इंदौर, मध्यप्रदेश। समय अवधि पूरी होने के बाद भी पार्षद चुनाव को लेकर दायर याचिकाओं का निराकरण नहीं हो सका है। नगर निगम के पिछले चुनाव 2015 में हुए थे अलग-अलग मुद्दों और अनियमितताओं को लेकर करीब आधा दर्जन याचिकाएं न्यायालय पहुंची थीं, लेकिन इनमें से ज्यादातर में याचिकाकर्ता को अब भी न्याय मिलने का इंतजार है।
पांच साल का कार्यकाल पूरा किया है :
निगम परिषद में रहते हुए पांच साल का कार्यकाल पूरा किया है। इसके बाद भी दो साल बीत गए अंतिम निराकरण नहीं हो सका है।
निर्वाचन को चुनोती देने वाली याचिका 6 माह तक दायर की जा सकती है :
घोषित होने के बाद छह माह तक निर्वाचन को चुनौती देने वाली याचिका न्यायालय में दायर की जा सकती है, लेकिन इन याचिकाओं के अंतिम निराकरण की कोई समय सीमा तय नहीं है। यही वजह है कि जिसके निर्वाचन को चुनौती देते हुए ये याचिकाएं दायर होती हैं उनका कार्यकाल समाप्त होने के बाद तक जाता है। ये निराकृत नहीं होतीं। ऐसे में याचिका दायर करने का उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है।
विधायक-सांसद चुनाव को चुनोती देने वाली याचिका लंबित :
विधानसभा और संसदीय चुनाव को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं भी न्यालयों में सालों से लंबित हैं।
7 साल बीच चुके है :
2015 में हुए नगर निगम चुनाव में एडवोकेट शैलेंद्र द्विवेदी ने वार्ड 47 से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा था। वे भाजपा के अजयसिंह नरूका से हार गए थे। याचिका दायर की याचिका अब भी लंबित है। इसी प्रकार 2015 में द्रविड़ नगर वार्ड से कांग्रेस प्रत्याशी रहे सुनील पाल चुनाव हार गए। भाजपा के सुधीर देड़गे ने उन्हें करीब साढ़े तीन से मतों से हराया था। निर्वाचन में अनियमितता का आरोप लगाते हुए पाल ने जिला न्यायालय में याचिका दायर की, जो वर्तमान में लंबित है। आंबेडकर नगर वार्ड से भाजपा के सूरज कैरो कांग्रेस के बदशाह मिमरोट से करीब सवा सौ मतों से चुनाव जीते थे। मिमरोट ने निर्वाचन में गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए जिला न्यायालय में फिलहाल हाई कोर्ट में लंबित है।
एडवोकेट अंशुमन श्रीवास्तव का कहना है कि चुनाव याचिकाओं के अंतिम निराकरण के लिए समय सीमा तय होना चाहिए याचिकाएं निराकृत होते तक याचिका दायर करने का मूल उद्देश्य ही खत्म हो जाता है।
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