भोपाल। मप्र में अब निजी भूमि पर विकसित होने वाले कॉलोनियों और रहवासी क्षेत्रों के विकास की नई राह खुल गई है। राज्य सरकार ने रेरा की आपत्ति का ऐसा तोड़ निकाला है कि अब महज एक हजार रुपए की पॉवर ऑफ अटार्नी से ही बिल्डरों को निजी भूमि स्वामी से उस जमीन पर विकसित संपत्ति को बेचने का अधिकार मिल जाएगा। इसके लिए उसे संपत्ति के मूल्य का 5 फीसदी शुल्क भी नहीं देना पड़ेगा।
दरअसल, अब प्रदेश में ज्यादातर प्रापर्टी विकसित होती है, वह निजी भूमि पर ही विकसित होती है। निजी भूमि पर कॉलोनी या अन्य आवासीय, व्यवसायिक प्रोजेक्ट विकसित करने के लिए बिल्डर निजी भूमि स्वामी के साथ परस्पर एग्रीमेंट करता है। इस एग्रीमेंट के तहत निजी भूमि में विकसित प्रापर्टी का एक निश्चित हिस्सा बिल्डर भूमि स्वामी को देता है। ये इसलिए कि प्राय: अधिकांश मामले में बिल्डर निजी भूमि खरीदकर उसमें प्रापर्टी विकसित करने के बजाय इस रास्ते से आवासीय, वाणिज्यिक प्रापर्टी विकसित करते हैं। ये इसलिए भी कि इसमें बिल्डर को जमीन खरीदने के लिए बड़ी राशि नगद देने की नौबत नहीं आती, वहीं बाद में भूमि स्वामी भी विकसित प्रापर्टी बेचकर जमीन के वास्तवित दाम से कई गुना तक कमाई कर लेते हैं। यानी ये एग्रीमेंट भूमि स्वामी और बिल्डर दोनों के लिए फायदेमंद होता है, लेकिन भूमि स्वामी और बिल्डर की इस जुगलबंदी पर रेरा की आपत्ति ने ऐसा रोड़ा अटकाया कि कई प्रोजेक्ट ही खतरे में पड़ गए।
रेरा की क्या है आपत्ति रेरा को भूमि स्वामी और बिल्डर के बीच उस एग्रीमेंट से तो कोई आपत्ति नहीं थी, जिसमें कि भूमि स्वामी अपनी जमीन पर उसे प्रापर्टी विकसित करने का अधिकार देता है, लेकिन अपने हिस्से की विकसित प्रापर्टी को बिल्डर द्वारा बेचने पर रेरा को आपत्ति थी। इसके पीछे रेरा का तकनीकी तर्क ये था कि बेचने का अधिकार केवल भूमि स्वामी को है। रेरा ने बिल्डर को प्रापर्टी विकसित करने का अधिकारी तो माना लेकिन बेचने का अधिकारी नहीं माना। ऐसे में अब कोई संपत्ति खरीदने के लिए रेरा के पास अनुमति के लिए जाता था तो बिल्डर और प्रापर्टी खरीदने वाले के बीच एग्रीमेंट को रेरा मान्य नहीं कर रहा था। इसके लिए रेरा के सामन तीन पक्षीय एग्रीमेंट कराने की नौबत आ रही थी। यानी एक पक्ष भूमि स्वामी, दूसरा पक्ष बिल्डर और तीसरा पक्ष खरीददार। ऐसे मामलों में बिल्डरों को जमीन की कीमत का 1.25 फीसदी या बिल्डर के हिस्से में आने वाली संपत्ति के मूल्य का बाजार दर से 5 फीसदी शुल्क देना होता था। यदि कहीं दाम कलेक्टर गाइडलाइन से कम है तो फिर कलेक्टर गाइडलाइन की दर के हिसाब से ही शुल्क देना होता था, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा।
नई व्यवस्था अब ऐसी होगी वाणिज्यिक कर विभाग ने रेरा की आपत्ति को देखते हुए नई व्यवस्था तय कर दी है। अब उस विकसित संपत्ति , जिसे अलग से विकसित करने के लिए विकासकर्ता, उक्त विकास अनुबंध अनुसार अधिकृत है, के विक्रय का अधिकार देने वाले मु तारनामा पर देय शुल्क कम करते हुए इसे केवल एक हजार रुपए तय कर दिया है। विभाग ने इस संबंध में अधिसूचना जारी कर इसे प्रदेश में प्रभावी कर दिया है। यानी अब भूमि स्वामी महज एक हजार रुपए के पॉवर ऑफ अटार्नी से उस जमीन पर विकसित बिल्डर के हिस्से की प्रापर्टी को बेचने का अधिकार वह बिल्डर को दे देगा। ऐसे में बिल्डर सीधे प्रापर्टी खरीदने वाले को प्रापर्टी बेच सकेगा।
दोनों के बीच होने वाले एग्रीमेंट में तीसरे पक्ष यानी भूमि स्वामी की जरुरत ही नहीं पड़ेगी, वहीं रेरा की आपत्ति का समाधान भी हो जाएगा। प्रापर्टी के कारोबार को बढ़ावा मिलने के आसार रेरा की आपत्ति के कारण ऐसे मामलों में बिल्डरों को प्रापर्टी बेचने में दिक्कतों को सामना करना पड़ता था, उसके लिए उन्हें दोहरे शुल्क की मार झेलना पड़ता था, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। यदि प्रापर्टी बेचते समय 5 फीसदी शुल्क देना पड़े तो आखिरकार इसका भार प्रापर्टी खरीददार पर भी आता था, लेकिन अब प्रापर्टी बेचने की राह आसान होने से प्रदेश में प्रापर्टी के कारोबार को बढ़ावा मिलने की संभावना है।
इनका कहना
भूमि स्वामी की जमीन पर विकसित प्रापर्टी को बिल्डर द्वारा बेचने पर रेरा को तकनीकी रूप से आपत्ति थी, अब एक हजार रुपए के पॉवर ऑफ अटार्नी से ही बिल्डर को प्रापर्टी बेचने का अधिकार मिल जाएगा। अब उसे प्रापर्टी के मूल्य का 5 फीसदी शुल्क नहीं देना पड़ेगा। इससे सरकार को भी कोई नुकसान नहीं होगा।
आरपी श्रीवास्तव उस सचिव, वाणिज्यिक कर विभाग
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