हाइलाइट्स :
कम होने के बजाए लगातार बढ़ रहे कुत्ते काटे के शिकार।
हर वर्ष दो तरफा करोड़ों रुपए खर्च हो रहे प्रदेश सरकार के।
इंदौर, मध्यप्रदेश। शहर और उसके आसपास के इलाकों में लगातार डॉग बाइट के शिकार बढ़ते जा रहे हैं। निगम ने जब एनजीओ के माध्यम से शहर में कुत्तों की नसबंदी का कार्य शुरू किया था, तब दावा किया गया था कि जल्द ही लोगों को आवारा कुत्तों से राहत मिलेगी, लेकिन ऐसा होते नहीं दिख रहा है। पिछले 5-6 वर्षों में नगर निगम ने कुत्तों की नसबंदी पर करोड़ों रुपए फूंक दिए हैं, लेकिन कुत्तों के शिकारों की संख्या कम होने का नाम ही नहीं ले रही है।
कुत्तों के काटने के बाद लोग एंटी रेबिज वैक्सीन लगाने के लिए एमटीएच स्थित हुकुमचंद पॉली क्लीनिक पहुंचते हैं। यहां के पांच वर्षों के आंकड़ो पर नजर डाली जाए, तो गत पांच वर्षों में इस वर्ष जनवरी में सबसे अधिक लोग डॉग बाइट का शिकार हुए हैं। केवल जनवरी ही नहीं, पांच वर्षों के अन्य माह के आंकड़ों पर नजर डाली जाए, तो भी जनवरी 22 में डाग बाइट के शिकार सबसे अधिक हुए हैं।
जनवरी में 3 हजार 237 लोग पहुंचे वैक्सीन लगवाने :
हुकुमचंद पॉली क्लीनिक प्रभारी डॉ. आशुतोष शर्मा से गत 6 वर्षों के डॉग बाइट के शिकार हुए लोगों की जानकारी मांगी गई, तो उनके द्वारा उपलब्ध कराई जानकारी के मुताबिक जनवरी 22 में सबसे अधिक 3 हजार 237 लोग कुत्ते काटे का शिकार हुए हैं, जो वर्ष 2016 लेकर 2021 तक में किसी भी माह में डॉग बाइट के शिकार में सबसे अधिक है। माना जाता है कि जनवरी माह में आवारा कुत्ते आक्रमक नहीं होते हैं, गर्मियों और बारिश में ज्यादा आक्रमक होते हैं, लेकिन आंकड़ों पर नजर डाली जाए, तो ऐसा नहीं। डॉ. शर्मा के मुताबिक डॉग बाइट के शिकार होने वालों में बच्चों, बुजुर्ग और महिलाएं ज्यादा हैं। अस्पताल में औसतन प्रति दिन 50 से ज्यादा कुत्तों के काटने से नए घायल इलाज और वैक्सीन के लिए पहुंचते हैं। वहीं फरवरी 22 की बात की जाए, तो इस माह 2 हजार 575 लोग डाग बाइट के शिकार हुए हैं।
दिसंबर में सबसे ज्यादा लोग होते हैं शिकार :
डॉ. शर्मा द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों पर नजर डाली जाए, तो वर्ष 2016 में 20 हजार 455, 2017 में 24 हजार 151, वर्ष 2018 में 29 हजार 45, वर्ष 2019 में 32 हजार 647, वर्ष 2020 में 27 हजार 694 कुत्ते के काटने का शिकार हुए हैं। वहीं 2021 में 32 हजार 325 लोगों को कुत्तों ने काटा है। प्रत्येक वर्ष में प्रति माह में सबसे अधिक शिकार की बात की जाए, तो 2016 मे सबसे ज्यादा दिसंबर में 20 हजार 42, 2017 में भी दिसंबर में 23 हजार 34, 2018 में दिसंबर माह में सबसे अधिक 29 हजार 14। वर्ष 2019 में भी सबसे ज्यादा दिसंबर में 31 हजार 61 और 2020 में भी जनवरी में सबसे ज्यादा 36 हजार 36 लोग डॉग बाइट का शिकार हुए हैं। इसी प्रकार वर्ष 2021 में भी सबसे ज्यादा दिसंबर माह में 34 हजार 93 और चालू वर्ष यानि 2022 में जनवरी में 37 हजार 28, जो गत पांच वर्षों में सबसे ज्यादा है लोग डाग बाइट का शिकार हुए हैं।
