इंदौर। एक बार फिर धीरे-धीरे फ्लू के संक्रमितों की संख्या बढऩे लगी है। वर्तमान में भले ही कम, लेकिन लगातार संक्रमित मरीज सामने आ रहे हैं। वहीं शहर में इन दिनों बड़ी संख्या में कोविड के लक्षण वाले मरीजों को देखा जा रहा है, जो इलाज के लिए डॉक्टरों के क्लीनिक, अस्पतालों की ओपीडी में आ रहे हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि एक बार फिर समय आ गया है कि जो सर्दी-खांसी, बुखार से पीडि़त हैं वो मास्क लगाएं, हाथ न मिलाएं। इसके साथ ही आमजन भी भीड़ वाले स्थानों पर जाने पर मॉस्क का उपयोग करें। इससे जहां कोविड संक्रमण से तो बचेंगे, इसके साथ ही एच3एन2 के संभावित खतरे के साथ मौसमी फ्लू से बचेंगे।
इस समय फ्लू से मिलते- जुलते लक्षणों वाली बीमारी एच3एन2 इन्फ्लूएंजा वायरस की वजह से हो रही है। इसको लेकर लोगों में बड़ी दुविधा है। कोई इसे कोरोना से जोड़ रहा है तो कोई इसे सामान्य खांसी, जुकाम समझ रहा है। इसी दुविधा को दूर करने का प्रयास किया है भूतपूर्व संयुक्त संचालक एवम राज्य क्षय अधिकारी डॉ अतुल खराटे ने।
15 दिन तक असर रहता है एच3एन2 का
डॉ. खराटे का कहना है कि इस समय लोगों में तेज बुखार, खांसी एवं गले में खराश के लक्षण पाये जा रहे हैं तथा कभी-कभी उल्टी व दस्त भी हो रहे हैं। सामान्यत: दवाओं का इन पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ रहा है। मरीज परेशान हैं कि उनकी खांसी, जुकाम ठीक क्यों नहीं हो रही है। वैसे तो यह समस्या हर उम्र के लोगों में है किन्तु 15 वर्ष या इससे कम आयु के बच्चों एवं किशोरों तथा 55 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों व बुजुर्गों को यह समस्या ज्यादा हो रही है। ऐसे लोग जिनकी इम्यूनिटी कमजोर है या वह किसी अन्य बीमारी से पीडि़त हैं तो ऐसे लोगों को भी एचए इन्फ्लूएंजा वायरस ज्यादा प्रभावित कर रहा है। फ्लू के अन्य वायरस की तुलना में एच3एन2 इन्फ्लूएंजा वायरस की संक्रामकता एवं लक्षणों की तीव्रता ज्यादा है किन्तु इसकी मारक क्षमता कम है। पहले के फ्लू में 3 से 7 दिनों में लक्षण खत्म हो जाते थे और मरीज स्वस्थ हो जाते थे, किन्तु एच3एन2 इन्फ्लूएंजा के लक्षण मरीजों में लम्बे समय तक लगभग 15 दिनों तक भी रहते हैं। अगर इतिहास में देखें तो वर्ष 1918-19 में स्पेनिश फ्लू, 2002-03 में सार्स, 2005 में फ्लू, 2009-10 में स्वाइन फ्लू, 2014-15 में इबोला और 2019 से कोविड-19 का गंभीर रूप सामने आया है।
एंटीबायोटिक का नहीं होता खास असर
डॉ. खराटे का कहना है कि उपचार की बात की जाए तो जैसे ही लोगों को वायरस के शुरुआती लक्षण दिखने लगें तो कुछ जरूरी बातों को ध्यान में रखकर इससे बचा जा सकता है। सबसे पहले तो अपने चिकित्सक से परामर्श लें। तेज बुखार होने की स्थिति में गीली तौलिया से पूरी शरीर को पोछ लें (होल बॉडी स्पंजिंग) जिससे जल्द ही शरीर का तापमान सामान्य हो जायेगा। ज्यादा से ज्यादा पानी पीयें, तरल पदार्थो का सेवन करें और शरीर को हाईड्रेट रखें। ठंडी चीजों से दूर रहें। गर्म पानी का भाप दिन में कम से कम दो बार अवश्य लें। इसमें एन्टीबायोटिक का कोई खास रोल नहीं होता है, इसलिए किसी भी प्रकार की एन्टीबायोटिक का इस्तेमाल बिना डॉक्टर के परामर्श से न करें। बच्चों, लम्बी बीमारी से ग्रसित रोगियों एवं बुजुर्गों को चिकित्सक की सलाह से एच3एन2 इन्फ्लूएंजा वायरस का टेट्रावेलन्ट टीका प्रतिवर्ष लगवाना चाहिए।
इन्फ्लूएंजा के एक टीके से एच1एन1, एच2एन2 के साथ ही एच3एन2से भी बचाव होगा । इन्फ्लूएंजा वायरस से बचने के लिए खानपान में उन चीजों को शामिल करें जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती हो, जैसे- हल्दी, नींबू, आंवला, हरी सब्जियां, फल आदि। यह शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मददगार होते हैं। जिन लोगों को खांसी, जुकाम और बुखार हो ऐसे लोगों से दूरी बनाकर रखें, पास जाना हो तो मास्क का उपयोग करें। भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर जाने से बचें। ध्यान रखें जब भी किसी वस्तु को छुएं तो हाथों को साबुन से धोएं। कोविड अनुरूप व्यवहार को एक बार फिर अपनायें।
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