ग्वालियर। शहर की समस्याओ को लेकर नहीं बल्कि कई बार समीक्षा बैठके हो चुकी है ओर उसमें दिशा निर्देश भी दिए जाते रहे है, लेकिन उन निर्देशो पर कितना अमल हुआ उसको लेकर मॉनीटरिंग करने की कोई व्यवस्था नहीं होने से जमीनी हकीकत में कोई बदलाव देखने को नहीं मिल रहा है। हर बार होने वाली समीक्षा बैठक में अधिकारियों द्वारा आंकड़े देकर बताया जाता है कि जो निर्देश दिए गए थे उस पर बेहतर काम हुआ है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि न तो सड़को को जाम से मुक्ति मिली है ओर न ही शहर कचरा मुक्त दिख रहा है। हर काम सिर्फ समीक्षा बैठको तक सिमटकर रह गया है ओर आंकडेबाजी के खेल में अधिकारी समीक्षा करने वाले को ही भ्रमित करने का काम कर रहे है।
शहर की ट्रैफिक व्यवस्था को लेकर कई बार बैठके हो चुकी है ओर हर बैठक में कड़े निर्देश के साथ कहा जाता रहा है कि सड़के अब जाम से मुक्त हो जाएगी , लेकिन इस सख्त निर्देश के बाद भी शहर की हालत में कोई सुधार नहीं दिख रहा है ओर सडको पर जाम का नजारा तो अब आम हो गया है ओर यह शहरवासियो ने अब अपनी दिनचर्या में शामिल कर लिया है। शहर की सड़को से वायी तरफ मुड़ने के लिए रास्ता खुला रहना चाहिए जिससे रेड सिंग्नल होने पर वायी तरफ जाने वाले वाहन आसानी से निकल सके, लेकिन तमाम प्रयास के बाद भी वाया मोड फ्री नहीं हो पा रहा है। मजेदार बात तो यह है कि इस तरफ ट्रैफिक पुलिस भी कोई ध्यान नहीं दे रही है, क्योकि जिस चौराहे व तिराहे पर वाया मोड़ है उस स्थान से कुछ ही दूरी पर ट्रैफिक पुलिस के जवान व अधिकारी खड़े तो रहते है, लेकिन वह सिर्फ दो पहिया वाहन चालानी कार्यवाही तक सीमित है, इससे ऐसा लगता है कि ट्रैफिक पुलिस का काम अब सड़को के ट्रैफिक को बेहतर बनाने का छोड़कर सिर्फ राजस्व बढ़ौतरी के लिए चालानी कार्यवाही का रह गया है।
प्रभारी मंत्री तक दे चुके है सख्त निर्देश
शहर की ट्रैफिक व्यवस्था को लेकर जिले के प्रभारी मंत्री तुलसी सिलावट तक सख्त निर्देश दे चुके है, क्योंकि वह जब भी शहर आते है तो सड़को की जाम हालत को देख चुके है जिसके चलते ट्रैफिक व्यवस्था बेहतर बनाने की निर्देश अधिकारियो को दिए थे, लेकिन उसके बाद भी जमीनी हकीकत जैसी थी वैसी ही बनी हुई है। हर होने वाली बैठको में प्रभारी मंत्री जब शहर की ट्रैफिक व्यवस्था को लेकर सवाल करते है तो अधिकारी आंकड़ेबाजी के खेल में उनको भ्रमित कर यह बता देते है कि शहर की ट्रैफिक व्यवस्था काफी बेहतर हुई है। इससे लगता है कि अधिकारी सिर्फ ओर सिर्फ आंकडे के हिसाब से काम कर रहे है, क्योकि उनको जमीनी आधार क्या है उसके बारे में कोई जानकारी तक नहीं है जब वह शहर में घूंमते हुए सड़क पर जाम व वाया मोड खाली नहीं मिलता।
स्वच्छता को लेकर भी ऐसे ही हालात
शहर को स्वच्छता के क्षेत्र में अब्बल लाने के लिए प्रयास की बात तो हर कोई करता है, लेकिन शहर में क्या स्थिति है इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा है जबकि स्वच्छता को लेकर शहर में लाखो की रााशि खर्च की जा रही है। स्थिति यह है कि निगमायुक्त हर्ष सिंह ने हर दिन निरीक्षण करना शुरू कर दिया तो जिसके पास स्वच्छता की जिम्मेदारी है उनकी पोल खुल रही है, क्योंकि निगमायुक्त को जहां भी जाते है वहां उनको गंदगी देखने को मिल रही है। शहर की साफ सफाई को लेकर निगम के अधिकारी प्रतिदिन निरीक्षण कर वेतन काटने के निर्देश देने का काम कर रहे है, लेकिन सवाल यह है कि इन निर्देश से फायदा क्या हो रहा है, क्योंकि सफाई व्यवस्था जो थी वैसी ही बनी हुई है। इसके पीछे कारण यह भी है कि जो सफाई कर्मचारी किसी मौहल्लें में काम कर रहे है वह वहां सालो से जमे हुए है जिसके कारण वह अपने हिसाब से काम करते है। सुबह के समय शहर के अधिकांश मौहल्लो में जाकर देखा जाएं तो यह नजारा देखने को मिल जाएगा कि सफाई करने के बाद भी गंदगी देखने को मिलेगी। अब क्या कारण है कि सफाई कर्मचारियो को एक-मौहल्ले से दूसरे मौहल्ले में बदलने का काम क्यों नहीं किया जा रहा? सवाल कई है, लेकिन जवाब हर बैठक में यही दिया जाता है कि ट्रैफिक से लेकर सफाई की व्यवस्था बेहतर हुई है।
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