भोपाल, मध्यप्रदेश। राजधानी भोपाल इसलिये शिकारियों का पंसदीदा स्थान बना हुआ है, कि एक तो यहां के जंगलों में वन्यप्राणी बहुतायात में पाए जाते हैं, दूसरे सबसे ज्यादा संख्या में बाघों का मूवमेंट यहां है। दूसरी तरफ वन विभाग संसाधनों की कमी के चलते शिकारियों पर नकेल कसने में बेबस नजर आ रहा है। हाल यह है कि ना तो विभाग के पास घने जंगलों में पर्याप्त ट्रैप कैमरे हैं, ना ही मुखबिरों का मजबूत नेटवर्क है, ना ही खोजी श्वान। करीब 3 साल पहले बीएसएफ की टेकनपुर छावनी ने एक खोजी जर्मन शेफर्ड श्वान वन विभाग भोपाल को दिया था, जिसको भी विभाग संभाल नहीं पाया और उसकी मौत हो गई। इसके बाद बीएसएफ ने श्वान देने से ही इंकार कर दिया। राजधानी के आसपास के जंगलों में लगातार शिकारियों का मूवमेंट बना रहता है, जो वन्यप्राणियों और खासतौर पर टाइगर्स के लिए बड़ा खतरा है, लेकिन इसके बाद भी वन विभाग शिकार की घटनाओं को रोकने में फिसड्डी साबित हो रहा है।
वन कर्मियों पर भी कई बार हमला :
संसाधनों की कमी के चलते बार-बार वनकर्मी भी शिकारियों के निशाने पर आ जाते हैं। वहीं शिकारियों के हौंसले लगातार बुुलंद हैं, पिछले सप्ताह ही बैरसिया रेंज में शिकारियों ने वनकर्मी को गोली मारकर घायल कर दिया। इससे पहले भी भोपाल मंडल के तहत कई बार वन रक्षकों पर शिकारियों के हमलों की कई घटनाएं पिछले दो सालों में हो चुकी हैं। शिकार के तो कई मामले सामने आ चुके हैं। जिनमें से कुछ में आरोपी शिकारी पकड़े गए तो कुछ में महीनों से फरार चल रहे हैं।
हथियार होने ना होने बराबर :
कहने के लिए वनों और वन्य प्राणियों की सुरक्षा की खातिर सरकार ने वन रक्षकों और रेंजरों के लिए हथियारों की व्यवस्था की थी, लेकिन इनका होना ना होना इसलिये बराबर है, एक तो लायसेंस और दूसरी कानूनी औपचारिकताओं के चलते ज्यादातर को हथियार मिले ही नहीं है जिन्हें मिले उनके पास हथियार चलाने की परमीशन भी नहीं है। अंदाजा इसी से लगाएं कि वन विभाग के खरीदे हजारों कारतूस मालखाने में रखे-रखे बेकार हो गए। नये कारतूसों के लिए महीनों से अर्जी लगी है। शिकारियों को यह पता है कि वन कर्मचारियों के पास हथियार होना ना होना बराबर है, इसलिये वे बेखौफ रहते हैं।
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