ग्वालियर, मध्यप्रदेश। मां शब्द आते ही हर किसी का मन श्रद्धा से भर जाता है। वैसे तो मां हर दिन पूज्यनीय हैं, लेकिन मई के दूसरे रविवार को दुनिया भर में मदर्सडे मनाया जाता है और मां के लिए अपनी भावनाएं व्यक्त की जाती हैं, लेकिन कुछ कपूत ऐसे भी हैं जिनकी वजह से मां अपने ही घर से निर्वासित होकर वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर हैं। मदर्स डे पर राज एक्सप्रेस की स्पेशल रिपोर्ट।
माधव बाल निकेतन स्थित वृद्धाश्रम की माताओं के बारे में राजएक्सप्रेस ने पता किया तो माताओं की दीनदशा की ऐसी करूण कहानी उजागर हुई जिसे सुनकर पत्थर दिल भी पिघल जाए। लेकिन यहां जिन लोगों की माताएं हैं अपने होने के बाद भी बेसहारा होने का दंश झेल रही हैं। उनके बेटे बहुओं ने उन्हें एक बार छोड़ा तो दोबारा उनकी खबर नहीं ली।
एक बेटा है, शादी के बाद घर जमाई बन गया और मां को वृद्धश्रम में छोड़ दिया। मार्केटिंग का काम करता है और अच्छा खासा कमाता है। बिजनेस ससुराल वालो ने ही डेवलप करा दिया है। एक साल से ज्यादा हो गया न कभी मिलने आया और न फोन किया। लोहड़ी के पर्व पर वृद्धाश्रम के नूतन श्रीवास्तव को ही अपना बेटा मानकर रस्में पूरी की।सची विज्जन- उम्र 75 निवासी टीकमगढ़
दो लड़के थे, एक का निधन हो गया। जो लड़का है वो मजदूरी करता है। माता-पिता का पुश्तेनी मकान बेच दिया, लड़का कहता है कि मेरे पास खिलाने को नहीं हैं। मां मिलने जाती है तो वापस आश्रम में भगा देता है।राधाबाई- उम्र 82 निवासी निम्बाजी की खोह ग्वालियर
इकलौता लड़का पुणे में बहुत अच्छी कंपनी में लाखों के पैकेज पर काम करता है। मां को साथ रखने को तैयार नहीं हैं। कहते हैं मां को स्टेशन पर छोड़ गया और भटकते-भटकते वे वृद्धाश्रम में पहुंच गईं और तब से वहीं रह रही हैं। लौटकर कभी मां से नहीं मिला। इस दौरान मां काफी बीमार रही। बेटे को आश्रम प्रबंधन ने फोन लगाया तो उसने नम्बर ही बदल दिया।कृष्णाबाई- उम्र 80 निवासी इंद्रमणि नगर ग्वालियर
तीन लड़के हैं। दो प्राइवेट काम करते हैं एक पीएचई में नौकरी करता है। घर का मकान हैं लेकिन तीनों में से एक भी मां को रखने को तैयार नहीं हैं। तीज त्योहार कभी भी मां से मिलने नहीं आते हैं। मां अपने तीनों बेटों को याद तो करती हैं,लेकिन मां के मुंह से कभी बद्दुआ नहीं निकलती है।रामबाई- उम्र 70 निवासी चंद्रवदनी नाका ग्वालियर
दो बेटे हैं। एक बेटा तो शुरू से अलग रहता है। एक बेटे के साथ रहती थी कुछ दिनों तक तो साथ रखा फिर मां को निकाल दिया। पुश्तेनी मकान था वो भी बेच दिया। सुशीलाबाई दो साल से अपनी बहन के साथ रह रही थी, फिर बहन ने भी वृद्धाश्रम में छोड़ दिया।सुशीलाबाई- उम्र 75 नर्मदा कॉलोनी मुरार
तीन लड़के हैं। उन्होंने घर से निकाल दिया। फिर कई वर्षों तक अचलेश्वर मंदिर पर भीख मांगी। एक सज्जन का ध्यान गया तो वह माधव वृद्धाश्रम में छोड़ गया। उन्हें पता भी नहीं हैं कि उनकी मां वृद्धाश्रम में पहुंच चुकी हैं।कलावती बाई- उम्र 69 निवासी चंद्रवदनी का नाका
मां मदालसा ने गढ़े अपने चार पुत्र : भारतीय इतिहास में मदालसा एक अविस्मरणीय मां के रूप में चर्चित हैं। उनके चार पुत्र हुए। अपने पहले पुत्र विक्रांत के जन्म पर उसे रोता देखकर उन्होंने लोरी गाई हे पुत्र! तू मत रो। तू निराकार, शुद्ध आत्मा है। तेरा कोई नाम नहीं है। ये दु:ख तो तेरे शरीर से जुड़े हैं, जो पंचभूतों से निर्मित है। तू इससे परे है। तू वह है! वह! फिर किस कारण रोता है? इस तरह मदालसा अनेक शिक्षाप्रद गीतों और आध्यात्मिक लोरियों से विक्रांत को गढ़ती गईं। नतीजा विक्रांत एक संन्यासी बना। उसने सांसारिक ताने-बाने बुनकर ईश्वर की धुन गुनी। उनके दूसरे पुत्र सुबाहु व तीसरे पुत्र अरिमर्दन ने भी अपने बड़े भाई की ही राह पकड़ी। चौथे पुत्र अलर्क के होने पर राजा ने रानी से अपनी इच्छा ज़ाहिर करते हुए कहा कि वे अपने इस पुत्र को कुशल राजा बना देखना चाहते हैं। सो, मदालसा ने अलर्क को बचपन से ही न्यायप्रिय राजाओं की गाथाएं सुनाई व प्रजा के हित की नीतियाँ सिखाई। फलस्वरूप अलर्क एक विवेकी व शक्तिशाली राजा बना। बाद में, उसने भी संतों की चरण रज पाई। इस तरह मदालसा ने अपने हर बच्चे पर दिव्य प्रभाव डाला।
इनका कहना है :
हमारी कोशिश है कि माधव बाल निकेतन वृद्धाश्रम में जितनी भी माताएं हैं, उन्हें किसी भी तरह की कमी महसूस न हो। हमारी कोशिश है कि व्यवस्थापक बनकर नहीं बेटा बनकर काम करें जिसकी वजह से हमारी टीम को बुर्जुग का आशीर्वाद मिल रहा है।नूतन श्रीवास्तव, चेयरमेन, माधव बाल निकेतन एवं वृद्धाश्रम
मदर्स डे पर होगा सफाईकर्मी माताओं का सम्मान :
मदर्स डे के अवसर पर स्वामी विवेकानंद सेवा समिति द्वारा महिला सफाई कर्मियोंका सम्मान किया जाएगा। स्वामी विवेकानंद सेवा समिति के संस्थापक नूतन श्रीवास्तव ने बताया कि महिला सफाई कर्मी दिन रात शहर को स्वच्छ बनाने के लिए लगी रहती हैं इनकी तरफ किसी का ध्यान नहीं रहता वह भी किसी की मां है अपनी औरअपने परिवार की चिंता करते हुए हमारा शहर स्वच्छ कैसे रहे इसके लिए दिन-रात काम में जुटी रहती हैं। उनको पता ही नहीं रहता कि कब मदर्स डे है कौन सा दिन स्पेशल डे है।
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