राज एक्सप्रेस। दिल्ली नगर निगम के मेयर के चुनाव के बाद अब भाजपा और आम आदमी पार्टी स्टैंडिंग कमेटी के चुनाव में आमने-सामने आ गई है। इस चुनाव को लेकर सदन में दोनों पार्टी के पार्षदों के बीच झड़प भी हो चुकी है। अब यह मामला दिल्ली हाई कोर्ट तक पहुंच गया है, जहां कोर्ट ने सदस्यों के नए सिरे से चुनाव कराने पर रोक लगा दी है। इस पूरे बवाल के बीच लोगों के मन में यह सवाल भी उठ रहा है कि आखिर स्टैंडिंग कमेटी क्या होती है? और इसका चुनाव दोनों पार्टियों के लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों हो गया है?
मेयर से ज्यादा ताकतवर :
दरअसल स्टैंडिंग कमेटी दिल्ली नगर निगम की सबसे शक्तिशाली कमेटी है। इसका काम दिल्ली नगर निगम के काम को प्रभावी तरीके से संचालित करना है। खास बात यह है कि दिल्ली नगर निगम के आर्थिक और प्रशासनिक फैसले लेने व नीतियों को लागू करवाने का काम स्टैंडिंग कमेटी का ही होता है। एक तरह से दिल्ली नगर निगम का प्रमुख भले ही मेयर होता है, लेकिन उसके अधिकार बहुत सीमित होते हैं। दिल्ली नगर निगम की असली शक्ति स्टैंडिंग कमेटी में निहित है। ऐसे में स्टैंडिंग कमेटी के चेयरमैन का पद काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। मेयर से ज्यादा पूरे दिल्ली नगर निगम पर चेयरमैन का प्रभाव होता है।
कैसे होता है चुनाव?
बता दें कि दिल्ली नगर निगम की स्टैंडिंग कमेटी में कुल 18 सदस्य होते हैं। इसका एक चेयरमैन और एक डिप्टी चेयरमैन होता है। इनका चुनाव स्टैंडिंग कमेटी के सदस्यों में से ही किया जाता है। इन 18 में से 6 सदस्यों का चुनाव सदन में वोटिंग के द्वाराआधार पर सदस्य का चुनाव नहीं हो पाता है तो इस स्थिति में आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर दूसरे और तीसरे वरीयता के वोट की गिनती की जाती है। जिस उम्मीदवार को 36 पार्षदों के वोट मिल जाते हैं, वह स्टैंडिंग कमेटी का सदस्य बन जाता है।
वार्ड कमेटी से चुने जाएंगे 12 सदस्य :
दरअसल दिल्ली नगर निगम 12 जोन में बंटा हुआ है। हर जोन में एक वार्ड कमेटी होती है, जिसमें इस एरिया के सभी पार्षद और मनोनीत पार्षद होते हैं। हर कमेटी से एक सदस्य को स्टैंडिंग कमेटी के लिए चुना जाता है। इस तरह सभी 12 जोन से 12 पार्षद स्टैंडिंग कमेटी के लिए चुने जाते हैं।
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