आज़ादी के 2 साल तक नहीं फहराया गया तिरंगा :
1 जून 1949 को भोपाल में तिरंगा झंडा लहराया गया, हालाँकि देश को आज़ादी 15 अगस्त 1947 को ही मिल गई थी। आज़ादी के करीब 2 साल बाद भोपाल रियासत, भारत में मिली और यहाँ तिरंगा लहराया गया। भोपाल रियासत के नवाब हमीदुल्ला खां भोपाल को भारत में नहीं मिलाना चाहते थे। नवाब हमीदुल्ला खां इस विलीनीकरण के इतने खिलाफ थे की भोपाल की जनता को भारत में मिलने के लिए पूरा आंदोलन चलाना पड़ गया।
क्या था कारण ?
दरअसल भोपाल रियासत के नवाब हमीदुल्ला खां जिन्ना के काफी करीबी माने जाते थे। देश के आज़ाद होने पर मोहम्मद अली जिन्ना ने सभी मुस्लिम शासकों से पाकिस्तान में मिलने की अपील की थी। हैदराबाद का निज़ाम भी हमीदुल्ला खां को पाकिस्तान में मिलने के लिए प्रेरित कर रहा था। जिन्ना ने हमीदुल्ला खां को पाकिस्तान का सेक्रेटरी जनरल का पद तक ऑफर किया । इसके चलते नवाब अपनी बेटी आबिदा को भोपाल का शासक बनाकर पाकिस्तान चले जाना चाहते थे। परन्तु आदिबा ने भोपाल का शासक बनाने से मना कर दिया जिसके बाद हमीदुल्ला खां का पाकिस्तान में मिलने का सपना सपना ही रह गया।
स्वतंत्र रहने की कर दी थी घोषणा :
मार्च 1948 में नवाब हमीदुल्लाह खां ने ना केवल भोपाल के स्वतंत्र रहने की घोषणा कर दी थी बल्कि भोपाल सरकार का एक मंत्रीमंडल भी बना दिया था जिसके प्रधानमंत्री थे चतुरनारायण मालवीय। हमीदुल्ला खां भारत में विलय के इस कदर खिलाफ था कि उसने आज़ादी के समय भोपाल में तिरंगा तक नहीं फहराने दिया। वो स्वयं भी आज़ादी के किसी कार्यक्रम में शामिल नहीं हुआ। इसके बाद भोपाल में विलीनीकरण के लिए आंदोलन चलाया गया।
रायसेन बना केंद्र :
भोपाल के विलीनीकरण के लिए आंदोलन का केंद्र रायसेन था। यहीं से सभी गतिविधियाँ चलायी जातीं थीं। उद्घवदास मेहता, बालमुकन्द, जमना प्रसाद, लालसिंह इस आंदोलन जुड़े प्रमुख किरदार हैं। इन लोगों ने इस आंदोलन के लिए साल 1948 में प्रजा मंडल की स्थापना की थी। इस समय तक भोपाल में विलीनीकरण को लेकर आंदोलन ने तेज़ी पकड़ ली थी।
सरदार पटेल ने भेजा सन्देश हो गया विलीनीकरण :
भोपाल की भौगोलिक स्थिति कुछ ऐसी है कि इसे भारत से स्वतंत्र घोषित कर पाना लगभग असंभव था। तत्कालीन ग्रह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने अब नवाब पर सख्त रुख अपनाते हुए उसे सन्देश भिजवाया। इस सन्देश में सरदार वल्लभ भाई पटेल ने नवाब को यह साफ़ कह दिया था कि "भोपाल स्वतंत्र नहीं रह सकता। भोपाल को मध्य भारत का हिस्सा बनना ही होगा।"
इसके पहले भी सरदार पटेल जूनागढ़ रियासत का विलय करवा चुके थे। इस कारण नवाब ने भोपाल में उसके द्वारा बनाई गयी मंत्रीमंडल को भंग कर दिया और सारी सत्ता अपने हाथों में ले ली। इसके बाद दिसंबर 1948 में भोपाल में विलय को लेकर खूब आंदोलन चलाये गए। जनता और भारत सरकार के द्वारा बनाये गये दबाव के चलते आखिरकार भोपाल के नवाब हमीदुल्ला खां को भारत में विलय करना ही पड़ा।
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