ग्वालियर का बजट होगा संशोधित Raj Express
मध्य प्रदेश

Gwalior : महापौर, सभापति एवं पार्षद निधि के लिए परिषद में लाना होगा प्रस्ताव, बजट होगा संशोधित

वित्तीय वर्ष 2022-23 के बजट में महापौर, सभापति एवं पार्षद निधि का नहीं हुआ है समावेश। उपलब्ध बजट के आधार पर ही दी जा सकती है निधि। परिषद की बैठक में संशोधन के बाद ही निर्धारित हो सकती है निधि।

Deepak Tomar

ग्वालियर, मध्यप्रदेश। नगर निगम चुनाव के बाद महापौर एवं पार्षद चुनकर तो आ गए हैं। लेकिन उनकी निधि का निर्धारण नहीं हो सका है। वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए बजट पारित हो चुका है, जिसमें महापौर, सभापति एवं पार्षद निधि का उल्लेख नहीं है। अब आधा वर्ष बीतने के बाद निधि निर्धारित करने के लिए परिषद में प्रस्ताव पारित करना होगा। इसके बाद दूसरी बैठक बुलाकर उसमें बजट का संशोधन प्रस्ताव पारित किया जाएगा। तभी निधि निर्धारित हो सकती है। इस वर्ष के लिए किसकी निधि कितनी पारित की जाए यह उपलब्ध बजट के आधार पर ही तय हो पाएगा।

दरअसल पिछले कई वर्षों से नगरीय निकाय चुनाव नवंबर-दिसंबर में ही होते चले आ रहे हैं। नई परिषद 10 जनवरी को शपथ ग्रहण करती थी। इसी दौरान नए वित्तीय वर्ष के लिए निगमायुक्त की ओर से बजट प्रस्तुत होता था,जिस पर मेयर इन काउंसिल(एमआईसी) में चर्चा होती थी। एमआईसी बजट पर चर्चा एवं संशोधन कर परिषद में प्रस्तुत करती थी। परिषद में चर्चा के बाद नए वित्तीय वर्ष के लिए बजट पारित किया जाता था। यही वजह थी कि नई परिषद को निधि के लिए परेशान नहीं होना पड़ता था। लेकिन इस बार नगरीय निकाय चुनाव वित्तीय वर्ष के चार माह बाद हुए हैं। वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए बजट मार्च में पारित हो गया था। इसमें महापौर, सभापति एवं पार्षद निधि के लिए कोई बजट नहीं रखा गया। अब अगस्त के प्रथम सप्ताह में महापौर सहित पार्षदों की शपथ होगी। इसके बाद परिषद में सभापति का चुनाव होगा। इस प्रक्रिया के बाद निधि निर्धारित करने के लिए परिषद की बैठक बुलाई जाएगी। इसमें पार्षद तय करेंगे कि इस वर्ष के लिए महापौर,सभापति एवं पार्षदों की निधि कितनी रखी जाए।

आर्थिक स्थिति के आधार पर निगमायुक्त रखेंगे प्रस्ताव :

महापौर, सभापति एवं पार्षद निधि निर्धारित करने के लिए परिषद में बैठक भले ही हो जाए। लेकिन निधि निर्धारित निगम की आर्थिक स्थिति के अनुसार ही होगी। वर्तमान में कितना बजट निगम के पास उपलब्ध है। क्या शासन निधि निर्धारित करने की स्वीकृति दे रहा है। अगर बजट की कमी हुई तो शासन द्वारा निधि निर्धारित करने पर रोक लगाई जा सकती है। निगमायुक्त अगर बजट की कमी सामने रखते हैं तो नए वित्तीय वर्ष में ही निधि निर्धारित करने पर भी विचार हो सकता है।

निगम एक्ट में नहीं है निधि का प्रावधान :

जानकारों की माने तो नगर निगम एक्ट में कहीं भी महापौर निधि, सभापति निधि या पार्षद निधि का उल्लेख नहीं है। परिषद की बैठक में सर्व सम्मति से निधि निर्धारित करने का प्रस्ताव पारित होता है और इस प्रस्ताव पर शासन द्वारा स्वीकृति दी जाती है तभी निधि निर्धारित की जा सकती है। इस बार की निधि नए वित्तीय वर्ष में तय की जायगी या परिषद की स्वीकृति के अनुसार शासन द्वारा निर्धारित होगी यह आने वाले समय में ही पता चल सकेगा।

किसकी कितनी निधि होती है स्वीकृत ऐसे समझे :

  • एक वर्ष की महापौर निधि 5 करोड़ रुपये।

  • सभापति निधि 2 करोड़ रुपये।

  • पार्षद निधि 45 लाख रुपये।

  • 5 साल में महापौर कुल 25 करोड़ रुपये निधि के रूप में खर्च करते हैं।

  • 5 साल में सभापति 10 करोड़ और एक पार्षद 2 करोड़ 25 लाख रुपये खर्च करते हैं।

  • एक वित्तीय वर्ष में अगर तीनों की निधियां मिला दी जाएं तो 36 करोड़ रुपये निगम पर भार बढ़ता है।

  • एक पार्षद की निधि 45 लाख है और 66 पार्षद हैं।

  • 66 पार्षदों की निधि एक साल में 29 करोड़ 70 लाख होगी।

  • महापौर के 5 करोड़ और सभापति के 2 करोड़ मिलाकर 7 करोड़ निधि बनती है।

  • 66 पार्षद, एक महापौर और एक सभापति की निधि मिलाकर कुल 36 करोड़ 70 लाख रुपये होगी।

इनका कहना है :

अब निधि का निर्धारण परिषद द्वारा किया जाएगा। कितना बजट उपलब्ध है और इस वर्ष के लिए महापौर, सभापति एवं सभी पार्षद कितनी राशि स्वीकृत कराते हैं यह उनके अधिकार क्षेत्र का मामला है। परिषद की सहमति से बजट में संशोधन किया जा सकता है।
आशीष सक्सैना, संभागायुक्त
परिषद द्वारा हमसे जो भी जानकारी मांगी जाएगी हम उपलब्ध करा देंगे। वर्तमान में कितना बजट हमारे पास उपलब्ध है और बाकी बचे वित्तीय वर्ष के लिए कितने बजट की और आवश्यकता है, इसकी पूरी जानकारी परिषद में दे दी जाएगी। परिषद जो भी निर्णय लेगी हम उसका पालन करेंगे।
किशोर कन्याल, निगमायुक्त
हर बार 10 जनवरी को परिषद की शपथ ग्रहण सभा आयोजित होती थी। इसके बाद बजट पर चर्चा होती और मार्च में बजट पारित कर दिया जाता था। तीन महीने बाद नया वित्तीय वर्ष आ जाता था, इसलिए महापौर, सभापति एवं पार्षदों को निधि की कोई परेशानी नहीं होती थी। लेकिन इस बार जुलाई में चुनाव हुए और बजट पहले ही मार्च में पारित किया जा चुका था। अब महापौर, सभापति एवं पार्षद निधि का निर्णय परिषद की बैठक में किया जाएगा। वैसे देखा जाए तो निगम एक्ट में महापौर, सभापति एवं पार्षद निधि का कहीं कोई उल्लेख नहीं है। अगर सरकार एक्ट को मान्य करते हुए निधि निर्धारित न करना चाहे तो ऐसा भी किया जा सकता है। अब इस वितीय वर्ष में आर्थिक स्थिति क्या है इस आधार पर निगमायुक्त एवं शासन द्वारा निर्णय लिया जा सकता है।
कृष्णराव दीक्षित, पूर्व नेता प्रतिपक्ष, नगर निगम

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