ग्वालियर, मध्यप्रदेश। प्रदेश स्तर के करीब 5 कार्यालय बने तो ग्वालियर है, लेकिन उसमें से दो कार्यालय तो ऐसे है जिनके मुखिया को ग्वालियर रास नहीं आ रहा है, यही कारण है कि वह भोपाल कैम्प ऑफिस में बैठकर ही अपना काम कर रहे है। मुखिया के ग्वालियर मुख्यालय में न बैठने से कामकाज तो प्रभावित होता ही है साथ ही विभाग से संबंधित फाइलो को भोपाल ले जाने में भी खर्चा वहन करना पड़़ता है। आबकारी एवं परिवहन विभाग के मुखिया अधिकांश समय भोपाल में ही बिताते है जिससे मुख्यालय में अन्य अधिकारी अपने हिसाब से काम कर रहे है।
कहने को परिवहन मुख्यालय ग्वालियर में है पर अब यह सिर्फ नाम का रह गया है, क्योंकि परिवहन अधिकारी मुख्यालय में बैठने की जगह भोपाल में बैठकर काम को निपटाने में लगे हुए है। अधिकारियों के न बैठने से कर्मचारी अपने हिसाब से कार्यालय आते जाते है, जिसके कारण काम के संबंध में आने वाले लोगो को निराश होकर वापस लौटना पड़ता है। यही कुछ हाल आबकारी विभाग का है। आबकारी आयुक्त तो महीनो में एक-दो बार के लिए ही मुख्यालय आते है, जबकि अधिकांश समय भोपाल में ही बैठकर काम करते है। आबकारी विभाग से संबंधित फाइलो को भोपाल ले जाने के लिए कुछ कर्मचारियो की रोटेशन के हिसाब से ड्यूटी लगा दी गई है जो फाइले ले जाने का काम करते है। बताया गया है कि जब आबकारी विभाग के ठेके हो रहे थे उस समय भी मुखिया मुख्यालय छोड़़ भोपाल में डटे हुए थे और ऐसे में कई ठेकेदार ऐसे थे जिनको परेशानी हुई तो उनकी शिकायत सुनने वाला कोई नहीं था।
बताया गया है कि प्रदेश के कई मुख्यालय ग्वालियर में है जिसमे आबकारी, भू अभिलेख एवं बंदोबस्त के साथ ही परिवहन विभाग का दफ्तर है, लेकिन आबकारी एवं भू अभिलेख एवं राजस्व मंडल के अलावा परिवहन विभाग का मुख्यालय अधिकारी विहीन बना रहता है। परिवहन विभाग एवं आबकारी विभाग के आयुक्त का तो अधिकांश समय भोपाल में ही डेरा रहता है। अधिकारियो के न बैठने से परिवहन व आबकारी संबंधी काम से आने वाले लोगो को निराश होकर वापस लौटना पड़ता है।
फाइले भोपाल ले जाने होता खर्चा अधिक :
अधिकारियो के मुख्यालय पर न बैठने से कर्मचारयो को जरूरी फाइले भोपाल से लेकर इंदौर तक ले जाना पड़ती है। इन फाइलो को बाहर ले जाने के लिए विभाग को टीए-डीए के रूप में अधिक खर्चा उठाना पड़ रहा है। लेकिन इन खर्चे को बचाने की जगह उसे अधिक करने में विभाग अपना रोल निभाने में लगा हुआ है। इस व्यवस्था से शासन को नुकसान हो रहा है, लेकिन संबंधित मंत्री भी इस तरफ ध्यान नहीं दे रहे है।
अधिकारी के न होने से काम हो रहा प्रभावित :
मुख्यालय पर अधिकारियों के मौजूद न रहने से कई शासकीय काम प्रभावित हो रहे है। इसके कारण जो काम शासन के पास दो दिन में पहुंचना चाहिए उसकी रिपोर्ट शासन तक पहुंचने में कई दिन लग जाते है। कर्मचारी भी अपने हिसाब से काम करने में लगे हुए है, क्योंकि उनको पता है कि अधिकारी मौजूद नहीं है तो उनसे कोई कुछ कहने वाला नहीं।
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