इंदौर। संगीत के माध्यम से साधक तैयार करने के लिए मैं कोशिश कर रहा हूं और सीनियर सिटीजन से लेकर साधु-संत तक संगीत सीखने में रुचि ले रहे हैं। भारत अब पुन: विश्वगुरु बनने की राह पर हैं। सनातन संस्कृति के आगे बढऩे के लिए अब साधकों को तैयार किए जाने की भी जरूरत है। ये बात लोकप्रिय गायक पद्मश्री कैलाश खेर ने बुधवार को इंदौर में रूबरू कार्यक्रम में भाग लेते हुए अभिनव कला समाज में कही।
कैलाश खेर ने आगे कहा कि भारत की आध्यात्मिक धरोहर को संगीत के माध्यम से पूरी दुनिया के सामने लाने के लिए ईश्वर ने उन्हें चुना है। उनके भारतीय संस्कृति से जुड़े संगीत को पहले स्थापित लोगों ने नकारा, लेकिन आज पूरी दुनिया उस पर झूम रही है। यह सिर्फ भगवान भोलेनाथ की कृपा, साधु-संतों की संगति से मिले आशीर्वाद और मिट्टी की सुगंध का असर है। उन्होंने कहा कि वे हर गीत में अपना हृदय और आत्मा को गाते हैं। भगवान भोलेनाथ के विशेष अनुग्रह से तैयार ज्योर्तिलिंग तीर्थों के गीत आज के युग के अनुरूप तैयार दृश्य-श्रृव्य आत्यात्मिक ग्रंथ हैं।
स्लैग भाषा के उपयोग पर बोले खेर:
पद्मश्री कैलाश खेर ने गीतों में स्लैग भाषा के उपयोग के प्रश्न पर कहा कि अच्छाई के साथ बुराई आ ही जाती है, जिसे छोडक़र आगे बढ़ जाना उचित है। स्टेट प्रेस क्लब के कार्यक्रम में खेर ने अपने लोकप्रिय गीतों- पांच बरस की मीराबाई लाडली…, बगडबम बमलहरी…आदि गीतों की संक्षिप्त प्रस्तुति देकर उपस्थित पत्रकारों, संगीतप्रेमियों और गणमान्य नागरिकों का दिल जीतकर आयोजन को चिर स्मरणीय बना दिया। कार्यक्रम से पूर्व कैलाश खेर ने दीप प्रज्ज्वलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
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