जानें 2-3 दिसंबर की डरावनी रात और चीखती सुबह की दास्तां का सच Syed Dabeer Hussain - RE
मध्य प्रदेश

Bhopal Gas Tragedy: जानें 2-3 दिसंबर की डरावनी रात और चीखती सुबह की दास्तां का सच

Bhopal Gas Tragedy: आज के दिन 1984 में हुई यह दर्दनाक घटना भोपालवासियों के लिए एक काल बनकर आई थी। उस डरावनी रात और चीखती सुबह की दास्तां यानी भोपाल गैस कांड की आज 37वीं बरसी है...

Author : Priyanka Sahu

Bhopal Gas Tragedy: देश हो या विदेश, प्रदेश हो या शहर कहीं न कहीं दिल दहला देने वाले या कहे रूह कांप उठने वाले हादसे व घटनाओं के बारे में सुना ही होगा और जब भी बड़ी दुर्घटनाओं की चर्चा होती है तो उसमें भारत के मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल शहर की इस बड़ी घटना को भी याद किया जाता है, क्योंकि साल 1984 के आखिरी महीने यानी 2-3 दिसंबर की तारीख भोपालवासियों के लिए एक काल बनकर आई थी, जो कभी न भुलायी जाने वाली घटना है, जिसे इतिहास के पन्नों में भी जगह दी गई है। आज का दिन इतिहास के पन्नों में कुछ इस तरह शुमार है, जिसकी दास्तां को याद करके हर किसी की आंखे नम होना जायज़ है, जिसमें केवल दुख और दर्द ही नजर आता है।

भोपाल गैस त्रासदी की आज 37वीं बरसी :

अब आप शायद समझ ही गए होंगे की हम उसी डरावनी रात और चीखती सुबह की दास्तां की बात कर रहे हैं, जो भारत के मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल शहर की है। भोपाल गैस कांड या भोपाल गैस त्रासदी की घटना जो एक भूचाल की तरह आकर सब कुछ तबाह करके चली गई, जिसमें न जानें कितने अपने-अपनों से बिछड़ गए थे एवं कई तो हमेशा के लिए ही अपनी आंखों को बंद कर इस दुनिया को अलविदा कह चले थे। इस भीषण त्रासदी में हजारों लोगों ने अपनी जान गवाई थी। सबसे बड़ी घटनाओं के जिक्र के दौरान भोपाल के गैस त्रासदी कांड का नाम शामिल न हो, ऐसा असंभव ही होगा और न ही इसे कभी भुलाया जा सकता है। साल 1984 में 2 दिसंबर की रात बेहद ही डरावनी और फिर दूसरे दिन यानी 3 दिंसबर की सुबह चीख-पुखारों वाली नजर आई थी। पूरी दुनिया के औद्योगिक इतिहास की सबसे बड़ी दुर्घटना व दर्दनाक औद्योगिक हादसों में से एक भोपाल गैस त्रासदी की आज (3 दिसंबर, 2021) की 37वीं बरसी है।

आखिर ऐसा क्‍या हुआ था उस रात :

भोपाल गैस त्रासदी की इस दुर्घटना को आज तक भुलाया जाना मुश्किल इसलिए भी नहीं है, क्‍योंकि इस त्रासदी के परिणामों का आज भी कुछ लोग झेल रहे हैं। ऐसे में मन में सवाल उठना लाजमी ही होगा कि, आखिर ऐसा क्‍या हुआ था उस रात? दरअसल, साल 1984 की 2-3 दिसंबर की उस खौफनाक रात के वक्‍त बहुत बड़ी अनहोनी हो गई। कीटनाशक बनाने वाली जहरीली गैस, मिथाइल आइसो साइनाइट (MIC) का रिसाव हुआ था, जिससे समूचे शहर में यह गैस कुछ ही देर में तेजी से फैलने लगी और सुबह तक भोपाल का अधिकांश हिस्सा को जहरीली गैस की चपेट में आ चुका था। आसमान में धुंध ही धुंध छा गई थी, जिससे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था, स्थिति कुछ ऐसी हो गई थी कि, लोग समझ तक नहीं पा रहे थे, कहां, किस रास्ते पर जाना चाहिए।

इस कंपनी में बनता था MIC का कीटनाशक :

भारत में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) नाम की कंपनी है, जिसे साल 1969 में यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन द्वारा स्थापित किया गया था। यूनियन कार्बाइड का यह कारखाना भोपाल में छोला रोड पर स्थित है। इसके खुलने के बाद साल 1979 में भोपाल में एक प्रोडक्शन प्लांट की शुरुआत की गई, इसमें भी मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) कीटनाशक ही बनाया जाता था। भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड कंपनी से MIC गैस का रिसाव हुआ था। बताते चलें, कुछ सालों बाद इस कंपनी की हालत काफी जर्जर होने के बावजूद भी कंपनी ने जहरीली गैस को बनाएं जाने का काम रोका तक नहीं गया और न ही कंपनी के रखरखाव पर ध्यान दिया जा रहा। साल 1984 के नवंबर माह तक इस प्लांट की स्थिति बेहद ही खराब स्थिति में आ चुकी थी।

दुर्घटना का कारण :

