भोपाल, मध्यप्रदेश। 2 अप्रैल 18 को हुई दलित विरोधी हिंसा में 6 दलितों सहित 7 लोगों की मौत के बाद हजारों निर्दोष दलित युवकों पर लगे झूठे मुकदमे वापस लेना तो समझ में आता है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी सहित दलित संगठन भी यह मांग करते रहे हैं, मगर हत्यारों के मुकदमे वापस लेकर भाजपा और शिवराज सिंह चौहान सरकार ने बता दिया है कि वह सामंती तत्वों के साथ है।
माकपा के राज्य सचिव जसविंदर सिंह ने उक्त बयान जारी करते हुए कहा है कि, अनुसूचित जाति/जनजाति उत्पीड़न विरोधी कानून को निष्प्रभावी बनाने की साजिशों के खिलाफ हुए भारत बंद में पूरे देश में11 दलितों की हत्याएं हुई थी। यह सब उन्हीं राज्यों में हुई यहां भाजपा की सरकारें हैं। इसमें भी 7 हत्याएं सिर्फ भिंड मुरैना ग्वालियर में हुई थी। उन हत्याओं में प्रशासन पूरी तरह सामन्ती तत्वों के साथ था। मृतकों के परिजनों को मृतकों की लाशें नही सौंपी गई थी,और रात के अंधेरे में ही उसे जबर्दस्ती जला दिया गया था। माकपा नेता ने कहा- दलितों के हत्यारों के गोली चलाते हुए और दलितों का एक किलोमीटर तक पीछा करते हुए वीडियो भी वायरल हुए थे। ऐसे में हत्यारों सहित दोनों पक्षों के मुकदमे वापस लेना कहां का इंसाफ है।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव जसविंदर सिंह ने कहा है कि उस दलित विरोधी हिंसा में भी बाद में प्रशासन ने माकपा के बुजुर्ग नेता जुगल किशोर पिप्पल सहित हज़ारों दलितों विशेषकर दलित युवकों पर झूठे मुकदमे दर्ज कर उन्हें जेल मे डाला था। यह झूठे मुकदमे वापस लेने और दलितों को सरंक्षण देने की मांग तो उठती रही है। यह जायज भी है, मगर हत्यारों के मुकदमें वापस लेने का निर्णय भाजपा की सामंती और दलित विरोधी मानसिकता का प्रमाण है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने सिर्फ दलित युवकों के मुकदमे वापस लेने की मांग करते हुए कहा है कि सामन्ती हत्यारों और हमलावरों को सख्त सजा दिलाने की पहल सरकार को करनी चाहिए।
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