ग्वालियर, मध्यप्रदेश। ग्वालियर में प्रदेश का पहला ऐसा चिड़ियाघर है। जहां पेड़ अपनी जानकारी स्वयं देते हैं। इसके लिए आपको अपने मोबाइल पर एक क्लिक करना होता है, पेड़ से संबंधित पूरा डेटा आपकी मोबाइल स्क्रीन पर आ जाएगा। हालांकि इसकी शुरूआत जेयू के पर्यावरण विज्ञान अध्ययनशाला से हुई थी। अब इसका विस्तार होने लगा है। चिड़ियाघर में पेड़ों पर बार कोड लगाने का काम जेयू के पर्यावरण विभाग के छात्र ने किया है।
चिड़ियाघर में बार कोड लगाने वाले जेयू के पर्यावरण विज्ञान अध्ययनशाला विकास पाराशर ने बताया कि पेड़ों पर बार कोड लगाने की शुरूआत जीवाजी विवि के पर्यावरण विभाग से की थी। यह कार्य स्मार्ट सिटी और नगर निगम अधिकारियों को भी पसंद आया और उन्होंने मुझे चिड़ियाघर में पेड़ों पर बार कोड लगाने का काम दिया। विकास ने पहले सर्वे किया, उसके बाद उनकी कोडिंग की, फिर उसके लिए बार कोड तैयार कर उन्हें सॉफ्टवेयर के माध्यम से अटैच कर दिया। इस पूरी प्रक्रिया में लगभग दो महीने का समय लगा। विकास के अनुसार चिड़ियाघर में करीब 200 पेड़ों पर बार कोड लगाए हैं।
स्कैन करने पर आसानी से मिल जाती है जानकारी :
पर्यावरण विज्ञान के विभागाध्यक्ष डॉ. हरेंद्र शर्मा ने बताया कि कई पेड़ों के बारे में अधिकतर लोग नहीं जानते। पेड़ों पर बार कोड लगाने से उसकी स्केनिंग होगी और मोबाइल की स्क्रीन पर उस पेड़ की पूरी जानकारी उपलब्ध हो जाएगी। इसमें उस पेड़ का सामान्य नाम, उसका वानस्पतिक नाम, उसकी फैमिली, उसकी उम्र, उसके औषधीय व अन्य गुण सहित पूरा डेटा मोबाइल की स्क्रीन पर आ जाएगा। इस पूरी प्रोसेस में महज कुछ सेकंड ही लगते हैं। डॉ. शर्मा ने बताया कि इस डिजिटलाइजेशन का फायदा छात्रों, शोधार्थियों के साथ आमजन को भी मिलेगा।
इन पेड़ों पर किया अटैच :
नीम, आंवला, बादाम, सिरस सागौन, पीपल , साल, अशोक, पलाश, कदंब, यूकिलिप्टिस, रेड बड लीफ और बॉटल पाम सहित अन्य तरह के पेड़ों पर बार कोड लगाए गए हैं।
कम्पनी से लगवाने पर आता लाखों रूपए का खर्चा :
नगर निगम या स्मार्ट सिटी यदि यही कार्य किसी कम्पनी से करवाते तो इसमें लाखों रूपए का खर्चा आता। लेकिन विकास ने 20 हजार रूपए में 200 पेड़ों पर बार कोड़ लगा दिए। इससे छात्र को रोजगार भी मिल गया और निगम का लाखों रूपए का खर्चा होने से भी बच गया।
बैजाताल पर लगाने की प्लानिंग :
चिड़ियाघर के बाद अब बैजाताल पर लगे पेड़ों पर बार कोड लगाने की प्लानिंग की जा रही है, क्योंकि यहां शाम के समय काफी संख्या में सैलानी सैर करने के लिए आते हैं। यहां आने वाले लोगों को भी बार कोड के माध्यम से पेड़ों की जानकारी देने की तैयारी हो गई है। जल्द ही यहां भी बार कोड लगाने का काम शुरू हो जाएगा।
इनका कहना है :
हम सभी को पेड़ों की जानकारी होना चाहिए, लेकिन सभी पेड़ों के बारे में जानकारी होना असंभव है। लेकिन हम पेड़ पर लगे बार कोड को स्कैन कर हम पता कर सकते हैं कि यह पेड़ किस का है और इसके क्या-क्या लाभ हैं। छात्र द्वारा पेड़ों पर बार कोड़ लगाने का काम एक अच्छी पहल है।डॉ.हरेन्द्र शर्मा, विभागाध्यक्ष पर्यावरण विज्ञान अध्ययनशाला जेयू
ग्वालियर का चिड़ियाघर प्रदेश का पहला ऐसा चिड़ियाघर बन चुका है। जहां पेड़ अपनी जानकारी स्वयं देंगे। पेड़ पर लगे बार कोड को स्कैन कर हम पेड़ से जुड़ी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। मैंने पेड़ पर बार कोड़ लगाने का काम जेयू के पर्यावरण विज्ञान अध्ययनशाला से की, क्योंकि वहीं का मैं छात्र हूं।विकास पाराशर, छात्र पर्यावरण विज्ञान अध्ययनशाला
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