हाईलाइट्स
जमीन और जंगल को बचाने के लिए आदिवासियों ने अंग्रेजों के खिलाफ चलाया था जंगल सत्याग्रह।
सिवनी के दुर्गाशंकर मेहता ने नमक बनाकर एमपी में की थी नमक आंदोलन की शुरुआत।
2 अक्टूबर 1942 को मंडलेश्वर में क्रांतिकारी बंदियों ने जेल तोड़कर अंग्रेजों के खिलाफ किया था सभा का आयोजन।
राज एक्सप्रेस, मध्यप्रदेश। भारत में अंग्रेजों से आजादी पाने के लिए कई आंदोलन चलाये गए थे। इन आन्दोलनों में देश के कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों की आहूति दी थी ऐसे ही मध्यप्रदेश के भी कई ऐसे स्वतंत्रता सेनानी है जिन्होंने आजादी के लिए चलाए गए आन्दोलनों में अपनी अहम भूमिका निभाई है। देश को आजाद कराने वाले महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस आदि अनेक स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में तो हमें हर जगह पढ़ने और देखने को मिल जाता है, लेकिन बहुत से ऐसे स्वतंत्रता सेनानी है जिसके बारे में ज्यादा उल्लेख नहीं मिलता है। 77 वां स्वंतत्रता दिवस के अवसर पर राजएक्सप्रेस आपको बता रहा है, मध्यप्रदेश के ऐसे ही गुमनाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की कहानी और उनका आजादी के आंदोलन में योगदान...।
मध्यप्रदेश का जंगल सत्याग्रह
साल 1930 में अपनी जमीन और जंगल को बचाने के लिए आदिवासियों ने अंग्रेजों के खिलाफ अहिंसा को अपनाते हुए जंगल सत्याग्रह किया। यह सत्याग्रह भारत के विभिन्न हिस्सों में किया गया था, जिसका व्यापक प्रभाव मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में देखने को मिला था। जबलपुर में सबसे पहले जंगल सत्याग्रह की रणनीति बनाई गई थी। जिसके तहत सिवनी, डुरिया, घोड़ा-डोंगरी (बैतूल) के आदिवासियों ने नमक सत्याग्रह के दौरान जंगल सत्याग्रह किया था। यह सत्याग्रह घोड़ा - डोंगरी में गजनसिंह कोरकू और बंजारी सिंह कोरकू के नेतृत्व में किया गया था। उनकी लड़ाई आज भी जारी है। वर्त्तमान में भी आदिवासी जंगल और जमीन को बचाने की जद्दोजहद में लगे हुए है।
जबलपुर झंडा सत्याग्रह 1923:
सबसे पहले मध्यप्रदेश और माँ नर्मदा की नगरी जबलपुर में झंडा सत्याग्रह की नींव रखी गई थी। स्वाधीनता संग्राम में झंडा सत्याग्रह की अहम भूमिका थी। इसकी शुरुआत जबलपुर शहर से हुई। असहयोग आंदोलन की तैयारी के लिए अजमल खां और कांग्रेसियों के सम्मान के साथ जबलपुर नगरपालिका भवन में तिरंगा फहराने के लिए रणनीति बनाई थी। जिसके तहत पूरे सम्मान के साथ भवन में झंडा फहराया गया था। इससे उस समय के पुलिस कमिश्नर ने इसका विरोध करते हुए झंडा उतारकर अपने पैरो से कुचल दिया था। इसी से आक्रोशित हुए स्वतंत्रता सेनानियों ने इसके खिलाफ आवाज उठाने का निश्चय किया। इसी के तहत पंडित सुंदरलाल, नाथूराम मोदी, सुभद्रा कुमारी चौहान, नरहरि अग्रवाल ने जबलपुर में जुलूस निकालकर प्रदर्शन किया था। विक्टोरिया भवन पर झंडा फहराने के लिए दो दस्ते बनाये थे। जो दो अलग- अलग रास्तों से होकर झंडा फहराने के लिए सक्रिय थे लेकिन पुलिस ने इस पर भी रोक लगा दी थी और बड़ा विवाद किया था। दूसरे दस्ते ने सफलता पूर्वक विक्टोरिया हॉल में झंडा फहरा दिया था।
जबलपुर में नमक आंदोलन :
जबलपुर में 6 अप्रैल 1930 को सेठ गोविंददास और द्वारिका प्रसाद मिश्रा ने नमक सत्याग्रह किया। इस सत्याग्रह में सिवनी जिले के दुर्गाशंकर मेहता ने गांधी चौक पर नमक बनाकर नमक सत्याग्रह की शुरू की। इसके बाद मध्यप्रदेश में आजादी की आग भड़क गई थी। मध्यप्रदेश में जबलपुर और सिवनी के अलावा खंडवा सीहोर, रायपुर आदि नगरों में भी नमक कानून तोड़ा गया। ऐसे कई स्वतंत्रता संग्राम में सेनानियों ने योगदान दिया था।
मध्यप्रदेश में भारत छोड़ो आंदोलन
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू होते ही देशभर में कांग्रेस नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। जबलपुर जिले के प्रमुख नेता सेठ गोविंद दास की गिरफ्तारी से स्थानीय लोगों में आक्रोश फैल गया था। जिले में तिलक भूमि पर विरोध सभा का आयोजन किया गया, इसके बाद सभा में शामिल लोगों को हिरासत में ले लिया लेकिन, लोगों का क्रांतिकारी उत्साह अनवरत था, क्योंकि अगले दिन उसी स्थान पर एक और विरोध सभा हुई।
अंग्रेज फ़ौज ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए कठोर कदम उठाए और आंसू-गैस बम का इस्तेमाल किया, इस बीच, स्थानीय प्रशासन ने ऐसी बैठकों पर अंकुश लगाने के लिए कर्फ्यू लगा दिया लेकिन वह स्थानीय लोगों की असहमति की आवाज़ को दबाने में विफल रही। सच्चे राष्ट्रवादी अंदाज में, भीड़ ने टेलीग्राफ और टेलीफोन तारों को बाधित कर दिया और एक पुलिस चौकी पर हमला कर दिया, जिसके कारण स्थानीय प्रशासन को घटनास्थल पर सेना को आमंत्रित करना पड़ा, जिसे सभी रणनीतिक बिंदुओं और सरकारी भवनों पर तैनात किया गया था। सेना की मौजूदगी के बावजूद दो जुलूस सड़कों पर मार्च करते रहे।
इन आन्दोलनों के अलावा मध्यप्रदेश में भारत छोड़ों आंदोलन (1942) में चलाया गया था जिसकी शुरुआत मध्यप्रदेश के विदिशा से हुई थी। जब मराठी नवयुवकों ने अंग्रेजों के विरुद्ध भारत छोड़ो की नीति अपनाई थी। महात्मा गांधी के 'करो या मरो' से प्रेरित होकर 2 अक्टूबर 1942 को मंडलेश्वर में क्रांतिकारी बंदियों ने जेल तोड़कर एक सभा का आयोजन किया था, जिसमें अंग्रेजों के विरुद्ध रणनीति बनाई थी। जेल बंदियों की इस क्रांति के बाद राजधानी भोपाल में नवाब के विरुद्ध भारत छोड़ो आंदोलन चलाया गया था। क्योंकि नवाब अंग्रेजों की नीति अपनाकर नगरवासियों पर अत्याचार और जुल्म ढाने लगा था। तीव्र भारत छोड़ो आंदोलन से घबराकर नवाब ने भारत से अपना विलय स्वीकार कर भारत छोड़ दिया था।
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