मध्य प्रदेश की पांच सैन्य छावनी परिषद होंगी खत्म Sudha Choubey - RE
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रक्षा मंत्रालय का बड़ा फैसला, मध्य प्रदेश की पांच सैन्य छावनी परिषद होंगी खत्म

भोपाल, मध्य प्रदेश। आज रक्षा मंत्रालय ने बड़ा फैसला किया है। खबर है कि, मध्यप्रदेश में महू समेत पांचों सैन्य छावनी परिषद खत्म होंगी।

Sudha Choubey

भोपाल, मध्य प्रदेश। आज रक्षा मंत्रालय ने बड़ा फैसला किया है। खबर है कि, मध्यप्रदेश में महू समेत पांचों सैन्य छावनी परिषद खत्म होंगी। उसके स्थान पर सिविल एरिया के लिए पालिका का गठन होगा। इस फैसले से जबलपुर, मुरार (ग्वालियर), महू, पचमढ़ी, सागर के सैन्य छावनी खत्म होगी। मंत्रालय का तर्क है रक्षा बजट का बड़ा हिस्सा छावनियों के क्षेत्रों के विकास पर खर्च हो रहा है।

बता दें कि, रक्षा मंत्रालय के इस फैसले के बाद छावनी परिषद सैन्य क्षेत्र मिलिट्री स्टेशन में तब्दील हो जाएगी। सिविल एरिया के लिए लिए पालिका का गठन होगा। एमओडी ने सबसे पहले हिमाचल के कांगड़ा जिले में स्थित योल छावनी परिषद का अस्तित्व समाप्त करने का आदेश जारी किया है।

रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, सिविल एरिया के लिए पालिका का गठन होगा। सबसे पहले हिमांचल के कांगड़ा जिले में स्थित योल छावनी परिषद का अस्तित्व खत्म करने का आदेश एमओडी द्वारा जारी किया गया है। जोधपुर स्थित रक्षा संपदा विभाग के सूत्रों के मुताबिक, आने वाले दिनों में नसीराबाद छावनी परिषद को भंग करने का आदेश जारी होगा। सिविल एरिया, सैन्य एरिया, आबादी, वार्ड सहित समस्त महत्वपूर्ण जानकारियां एमओडी को भेज दी गई हैं।

जानकारी के अनुसार, रक्षा मंत्रालय ने देशभर में 62 सैन्य छावनी परिषदों को समाप्त करना शुरू कर दिया है। मंत्रालय का तर्क है रक्षा बजट का बड़ा हिस्सा छावनियों के क्षेत्रों के विकास पर खर्च हो रहा है। छावनियों के नागरिक क्षेत्रों के विस्तार के लिए सेना की जमीनों की जरूरत पड़ती है। इस फैसले से मप्र के जबलपुर, मुरार (ग्वालियर), महू पचमढ़ी, सागर की सैन्य छावनी परिषद खत्म होंगी। महू छावनी परिषद की स्थापना 1818 में हुई। यह मप्र की आर्थिक राजधानी इंदौर से 23 किमी दूर मुंबई-आगरा रोड पर है। यहां की छावनी परिषद करीब 4000 एकड़ में है।

मिलेगा यह लाभ:

आपको बता दें कि, राज्य सरकार की योजनाओं का सीधा लाभ छावनी परिषद के नागरिकों को नहीं मिलता था। मगर अब उन्हें भी योजनाओं का फायदा मिलेगा। छावनी परिषद के नागरिकों को नए भवनों के निर्माण, भवन की ऊंचाई बढ़ाने, सफाई, सीवरेज, रोशनी, सड़क, वाणिज्यिक निर्माण और कन्वर्जन के लिए सेना के पास नहीं जाना पड़ेगा। कैंटोनमेंट बोर्ड से मिलिट्री स्टेशन बनने के बाद सेना भी अपने एरिया पर फोकस कर सकेगी।

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