ग्वालियर, मध्यप्रदेश। जिस दल की सत्ता होती है उस दल के नेताओ को सोच समझकर बोलना पड़ता है, क्योंकि उनके बोलने से कई तरह के मायने निकाले जाने लगते है और अगर कुछ गलत बोला है तो विपक्ष को सत्ता पक्ष पर हमला करने का मौका मिल जाता है। इस समय मध्यप्रदेश की राजनीति में भाजपा के अंदर ही सिंधिया समर्थक कुछ नेता खुलकर बयान देकर एक तरह से जहां सत्ता पक्ष की परेशानी को बढ़ाने का काम कर रहे है वहीं एक व्यवस्था के खिन्न होकर नंगे पैर चलने के लिए मजबूर है।अब इस बयानबाजी व चाल से एक तरह से जनता के बीच यह संदेश जा रहा है कि आखिर भाजपा सरकार के अंदर क्या चल रहा है वहीं विपक्ष भी जमकर सरकार को घेरने का काम कर रही है।
सत्ताधारी दल के मंत्री स्तर के नेता अगर प्रदेश के प्रमुख अधिकारी के खिलाफ कुछ बोलते है तो उसका मायना यही निकाला जाएगा कि उक्त मंत्री सरकार से नाराज है और उनकी सत्ता में चल नहीं रही है, वैसे वह यह बात प्रदेश के मुख्यमंत्री के सामने बंद कमरे में कहते को उसका समाधान भी निकाला जा सकता था, लेकिन जिस तरह से मंत्री सार्वजनिक रूप से प्रदेश के सीएम के खिलाफ बोल रहे है तो उसका मतलब वह सीधे सीएम के ही खिलाफ बोल रहे है, क्योंकि सरकार में मुख्यमंत्री का सबसे नजदीक अधिकारी सीएस होता है और वह उसी की पसंद से बनाए जाते है। खैर यह तो एक मंत्री की बात हो गई, लेकिन इससे अलग कुछ सिंधिया समर्थक मंत्री भी खुलकर सार्वजनिक रूप से ऐसी बाते कह चुके है जिससे सरकार की छवि खराब होती है, लेकिन लगता है कि समझाईश के बाद भी उन नेताओ ने अभी कोई सीख नहीं ली है।
आखिर ऐसा क्या हो गया कि सत्ता के खिलाफ ही बोलने लगे :
प्रदेश में कांग्रेस की सरकार को गिराने में सिंधिया समर्थको को अहम रोल रहा था और भाजपा सरकार बनने के बाद वहीं लोग फिर मंत्री बना दिए गए थे। अब दो साल के अंदर ऐसा क्या हो गया कि एकाएक सिंधिया समर्थक अपनी ही सरकार के अधिकारियो व व्यवस्था के खिलाफ बोलने के लिए मजबूर होने लगे। वैसे उनके बयानो के आने के बाद से मूल भाजपा के नेता खासे खुश नजर आ रहे है, क्योंकि सिंधिया समर्थको के सत्ता में भागीदारी के बाद से ही भाजपा का मूल कार्यकर्ता खासा नाराज है और अपने कुछ क्षेत्रो में भाजपा के मूल कार्यकर्ता सिंधिया समर्थक मंत्रियो के खिलाफ जमकर बोल रहे है, क्योंकि वहां भाजपा के मूल कार्यकर्ताओ को कोई तवज्जो नहीं दी जाती है। सवाल यह है कि सिंधिया समर्थक नेताओ को भाजपा सरकार में मंत्री बने हुए 2 साल हो गए है और अगर उनकी बात को संबंधित जिले के कलेक्टर व एसपी सहित अन्य अधिकारी नहीं सुन रहे तो फिर उनको सार्वजनिक रूप से बोलने की जगह मुख्यमंत्री से चर्चा क्यों नहीं की? क्या यह सोची समझी रणनीति दवाब बनाने के लिए की जा रही है या फिर कोई और राजनीति इसके अंदर छिपी है, लेकिन फिलहाल सिंधिया समर्थक मंत्रियो के बयानो व चाल से सरकार जरूर परेशानी महसूस कर रही है।
इन मंत्रियो ने यह कहा :
श्रम मंत्री महेन्द्र सिंह सिसोदिया :
