इंदौर। क्या आप कल्पना कर सकते है कि बिना ऑक्सीजन के कोई व्यक्ति 30 मिनिट तक एक बॉक्स में बंद रह सकता है। आपका जबाब होगा यह संभव नहीं, लेकिन यह कारनामा इंदौर के रहने वाले एक वैज्ञानिक वेद प्रकाश गुप्ता ने सार्वजनिक तौर पर कर दिखाया है। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के ठीक एक दिन पहले मंगलवार को इंदौर के गांधी हॉल में सैकड़ों लोगों के सामने खुद को एक बक्से में बंद किया, जिसमें ऑक्सीजन की मात्रा शून्य थी। यह कारनामा उन्होंने योग अभ्यास के दम पर किया।
इंदौर के कैट में वैज्ञानिक के पद पर पदस्थ वेद प्रकाश गुप्ता पिछले 25 सालों से योग अभ्यास कर रहे है। अबसे पहले वह अपने घर पर बिना ऑक्सीजन रहने का अभ्यास करते रहे हैं। मंगलवार को उन्होंने पहली बार सार्वजनिक तौर पर इस योग प्रक्रिया का प्रदर्शन किया है, और लोगों को योग अभ्यास से रूबरू कराया।
वेद प्रकाश गुप्ता ने बताया कि, बुधवार 21 जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस है और इस दिन पूरे विश्व में करोड़ों लोग योगासन और प्राणायाम करेगें। मगर योग का एक दूसरा पहलू भी है जो हजारों वर्ष पहले विलुप्त हो गया था। इसी योग को करके प्राचीन काल में ऋषि हजारों वर्ष जीवित रहते थे और कई अध्यात्मिक शक्तियां प्राप्त करते थे। स्वामी विवेकानन्द ने अमेरिका जाकर जिस योग का प्रचार किया और आध्यात्मिक ज्ञान को पश्चिम तक पहुंचाया वह योग भी यही था। आज (मंगलवार) मैं इसी योग की शक्ति का आपसे परिचय कर रहा हूँ। बुधवार 21 जून योग दिवस पर योग के नाम पर लोग कुछ आसन और प्राणायाम करेंगे मगर जिस योग की मैं बात कर रहा हूं उसमें योगासन व प्राणायाम नहीं है।
आगे उन्होंने कहा- इस योग में ध्यान द्वारा मन को केन्द्रित करते है। मैंने इस योग को 25 वर्ष पहले करना शुरू किया, साथ ही इस योग पर शोध करना शुरू किया। शोध में मैंने पाया कि जब ध्यान लगता है तो सांस की गति धीमे होने लगती है। इसका मतलब यह है कि योग से शरीर की आक्सीजन की खपत कम होती है। लगातार योग करते हुये एक ऐसी अवस्था भी आई जब मेरा ध्यान पूरी तरह लगने लगा और उस समय मेरे शरीर की आक्सीजन की खपत शून्य हो गयी। ध्यान की इस अवस्था को समाधि कहते हैं और इसमें वातावरण से आक्सीजन लेने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। इसे दर्शाने के लिये ही मैंने यह प्रयोग किया है।
प्राचीन काल में ऋषि व योगी जमीन के अन्दर बन्द गढ्ढे में समाधि में जाकर कई दिनों तक बिना आक्सीजन के योग करते थे। इसी से मुझे ऐसा करने की प्रेरणा मिली। नाईट्रोजन चैम्बर जमीन में बंद गढ्ढे का वैज्ञानिक स्वरूप है। बंद गढ्ढे में तो शरीर को थोडी आक्सीजन मिल भी सकती है मगर नाईट्रोजन चैम्बर में तो शून्य आक्सीजन है ।
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