EOW जबलपुर ने पांच शराब कारोबारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया RE-Bhopal
मध्य प्रदेश

Big News: 35 लाख की अवैध वसूली रोजाना, सरकार को एक धेला TAX नहीं दे रहे थे शराब कारोबारी

EOW जबलपुर ने पांच शराब कारोबारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था। तब यह खुलासा हुआ कि शराब कारोबारी सरकार को टैक्स बोतल में दर्ज MRP के आधार पर दे रहे थे।

Gurendra Agnihotri

भोपाल, मध्यप्रदेश । तय रेट से ज्यादा कीमत पर शराब बेचकर ठेकेदार तकरीबन 35 लाख रुपए की अवैध वसूली रोज कर रहे थे और उसमें से सरकार को एक धेला टैक्स नहीं दे रहे थे। ठेकेदारों की सालाना कमाई का आकड़ा 115 करोड़ रुपए के पार जा रहा था। सरकार को टैक्स सिर्फ बोतल में दर्ज कीमत (एमआरपी) का मिल रहा था। इससे सरकार को सलाना तकरीबन बीस करोड़ रुपए का आर्थिक नुकसान हो रहा था।

आर्थिक अपराध प्रकोष्ष्ठ (EOW) की जबलपुर इकाई ने इस मामले में पांच शराब कारोबारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था। तब यह खुलासा हुआ कि शराब कारोबारी राज्य सरकार को टैक्स बोतल में दर्ज प्रिंट रेट (MRP) के आधार पर दे रहे थे और ग्राहकों से वसूली उससे ज्यादा राशि की कर रहे थे। इस मामले की शिकायत जबलपुर के सहायक आबकारी आयुक्त से भी की गई थी, लेकिन विभाग के अफसरों ने शराब ठेकेदारों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई थी। शिकायत में कहा गया था कि 65 रुपए में बिकने वाला क्वार्टर 90 रुपए, 205 रुपए की बीयर की बोतल 250 रुपए और 1275 रुपए की ब्लंडर्स प्राइड की बोतल 1300 से 1400 रुपए में बेची जा रही थी। इससे शराब कारोबारी तकरीबन 35 लाख रुपए की अवैध कमाई रोजाना कर रहे थे। इस तरह से होने वाले अतिरिक्त लाभ का सरकार को टैक्स भी नहीं मिलता था, क्योंकि टैक्स सिर्फ प्रिंट रेट का मिलता था।

शुरुआती जांच में यह अनुमान लगाया गया है कि मैक्सिमम रिटेल प्राइज (एमआरपी) से ज्यादा दर पर शराब बेचकर कारोबारी साल में 115 करोड़ रुपए से ज्यादा की वसूली कर रहे थे। अगर इसमें से टैक्स दिया जाता, तो सरकारी खजाने में 20 करोड़ रुपए से ज्यादा की राशि जमा होती। ऐसा इसलिए कि सरकार दस फीसदी वैट और आठ फीसदी परिवहन का टैक्स लेती है। वैट से सरकार को 11 करोड़ 55 लाख रुपए और परिवहन से 9 करोड़ 24 लाख रुपए सालाना टैक्स का नुकसान हो रहा था। ईओडब्ल्यू ने इस मामले में छह जून को एफआईआर दर्ज की थी, जबकि आबकारी विभाग में इस मामले की शिकायत 15 मई को हुई थी। आबकारी अफसर खामोश रहे और उन्होंने इस मामले में ठेकेदारों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की थी।

महंगी शराब बिकने से कच्ची खरीदने लगा गरीब तबका

शिकायत में कहा गया है कि 65 रुपए का क्वार्टर 90 रुपए में बेचने के कारण गरीब तबका इसे सहन नहीं कर पा रहा था। लिहाजा उसने फुल प्रूफ शराब को छोड़ दिया और गैर कानूनी शराब (कच्ची) की तरफ चला गया। कच्ची शराब पीने के कारण मजदूर, आदिवासी व अन्य गरीब तबके के लोग बीमार होने लग गए। जबलपुर जिले के बरगी, कुंडम और मझौली मैें बहुत सारे लोग जहरीली शराब पीने से बीमार हुए और कुछ लोगों की मौत भी हो गई थी।

छत्तीसगढ़ के शराब घोटाले में भी शामिल था सिंडीकेट

जबलपुर में शराब का अवैध कारोबार करने के मामले में शामिल सिंडीकेट के पार्टनर्स का रिश्ता छत्तीसगढ़ के शराब घोटाले से भी जुड़ा है। छत्तीसगढ़ में दो हजार करोड़ रुपए का लीकर स्केम (शराब घोटाला) सामने आया था, जिसमें जबलपुर के घोटाले में शामिल सिंडीकेट के पार्टनर का भी नाम आया था। शुरुआती जांच में पता चला था कि छत्तीसगढ़ में शराब कारोबारियों ने 150 करोड़ रुपए की अवैध कमाई इसी तरह की शराब बेचकर की थी।

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