दो तरफ से करोड़ों रुपए हो रहे खर्च :
आवारा कुत्तों की आबादी नसबंदी के बाद भी लगातार बढ़ती जा रही है। शहर के किसी भी इलाके में नजर डाली जाए, तो सड़कों पर कुत्ते ही कुत्ते नजर आते हैं। हालत यह है कि रात तो ठीक दिन में भी बच्चे और महिलाएं कुत्तों के सामने से निकले में डरते हैं, इसके बाद भी सबसे ज्यादा यही इनके शिकार हो रहे हैं। नगर निगम द्वारा कुत्तों की नसबंदी के नाम पर गत 5-6 वर्षों में करोड़ों रुपए खर्च कर चुकी है। वहीं हुकुमचंद पॉलीक्लीनिक में जो एंटी रैबिज वैक्सीन लगाई जाती है, इसकी कीमत बाजार में कीमत प्रति वैक्सीन 150 रुपए है और एक घायल को तीन से पांच वैक्सीन लगाए जाते हैं। इसका औसत निकाला जाए, तो केवल हुकमचंद पॉली क्लीनिक में ही प्रतिवर्ष करीब सवा से डेढ़ करोड़ रुपए के वैक्सीन लग रहे हैं। इस प्रकार आवारा कुत्तों के कारण दोतरफा नुकसान हो रहे हैं।
कुत्तों के कारण बढ़ रहे एक्सीडेंट :
इतना ही नहीं आवरा कुत्तों के कारण शहर में एक न एक बढ़ी दुर्घटना रोज होती है। कभी कुत्तों को बचाने में तो कभी दोपहिया वाहन के पीछे आवारा कुत्तों के लपकने के कारण वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो रहे हैं। कई मामलों में तो लोगो की जान भी चली जाती है। वहीं एंटी रैबिज वैक्सीन समय पर न लगाने से भी इनके शिकार हुए लोगों को जान से हाथ धोना पड़ सकता है। जो आंकड़े पेश किए गए हैं, वो तो केवल एक अस्पताल के हैं। जबकि बड़ी संख्या में लोग निजी अस्पताल, क्लीनिक में भी एंटी रैबिज वैक्सीन डाग बाइट के शिकार होने के कारण लगवाते हैं, जिनका कोई रिकार्ड नहीं है।
हाईकोर्ट में लगी हुई याचिका :
नगर निगम की नेता प्रतिपक्ष रही फौजिया शेख अलीम ने इस संबंध में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। उनका कहना है कि वर्षों से पेट्स सोसायटी फार एनिमल वेलफेयर एंड रूलर डेवलपमेंट कम्पनी इस कार्य में लापरवाही कर रही है। निगम के अधिकारी अनुबंधित निजी फर्मों पर ठोस कार्रवाई नहीं कर पा रहे हैं और पिछले 5-7 वर्षों के दौरान कुत्तों की नसबंदी के बावजूद 20 फीसदी राहत भी जनता को नहीं मिल सकी है। निजी फर्म को कुत्तों के नसबंदी ऑपरेशन का ठेका निगम ने दे रखा है, जिसे करोड़ों रुपए का भुगतान भी कर दिया गया। हर माह 24 लाख रुपए से अधिक का भुगतान निगम द्वारा किया जा रहा है और एक और कम्पनी रोडीस को भी इसका जिम्मा दिया गया है। एक लाख से अधिक आवारा कुत्ते शहर में हैं और रोजाना 90-100 के ऑपरेशन करने का दावा भी किया जाता है।
यह कहना है इनका :
डॉग बाइट के शिकारों की संख्या लगातार बढ़ रही है। हर वर्ग और शहर के हर तरफ के केस अस्पताल में इलाज और वैक्सीन के लिए आ रहे हैं। अस्पताल में सभी वर्ग के लोगों को मुफ्त में एंटी रैबिज वैक्सीन लगाए जाने की व्यवस्था है।डॉ. आशुतोष शर्मा, प्रभारी, हुकुमचंद पॉलीक्लीनिक, इंदौर
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