हाईकोर्ट इंदौर खंडपीठ ने वनरक्षकों पर लगाया जुर्माना  RE-Jabalpur
मध्य प्रदेश

तबादला रुकवाने कोर्ट गए वनरक्षकों पर लगाया 5-5 हजार रुपए का जुर्माना

हाई कोर्ट इंदौर खंडपीठ ने कहा- सराहनीय नहीं वनरक्षकों का कृत्य, आपातकाल में कहीं भी किए जा सकते हैं ताबदले

Ramgopal Singh Rajput

हाइलाइट्स :

  • 30 वनरक्षकों की तबादला निरस्त करने की याचिका खारिज

  • कोर्ट ने कहा कि जंगल बचाने से महत्वपूर्ण कोई चीज नहीं हो सकती है

  • वनरक्षकों की सेवा शर्तों के अनुसार जिले के बाहर स्थानांतरण नहीं किया जा सकता है

भोपाल। हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने इंदौर, धार और खरगोन वन मंडल के 30 वनरक्षकों पर 5-5 हजार रुपए का जुर्माना लगाते हुए तबादला निरस्त करने की उनकी याचिकाओं को खारिज कर दिया है। हाई कोर्ट इंदौर खंडपीठ ने कहा है कि वनरक्षकों की सेवा शर्तों के अनुसार उन्हें जिले के बाहर स्थानांतरण नहीं किया जा सकता है, किंतु आपातकालीन स्थिति में उन्हें कहीं भी भेजा जा सकता है। वन विभाग ने अप्रैल में बुरहानपुर वन मंडल में हो रही बेतहाशा अवैध कटाई और अतिक्रमण रोकने के लिए धार, खरगोन और इंदौर के लगभग 30 वनरक्षकों के ट्रांसफर बुरहानपुर वन मंडल में किया था। तबादला आदेश आदेश रुकवाने के लिए सभी स्थानांतरित वनरक्षक हाई कोर्ट पहुंच गए थे। इन्हें पहले अंतरिम राहत मिल गई थी।

सभी याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि उनकी सेवा शर्तों के मुताबिक उनका तबादला जिले अथवा सर्किल के बाहर नहीं किया जा सकता है। एक याचिकाकर्ता ने यह दलील दी की स्थानांतरण नीति के तहत पति-पत्नी को एक ही जिले में पदस्थ किया जा सकता है। याचिकाकर्ताओं की आशंका यह भी थी कि उनके वरिष्ठक्रम पर असर पड़ेगा। सरकारी वकील ने कोर्ट में दलील दी कि चूंकि वन रक्षकों की कमी थी, इसलिए इस स्थानांतरण आदेश के द्वारा आसपास के जिलों में तैनात इन 30 वन रक्षकों को जंगल और वन विभाग के अन्य कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए बुलाया गया है, जहां तक ​​वरिष्ठता का सवाल है, उसे सुरक्षित रखा गया है।

सरकारी वकील का कहना है कि याचिकाकर्ताओं की यह आशंका निराधार है कि वे अपनी संपत्ति खो देंगे। हाई कोर्ट ने विगत गुरुवार को इन सभी की अर्जी खारिज करते हुए बुरहानपुर भेजे जाने के न केवल आदेश दिए, बल्कि सभी याचिकाकर्ता वनरक्षकों पर 5-5 हजार का जुर्माना भी लगाया है। कोर्ट ने फैसले में कहा कि यह सही है कि वनरक्षक का ट्रांसफर उसके डिविजन से बाहर नहीं किया जा सकता, लेकिन आपात स्थिति में उसे कहीं भी भेजा जा सकता है।

कोई वनरक्षक यह नहीं कह सकता कि वह केवल अपने जिले के जंगलों की ही सुरक्षा करेगा। इमरजेंसी में उसे कहीं भी भेजा जा सकता है। हर एक सरकारी कर्मचारी पर यह जवाबदारी है कि सरकार को उसकी जब और जहां जरूरत हो, उसकी सेवाएं ले सकती है। कोर्ट ने कहा कि जंगल बचाने से महत्वपूर्ण कोई चीज नहीं हो सकती है, इसलिए, याचिकाकतार्ओं का कृत्य सराहनीय नहीं है।

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