इसके अलावा सावधानी बरतने की बजाय एक लापरवाही ये भी कही गई। यहां प्लांट के ऊपर एक E610 नामक टैंक बना हुआ था, जिसमें 40 टन से अधिक MIC नहीं होनी चाहिए, परंतु इसमें 40 टन से अधिक 42 टन MIC भरी हुई थी और यहीं बड़ी दुर्घटना का कारण बनी। इसमें E610 टैंक में अचानक पानी घुस गया, जिसके बाद गैस का रिसाव होना शुरू हो गया। तो वहीं, पाइपलाइन में जंक के कारण गैस पर कंट्रोल पाना बहुत ही मुश्किल हो रहा था और इस जंक के कारण टैंक में लोहे के मिल जाने से टैंक का तापमान नॉर्मली तापमान 4 से 5 डिग्री रहने की बजाया बढ़कर 200 डिग्री सेल्सियस हो गया। तो वहीं, टैंक के अंदर दबाव बढ़ने से इमर्जेंसी प्रेशर पड़ने लगा और लगभग 50 से 60 मिनट के अंदर ही 40 मीट्रिक टन MIC जहरीली गैस का रिसाव हो गया। भोपाल गैस त्रासदी के दर्दना‍क हादसे से जुड़े कुछ खास तथ्य-

  • 2 दिसंबर को रात के समय करीब 8 बजे यूनियन कार्बाइड कारखाने की रात की शिफ्ट आ चुकी थी और जहां सुपरवाइजर व मजदूर अपना-अपना काम कर रहे थे।

  • 9 बजे करीब जब 6 कर्मचारी भूमिगत टैंक के पास पाइनलाइन की सफाई का काम करने के लिए निकले, 10 बजे कारखाने के भूमिगत टैंक में रासायनिक प्रतिक्रिया शुरू हुई।

  • इसके बाद टैंकर का तापमान 200 डिग्री तक पहुंचा और गैस बनने लगी। रात के 10:30 बजे के करीब टैंक से गैस पाइप में पहुंचने लगी। इसी दौरान वाल्व ठीक से बंद नहीं होने के कारण टॉवर से गैस का रिसाव शुरू हो गया।

  • भोपाल गैस प्लांट पर 3 दिसंबर, 1984 रात 12.15 बजे वहां मौजूद कर्मचारियों को घबराहट होने लगी। वाल्व बंद करने की कोशिश की गई, लेकिन तभी खतरे का सायरन बजने लगा। आस-पास की बस्तियों में रहने वाले लोगों को घुटन, खांसी, आंखों में जलन, पेट फूलना और उल्टियां होने लगी। तो वहीं, इस जहरीली गैस ने भोपाल के हजारों लोगों की लीला एक झटके में ही समाप्त कर दी।

  • गैस त्रासदी के बाद यूनियन कार्बाइड के मुख्यल प्रबंध अधिकारी वॉरेन एंडरसन रातों रात भारत छोड़कर अमेरिका चले गए थे। हालांकि, इसके मुख्य आरोपी वॉरेन एंडरसन की 29 सिंतबर, 2014 को मौत हो चुकी है।

  • वर्ष 2010 में 7 जून को स्थानीय अदालत के फैसले में आरोपियों को दो-दो साल की सजा सुनाई गई थी, लेकिन इन सभी आरोपियों को जमानत पर रिहा भी कर दिया गया।

इतना ही नहीं, गैस त्रासदी के बाद जो बच्चों ने जन्म लिया, उनमें कई विकलांग व किसी बीमारी के साथ इस दुनिया में आए। इसके अलावा जो भी इस जहरीली गैस की चपेट में आए, लेकिन बच गए, वो सालों तक इलाज कराने के बाद भी कई कष्टों को सहते हुए जिंदगी गुजारने को विवश हो गए थे। हालांकि, आज भी सैंकड़ों परिवार इस हादसे के जख्म सह रहे हैं। गैस त्रासदी कितनी भयावह थी इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि, गैस प्रभावित कई लोगों के यहां जन्म लेने वाले बच्चे नि:शक्तता का दंश झेल रहे हैं। भोपाल गैस त्रासदी में मरने वालों की संख्या कितनी थी, इसका सही आंकड़ा आज तक सामने नहीं आया, हालांकि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 5 लाख 58 हजार 125 लोग मिथाइल आइसोसाइनेट गैस और दूसरे जहरीले रसायनों के रिसाव की चपेट में आ गए, इस हादसे में तकरीबन 25 हजार लोगों की जान गई। इसके बाद भी मौत का सिलसिला बरसों तक चलता रहा।

आज भी कैद है उस रात के खौफनाक मंजर की आवाज :

भोपाल गैस ट्रेजेडी को आज 37 साल होने का आया है, लेकिन आज भी उस रात की चीख-पुकार गूंज के मंजर को याद करके आज भी हर कोई सहम जाता है, लेकिन उस हादसे की दर्दभरी चीखें शहर के एक म्युजियम में मौजूद हैं, जिसमें 2-3 दिसंबर के खौफनाक व दर्दभरे मंजर की आवाजों को सहेजकर रखा गया है और इसमें बताया गया है कि, उस समय लोग किस तरह से मदद मांग रहे हैं, कैसे एक-दूसरे को जिंदा रहने की तसल्ली मिल रही है, यह सब इस म्युजियम में कैद हैं। दरअसल, भोपाल के बैरसिया रोड स्थित हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी 7 दुकान के नजदीक सीनियर एचआईजी 22 में रिमेम्बर भोपाल म्युजियम है, जहां पता चलता है कि, गैस त्रासदी की रात में कैसे लोग मदद की गुहार लगा रहे थे। म्युजियम की डायरेक्ट तसनीम खान के अनुसार, म्युजियम 2 दिसंबर वर्ष 2014 से संचालित किया। इसमें गैस त्रासदी की उन चुनिंदा आवाजों को सहेजा है, जो उस घटना को जीवंत करती हैं। देश-विदेश से लोग आकर लोग इन आवाजों को सुनकर रो देते हैं। वर्ष 1984 में हुए इस दर्दनाक हादसे से अब भी यह शहर उबर नहीं पाया है।

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