भोपाल 80 शिक्षकों के खिलाफ FIR के दिए आदेश  RE- Bhopal
मध्य प्रदेश

लोक शिक्षण संचानालय ने प्राथमिक जांच के बाद नौकरी पा चुके 80 शिक्षकों के खिलाफ FIR के दिए आदेश

FIR Against Teachers: सबसे ज्यादा फर्जीवड़ा मुरैना-ग्वालियर जिले में हुआ है। लोक शिक्षण संचानालय की जांच में सामने आया कि फर्जी दिव्यांगता प्रमाण-पत्र पंद्रह से बीस हजार रुपए में बनवाए गए हैं।

Neeraj Gour

भोपाल। स्कूल शिक्षा विभाग में प्रायवेट लिमिटेड कंपनी की तरह चल रही भर्ती प्रक्रिया में शिक्षक भर्ती घोटाला सामने आया है। कई अभ्यर्थियों ने दिव्यांगता का प्रमाण-पत्र लगाकर नौकरी हासिल कर ली। लोक शिक्षण संचानालय ने प्राथमिक जांच के बाद नौकरी पा चुके 80 शिक्षकों के खिलाफ एफआईआर करने के आदेश दिए हैं। सबसे ज्यादा फर्जीवड़ा मुरैना-ग्वालियर जिले में हुआ है। लोक शिक्षण संचानालय की जांच में सामने आया कि फर्जी दिव्यांगता प्रमाण-पत्र पंद्रह से बीस हजार रुपए में बनवाए गए हैं।

मध्य प्रदेश में कई सालों बाद वर्ष 2018 से शिक्षक भर्ती प्रक्रिया शुरू हुई है। 2018 चयन प्रक्रिया शुरू होने के बाद से आज दिनांक तक भर्ती मामले में उलझते रहे है। अब ताजा मामला दिव्यांगता प्रमाण-पत्र के आधार पर फर्जी तरीके से नौकरी हासिल करने का है। प्राथमिक जांच के बाद शिक्षक भर्ती घाटाले में नौकरी पा चुके 80 उम्मीदवारों के खिलाफ लोक शिक्षण संचानालय ने एफआईआर करने के लिए कहा है। इसमें 60 स्कूल शिक्षा विभाग और 17 ट्राइबल विभाग में नौकरी पा चुके थे। तीन उम्मीदवारों के दस्तावेजों में ओवरराइटिंग हुई है।

इन दस्तावेजों की जांच की जा रही कि यह कूटचरित है या नहीं। लोक शिक्षण की प्राथमिक जांच में सामने आया कि फर्जी प्रमाण-पत्र अभ्यर्थियों ने पंद्रह से बीस हजार में बनवाए है। हालांकि मामले की पुलिस जांच के बाद ही स्थिति स्पष्ट रूप से सामने निकलकर आ सकेगी। लोक शिक्षण में भर्ती काम देख रही अपर संचालक डा. कामना आचार्य से बात करने के लिए उनके मोबाइल नंबर पर संपर्क किया गया, लेकिन उनकी तरफ से कोई जबाव नहीं मिला।

ऐसे खुला फर्जीवाड़े का राज

शिक्षक भर्ती परीक्षा में दिव्यांग कोटे में आरक्षित 755 पदों में से 450 मुरैना जिले से हैं। इनमें से ज्यादातर के दिव्यांगता सर्टिफिकेट हजीरा ग्वालियर और मुरैना से बनवाए गए हैं। मध्य प्रदेश कर्मचारी चयन मंडल द्वारा इन सर्टिफिकेट के फर्जी बताया जा रहा है। जितने भी दिव्यांगता प्रमाण-पत्र लगे है, वे सभी असली है। डॉक्टर के सिग्नेचर ओरिजिनल हैं, लेकिन लेन-देन करके बनाए गए हैं, लोगों से पैसे लेकर उन्हें वह दिव्यांगता बता दी गई है जो उन्हें है ही नहीं। इसमें फर्जी रूप से प्रमाण-पत्र बनवाने वाले उम्मीदवारों के साथ डाक्टर भी जिम्मेदार हैं।

सरकारी अस्पतालों में आडियोलाजिस्ट नहीं, लेकिन बन गए प्रमाण-पत्र

ग्वालियर-चंबल संभाग सहित टीकमगढ़, छतरपुर जिलों में बहरे या कम सुनने का दावा करने वाले लोगों की जांच के लिए सरकारी अस्पतालों में ऑडियोलॉजिस्ट पदस्थ नहीं है। इसके चलते बैरा और ऑडियोमेट्री की जांच के लिए जिला विकलांग पुनर्वास केंद्रों से ग्वालियर के जेएएच (जयारोग्य चिकित्सालय) भेजना पड़ता है। वहां से ऑडियोमेट्री या बैरा रिपोर्ट आवेदक द्वारा ही बोर्ड के सामने पेश किया जाता है। बोर्ड ने भी इस जांच रिपोर्ट का प्रमाणीकरण करवाए बिना विकलांग प्रमाण पत्र जारी कर दिया। सूत्रों की माने, तो इसी बात का फायदा उठाकर फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र बनाने में उपयोग किया गया। जांच में ये तथ्य भी सामने आए हैं कि कुछ शिक्षकों ने खुद से तैयार की गई ऑडियोमेट्री और बैरा रिपोर्ट के आधार पर बोर्ड से दिव्यांग प्रमाण पत्र हासिल किए हैं। प्रारंभिक जांच में सामने आया है कि इस तरह की रिपोर्ट 15 से 20 हजार रुपए में तैयार हो जाती है।

प्रायवेट लिमिटेड कंपनी की तरह बनकर रह गई भर्ती

स्कूल शिक्षा विभाग में भर्ती प्रायवेट लिमिटेड कंपनी की तरह बनकर रह गई है। भर्ती का काम अपर संचालक डा. कामना आचार्य देख रही है। पूर्व में विभागीय मंत्री इंदर सिंह परमार ने अपर संचालक आचार्य का ट्रांसफर भी लोक शिक्षण से कर दिया था। लेकिन दबाव बनाकर फिर से वहीं काम देखने लगी। इस भर्ती काम में रमसा के माध्यम से 75 साल के बुजुर्ग तक लगे हुए है। नतीजा यह है कि स्कूल शिक्षा विभाग एक भी भर्ती प्रक्रिया बिना अभ्यर्थियों के आंदोलन के पूरी नहीं हुई है। वर्तमान में भी अभ्यर्थी आंदोलन-प्रदर्शन आए दिन कर रहे है।

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