तत्सत पांडे कहते हैं, "6 दिसंबर 1992 को सिर्फ एक मस्जिद नहीं गिरायी गई थी, उस दिन संविधान की बुनियाद पर खड़ी लोकतंत्र की इमारत पर भी चोट की गई थी"
जानिए कैसे घूमा बावरी मस्जिद बनाम राम मंदिर का काल चक्र : क्यों स्याह हुई 6 दिसंबर की तारीख़!...
राम मंदिर और बावरी मस्जिद का मुद्दा लगभग 500 साल पुराना है, जिसके कई तथ्य आम जन की जानकारी से बाहर हैं, कुछ तथ्यों को इतिहास के पन्नों से आप तक पहुँचाने का प्रयास इस लेख में किया गया है|
साल 1528-29 : कहते हैं बाबर ने मंदिर तोड़ कर मस्जिद निर्माण कराया। हिंदुओं का दावा है कि यह जगह भगवान राम की जन्मभूमि है और यहां पहले एक मंदिर था। हिन्दुओं की मान्यता है कि अयोध्या में मस्जिद उस स्थान पर बनवायी गयी है जिसे हिन्दू भगवान राम का जन्म स्थान मानते हैं , यह भी माना जाता है कि मुग़ल राजा बाबर के सेनापति मीर बाकी ने यहां मस्जिद बनवायी थी, इसी मस्जिद को बावरी मस्जिद के नाम से जाना जाता है, बाबर 1526 में भारत आया, 1528 तक उसका साम्राज्य अवध (वर्तमान अयोध्या) तक पहुंच गया, इसके बाद करीब तीन सदियों तक के इतिहास की जानकरी किसी भी ओपन सोर्स पर मौजूद नहीं है।
साल 1853-1949 तक के 96 वर्ष : 1853 में इस जगह के आसपास या माना जाये तो अयोध्या में पहली बार दंगे हुए थे । फौरी तौर पर ही देखा जाये तो ये हिन्दू मुस्लिम हिंसा की पहली घटना थी जो अयोध्या में हुई थी, उस समय निर्मोही अखाड़े ने दावा किया था कि जिस स्थान पर मस्जिद है, वहां राम मंदिर हुआ करता था जिसे बाबर के शासनकाल में नष्ट कर दिया गया, इसके बाद 2 वर्षों तक इस मुद्दे पर अवध में हिंसा जलती-सुलगती रही, 1859 में अंग्रेजी प्रशासन ने विवादित जगह के आसपास बाड़ लगा दी। मुसलमानों को ढांचे के अंदर और हिंदुओं को बाहर चबूतरे पर पूजा करने की इजाजत दी गई। फैजाबाद जिला गजट 1905 के अनुसार 1855 तक, हिंदू और मुसलमान दोनों एक ही इमारत में पूजा या इबादत करते रहे।
इसके बाद 1857 की क्रांति के समय हिंसा थोड़ी ठंडी पड़ी , 1859 में ब्रिटिश शासकों ने मस्जिद के सामने एक दीवार बना कर परिसर को बांट दिया, परिसर के भीतरी हिस्से में मुसलमानों को और बाहरी हिस्से में हिंदुओं को प्रार्थना करने की अनुमति दी गई।
1885: पहली बार हिंदू साधु महंत रघुबर दास ने फैजाबाद कोर्ट में बाबरी मस्जिद परिसर में राम मंदिर बनवाने की इजाजत मांगी और जिला अदालत में यह मामला पहुंचा, परन्तु मामला इतना संवेदनशील था कि अदालत ने यह अपील ठुकरा दी और विवादित मामले ने और अधिक तूल पकड़ लिया, अदालत में तारिख पर तारिख का सिलसिला चल पड़ा।
1934: इस साल फिर सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे, इन दंगों में मस्जिद क्षतिग्रस्त हुई, मस्जिद के चारों तरफ की दीवार और गुंबदों को नुकसान पहुंचा, ब्रिटिश सरकार ने इसका पुनर्निर्माण कराया।
1949 : इस साल मामले ने नया मोड़ ले लिया, असली विवाद शुरू हुआ 23 दिसंबर 1949 को, जब भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में पाई गईं। मुस्लिमों ने इसका विरोध कर मस्जिद में नमाज पढ़ना बंद कर दिया, मुस्लिमों का कहना मूर्तिया हिंदुयों ने रखवाई हैं, जबकि हिंदुओं का कहना था कि भगवान राम प्रकट हुए हैं, इस पर दोनों पक्षों के लोगों ने अदालत में मुकदमा दायर कर दिया, यूं तो यूपी सरकार ने मूर्तियां हटाने का आदेश दिया था, लेकिन जिला मैजिस्ट्रेट के. के. नायर ने दंगों और हिंदुओं की भावनाओं के भड़कने के डर से इस आदेश को पूरा करने में असमर्थता जताई। इसके बाद सरकार ने इस स्थल को विवादित घोषित कर ताला लगवा दिया।
1950 से 1961 : ग्यारह वर्षो के अंतराल में इस मामले पर अलग अलग याचिकाएं दायर की गयी
गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद अदालत में अपील दायर कर भगवान राम की पूजा कि इजाजत मांगी, दूसरी याचिका में महंत रामचंद्र दास ने मस्जिद में हिंदुओं द्वारा पूजा जारी रखने के लिए याचिका लगाई, यह वह दौर था जब मस्जिद को ढांचे की संज्ञा दी गयी, ये दोनों अर्जी 1950 में फैजाबाद सिविल कोर्ट में दाखिल की गयी थीं, इसमें एक में राम लला की पूजा की इजाजत और दूसरे में विवादित ढांचे में भगवान राम की मूर्ति रखे रहने की इजाजत मांगी गई। 1959 में तीसरी अर्जी निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल के हस्तांतरण और दोनों पक्षों के हक़ के लिए दाखिल की। दूसरी और मुसलमानों की तरफ से उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद पर मालिकाना हक मूर्तियां हटाने की मांग को लेकर मुकदमा कर दिया।
