Lal Krishna Advani Birthday Syed Dabeer Hussain - RE
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Lal Krishna Advani Birthday : लालकृष्ण आडवाणी की वह एक राजनीतिक भूल, जिसने उन्हें हाशिये पर धकेल दिया

धर्म के आधार पर भारत का बंटवारा करने के जिम्मेदार मोहम्मद अली जिन्ना की मजार पर आडवाणी ने वह गलती की, जिसका आगे चलकर उन्हें खासा नुकसान हुआ।

Priyank Vyas

राज एक्सप्रेस। दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक लालकृष्ण आडवाणी आज अपना 95वां जन्मदिन मना रहे हैं। 8 नवम्बर 1927 को कराची के सिंधी परिवार में जन्में लालकृष्ण आडवाणी आज देश की राजनीति के सबसे बड़े नामों में से एक रहे हैं। वह महज 14 साल की उम्र में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में शामिल हो गए थे। अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए रथ यात्रा निकालने वाले आडवाणी एक समय देश में हिंदुत्व का सबसे बड़ा चेहरा बने हुए थे। वह साल 1998 से लेकर साल 2004 तक देश के गृहमंत्री भी रहे थे। लेकिन लालकृष्ण आडवाणी ने अपने जीवन में एक गलती ऐसी भी की, जिसने उन्हें राजनीतिक हाशिये पर धकेल दिया। उस एक गलती से आडवाणी जीवनभर उभर नहीं पाए। तो चलिए जानते हैं आडवाणी की सबसे बड़ी राजनीतिक भूल के बारे में –

पाकिस्तान की यात्रा :

साल 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की बुरी तरह से हार हुई। मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री बने और भाजपा सत्ता से बाहर हो गई। इसी बीच पार्टी को फिर से खड़ा करने के लिए आडवाणी को भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया। साल 2005 में भाजपा का अध्यक्ष रहते हुए आडवाणी पाकिस्तान दौरे पर गए थे। इस दौरान वह पाकिस्तान के निर्माता ‘मोहम्मद अली जिन्ना’ की मजार पर भी गए।

सेक्युलर जिन्ना :

जिन्ना की मजार पर आडवाणी ने वह गलती की, जिसका आगे चलकर उन्हें खासा नुकसान हुआ। वहां दिए गए अपने भाषण ने आडवाणी ने धर्म के आधार पर भारत का बंटवारा करने के जिम्मेदार मोहम्मद अली जिन्ना को 'सेक्युलर' कह दिया। आडवाणी के इस भाषण की जानकारी जैसे ही भाजपा और संघ को लगी तो भूचाल आ गया।

जिन्ना समर्थक वापस जाओ :

किसी समय देश के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक रहे आडवाणी को भारत में भारी विरोध का सामना करना पड़ा। 6 जून को जब वह पाकिस्तान से दिल्ली लौटे तो एयरपोर्ट पर ‘जिन्ना समर्थक वापस जाओ’ के नारों के साथ उनका स्वागत हुआ। भाजपा कार्यालय पर भी आडवाणी का विरोध शुरू हो गया। लोगों के मूड को देखते हुए भाजपा और संघ ने भी उनके बयान से दूरी बना ली।

अध्यक्ष पद से इस्तीफा :

कभी संघ के चेहेते रहे लालकृष्ण आडवाणी अपने उस भाषण के बाद संघ की आँखों की किरकिरी बन गए। संघ ने उन्हें अध्यक्ष पद से हटाने का फैसला किया। दूसरी तरफ भाजपा संसदीय दल की बैठक में भी आडवाणी से इस्तीफा मांग लिया गया। इस तरह कुछ महीनों की मोहलत के बाद दिसंबर 2005 में अध्यक्ष पद से उनकी विदाई हो गई।

देश ने नहीं किया स्वीकार :

साल 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में लालकृष्ण आडवाणी भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री उम्मीदवार थे, लेकिन पाकिस्तान यात्रा के दौरान की गई उस भूल के चलते लोगों ने भी उन्हें स्वीकार नहीं किया। इस चुनाव में भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था।

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