों पर मौजूद आवारा गौवंश में से 50 फीसदी की मौत भूख और पॉलिथिन के खाने से हो रही है। यही वजह है कि 19वीं पशुगणना संख्या की तुलना में 20वीं गणना में गौवंश में 8,51,538 की कमी आई है। 19वीं पशुगणना में कुल गौवंश 1,96,02,366 और 20वीं गणना में 1,87,50,828 संख्या दर्ज की गई।
गाय पर आवारा का दाग क्यों?
देश में गुजरात के बाद मप्र में देशी गौवंश की संख्या अधिक है, लेकिन बीते सालों में गौवंश का पालक काफी नुकसान झेल रहा है। इस नुकसान की कीमत गाय को चुकना पड़ रही है। चारे की कमी से जुझते हुए थक हारकर गौपालक गाय को सड़क पर छोड़ रहे हैं, अब उनके लिए गाय को पालना कठिन हो रहा है। गाय के लिए महंगा चारा और कम दूध उत्पादन से पालक की अर्थिक स्थिति ने जबाव दे दिया है। व्यक्तिगत गौपालक के साथ ही अनुदान और सरकारी गौशलाएं भी चारे की कमी से जूझ रही है, जिसकी वजह से अब वहां निराश्रित गायों को पालने में परेशानी होने लगी है। कई गौशालाएं आर्थिक तंगी के चलते बंद हो गई हैं।
भूसा हुआ कई गुना मंहगा, हरे चारे की भी कमी :
गाय पालक इस वर्ष 700 रुपए प्रति क्विंटल गेहूं का भूसा खरीदने पर मजबूर हैं, जबकि तीन वर्ष पहले तक भूसा 200 रुपए क्विंटल बिक रहा था। प्रदेश में गेहूं फसल का कुल रकबा 42.24 लाख हैक्टर है, लेकिन भूसा (चारा) इसका 50 फीसदी भी नहीं निकलता है। इसका मुख्य कारण है हारवेस्टर से गेहूं फसल की कटाई, जिसमें भूसा न के बराबर ही मिलता है। भूसे के संकट को देखते हुए कृषि विभाग ने इस वर्ष गेहूं फसल कटाई में हारवेस्टर के कल्टीवेटर लगाने की शर्त लगाई है। वहीं सर्दी और गर्मी में हरे चारे का संकट भी है। घास की कईअच्छी किस्में किसान को महंगी पड़ती है। भूसे और हरे चारे की तुलना में विभिन्न कंपनियों द्वारा 2021 में 60,010 मीट्रिक टन पशु आहार का विक्रय किया गया है। यह आंकड़े बताते हैं कि गौवंश पालक अब भूसा और हरे चारे को तुलना में फैक्ट्री में तैयार महंगे आहार पर अधिक निर्भर है।
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