1984: रामजन्मभूमि मुक्ति समिति का गठन
विश्व हिंदू परिषद के नेतृत्व में हिंदुओं ने भगवान राम के जन्मस्थल को मुक्त करवाने और मस्जिद की जगह राम मंदिर निर्माण के लिए एक समिति का गठन किया, इधर गोरखपुर में गोरखनाथ धाम के महंत अवैद्यनाथ ने राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति गठित की साथ ही अपने शिष्यों और लोगों से कहा था कि उसी पार्टी को वोट देना जो हिंदुओं के पवित्र स्थानों को मुक्त करवाए, बाद में इस अभियान का नेतृत्व भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने अपने हाथ में ले लिया।
फरवरी 1986: दो वर्ष बाद यू. सी. पांडे की याचिका पर फैजाबाद के जिला जज के. एम. पांडे ने 1 फरवरी 1986 को हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत देते हुए ढांचे पर से ताला खोलने का आदेश दिया। इधर मुसलमानों ने इसके विरोध में बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति/बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी बनाई।
जून 1989: विश्व हिंदू परिषद ने राम मंदिर का शिलान्यास किया, इस मामले में विश्व हिंदू परिषद को भारतीय जनता पार्टी का औपचारिक समर्थन भी मिला। वीएचपी नेता देवकीनंदन अग्रवाल ने रामलला की तरफ से मंदिर के दावे का मुकदमा दायर कर दिया। नवंबर में मस्जिद से थोड़ी दूर पर राम मंदिर का शिलान्यास किया गया, हिंदुओं में अलख जगाने और इस पूरे मुद्दे से अवगत करने के उद्देश्य से भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली, जिसके लिए हजारों कार सेवक अयोध्या में जमा हुए, उधर बिहार में लालू यादव ने आडवाणी की रथ यात्रा रुकवा कर उन्हें गिरफ्तार करवा लिया, नतीजतन गुजरात, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश में दंगे भड़क उठे, अनगिनत जगहों पर कर्फ्यू लगा दिया गया, लेकिन हिंदुयों की जाग्रति ने रोड़ा लगाया , मंदिर निर्माण के लिए देशभर से लाखों ईंटे अयोध्या भेजी गईं, साथ ही भाजपा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया।
कार सेवा और गोलीकांड
30 अक्टूबर 1990, अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के लिए पहली बार कारसेवा हुई थी। कारसेवकों ने मस्जिद पर चढ़कर झंडा फहराया, इसके बाद मुलायम सिंह यादव की सरकार के आदेश पर कार सेवकों पर गोली चलायी गयीं, जिसमे पांच कारसेवकों की मौत हो गई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री ने विवाद सुलझाने का प्रयास भी किया लेकिन सफलता नहीं मिली।
जून 1991: उत्तर प्रदेश में चुनाव हुए, मुलायम सिंह यादव की सपा सरकार हार गई, भाजपा की सरकार बन गई। 30-31 अक्टूबर 1992 को धर्मसंसद में कारसेवा की घोषणा की गई थी, नवंबर में यूपी के सीएम कल्याण सिंह ने अदालत में मस्जिद की हिफाजत करने का हलफनामा दिया।
6 दिसंबर 1992 का काला दिन :
6 दिसंबर 1992 जब बाबरी मस्जिद ढहायी गयी और अस्थाई राम मंदिर बना दिया गया जिससे देश में हिंसा सुलग उठी, इस रोज हजारों की संख्या में कारसेवकों, बीजेपी, वीएचपी और शिवसेना समेत दूसरे हिंदू संगठनों के लाखों कार्यकर्ताओं ने अयोध्या पहुंचकर विवादित ढांचे को गिरा दिया। पूरा देश दंगो की चपेट में आगया, चारों ओर सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे, करीब 2000 लोगों के मारे गए।
16 दिसंबर 1992: मस्जिद को ढहाने के मामले को लेकर लिब्रहान आयोग बनाया गया। जज एमएस लिब्रहान के नेतृत्व में जांच शुरू की गई।
1994: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में बाबरी मस्जिद विध्वंस से संबंधित केस चलना शुरू हुआ।
सितंबर 1997: बाबरी मस्जिद ढहाए जाने की सुनवाई कर रही विशेष अदालत ने इस मामले में 49 लोगों को दोषी माना इसमें भारतीय जनता पार्टी के कुछ प्रमुख नेताओं के नाम भी शामिल थे।