उन्होंने गुना में मीडिया से चर्चा करते हुए प्रदेश के प्रमुख सचिव के खिलाफ जमकर बोला था और यहां तक कहा था कि प्रदेश के सीएस हिटलरशाह हो गए है। इस बयान का सीधा मतलब मुख्यमंत्री को टारगेट करना था। इसके साथ ही सिसोदिया ने कहा था कि उनके प्रभार वाले जिले में कलेक्टर व एसपी बिना उनसे पूछे किसी भी अधिकारी का तबादला कर देते है आखिर ऐसे में उनका प्रभारी मंत्री होने से क्या मतलब निकलता है। इस बयान के बाद से ही सिसोदिया चर्चा में आ गए और विपक्ष में जब सरकार को घेरने का काम किया तो उससे बचने के लिए मुख्यमंत्री ने सिसोदिया को तलब किया था उसके बाद दोनो के बीच क्या बात हुई यह तो पता नहीं लेकिन सिसोदिया उसके बाद से शांत दिख रहे है। वैसे यहां बता दे कि सिसोदिया के प्रभार वाले शिवपुरी जिले में फिलहाल एसपी-कलेक्टर को नहीं बदला है, जबकि अभी कई आईएएस व आईपीएस अधिकारी बदले जा चुके है।
इमरती देवी :
लघु उद्योग निगम के अध्यक्ष (केबिनेट दर्जा प्राप्त) इमरती देवी तो लगातार बयानो के मामले में चर्चा में बनी हुई है। अपने विधानसभा क्षेत्र के पिछोर इलाके में एक कार्यक्रम के दौरान जब इमरती देवी पहुंची थी तो वहां उनकी मौजूदगी में लोगों ने नारे लगाएं थे कि जो जमीन सरकारी वह हमारी। इस नारेबाजी के बीच में एक बार भी इमरती ने लोगों को टोकने का काम नहीं किया बल्कि परोक्ष रूप से उनका समर्थन करने का काम किया। वहीं उप चुनाव हारने के बाद से कई बार उनका कांग्रेस प्रेम सार्वजनिक रूप से जागता रहा है और यह भी कहती रही है कि डबरा की सीट कांग्रेस की है और अगर वह कांग्रेस से लड़ती तो जरूर जीतती। अब वह पंडोखर सरकार के दरबार में पहुंचकर फिर चर्चा में आ गई है। पंडोखर सरकार के पास पहुंचकर सबसे पहले उन्होंने यही पूछा था कि उनको उप चुनाव किस नेता ने हराने का काम किया था। इसके जवाब में पंडोखर सरकार ने नाम तो नहीं लिया, लेकिन यह जरूर बताया कि आपकी ही पार्टी के बड़े नेता ने आपको हराने का काम किया है। अब इसका संकेत तो सिर्फ प्रदेश के एक मंत्री पर सीधा जाता दिख रहा है।
प्रद्युम्न सिंह तोमर :
प्रदेश के ऊर्जा मंत्री बोलने में काफी सोच समझ रखते है और खुलकर कोई ऐसा बयान नहीं देते जिससे सरकार को कोई परेशानी खड़ी हो, लेकिन व्यवस्था को लेकर जिस तरह से वह जूते-चप्पल छोड़कर नंगे पैर चल रहे है उससे जरूर यह स्पष्ट होता है कि वह बोलने से भले ही बच रहे है, लेकिन अपनी ही सरकार की व्यवस्था से वह खासे नाराज है। अब सड़को का मामला हो या फिर गंदे पानी का उसको लेकर विपक्ष लगातार ऊर्जा मंत्री को घेरता रहा है, लेकिन अधिकारियो को निर्देश देने के बाद भी जब काम नहीं हो रहा तो अपनी विधानसभा में जनता के सवालो का जवाब देने से बचने के लिए ऊर्जा मंत्री को सड़क न बनने तक नंगे पैर रहने की शपथ लेना पड़ी और वह फिलहाल नंगे पैर ही चल रहे है। अब जब वह मंत्री है तो ऐसे में सवाल यह उठता है कि अधिकारी उनके निर्देशो पर अमल क्यों नहीं कर रहे, क्या उनको ऊपर से निर्देश है। ऊर्जा मंत्री को भी कुछ ऐसा ही लगता है, लेकिन वह खुलकर बोलने से बचते है पर नंगे पैर रहकर जनता को यह जरूर बताने का काम कर रहे है कि वह आपके हित के लिए लड़ रहा हूं। अब एक मंत्री जब नंगे पैर चलने मजबूर हो रहा हो तो सरकार पर सवाल तो उठेगें ही।
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