2001: विश्व हिंदू परिषद ने राम मंदिर बनाने की तारीख तय कर कहा कि 15 मार्च 2002 को अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण कराया जाएगा, परन्तु बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी पर तनाव बढ़ गया और फरवरी, साल 2002 में हिंदू कार्यकर्ताओं को ले जा रही ट्रेन में गोधरा में आग लगा दी गई, जिसमें 58 लोगों जिन्दा जल गए, इसकी वजह से एक बार फिर दंगे भड़क उठे जिसमें 2 हजार से ज्यादा लोग मारे गए।
अयोध्या विवाद सुलझाने के लिए प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने अयोध्या समिति का गठन कर वरिष्ठ अधिकारी शत्रुघ्न सिंह को हिंदू और मुसलमान नेताओं के साथ बातचीत के लिए नियुक्त किया। भाजपा ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए अपने घोषणापत्र में राम मंदिर निर्माण के मुद्दे को शामिल नहीं किया।
13 मार्च 2002: सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अयोध्या में यथास्थिति बरकरार रखी जाएगी, किसी को भी सरकार द्वारा अधिग्रहित जमीन पर शिलापूजन की अनुमति नहीं होगी, केंद्र सरकार ने अदालत के फैसले का पालन करने का आश्वासन दिया।
15 मार्च 2002: सरकार को सौंपी गई शिलाएं
विश्व हिंदू परिषद और केंद्र सरकार के बीच इस बात पर भी समझौता हुआ कि विहिप के नेता सरकार को मंदिर परिसर से बाहर शिलाएं सौंपेंगे। रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत परमहंस रामचंद्र दास और विहिप के कार्यकारी अध्यक्ष अशोक सिंघल के नेतृत्व में लगभग 800 कार्यकर्ताओं ने सरकारी अधिकारी को अखाड़े में शिलाएं सौंपीं।
अप्रैल 2002 में हाईकोर्ट के तीन जजों की पीठ ने अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर सुनवाई आरंभ की।
मार्च-अगस्त 2003: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने हाई कोर्ट के निर्देश पर अयोध्या में खुदाई की, पुरातत्वविदों ने कहा कि मस्जिद के नीचे मंदिर से मिलते-जुलते अवशेष के प्रमाण मिले हैं, हालांकि इसे लेकर भी अलग-अलग मत सामने आए। इसके बाद केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से विवादित स्थल पर पूजापाठ की अनुमति देने का अनुरोध किया, परन्तु कोर्ट ने अनुरोध ठुकरा दिया।
मई 2003: सीबीआई ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में उप-प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी समेत 8 लोगों के खिलाफ पूरक आरोप पत्र दाखिल किया।
जून 2003: कांची पीठ के शंकराचार्य ने जयेंद्र सरस्वती ने मामला सुलझाने के लिए मध्यस्थता की, उन्होंने उम्मीद जताई थी कि एक महीने में इस मामले का हल निकाल लिया जाएगा लेकिन उनका यह प्रयास विफल रहा।
अगस्त 2003: भाजपा नेता और उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने विहिप के इस अनुरोध को ठुकरा दिया, जिसमें अनुरोध था कि राम मंदिर बनाने के लिए विशेष विधेयक लाया जाए।
अप्रैल-जुलाई 2004: आडवाणी ने अयोध्या में अस्थाई राम मंदिर में पूजा की और कहा कि मंदिर का निर्माण जरूर किया जाएगा। जुलाई में शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे की तरफ से सुझाव दिया गया कि विवादित स्थल पर मंगल पांडे के नाम पर कोई राष्ट्रीय स्मारक बना दिया जाए।
जनवरी-जुलाई 2005: लालकृष्ण आडवाणी को अयोध्या में छह दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस में उनकी कथित भूमिका के मामले में अदालत में तलब किया गया। जुलाई 2005 में अयोध्या के राम जन्मभूमि परिसर में आतंकी हमले हुए, जिसमें पांचों आतंकियों सहित छह लोग मारे गए। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बाबरी मस्जिद गिराए जाने के दौरान में आडवाणी को भड़काऊ भाषण देने के मामले में अदालत में पेश होने कहा। इससे पहले उन्हें बरी कर दिया गया था। 28 जुलाई को आडवाणी रायबरेली की एक अदालत में पेश हुए और कोर्ट ने उनके खिलाफ आरोप तय किए।
4 अगस्त 2005: फैजाबाद की अदालत ने अयोध्या के विवादित परिसर के पास हुए हमले में कथित रूप से शामिल चार लोगों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया।
20 अप्रैल 2006: कांग्रेस के नेतृत्ववाली यूपीए सरकार ने बावरी मस्जिद ढहाए जाने और कार सेवा के दंगो में तब्दील होने की जाँच को लेकर बने लिब्रहान आयोग से लिखित बयान में कहा कि बाबरी मस्जिद को ढहाया जाना सुनियोजित षड्यंत्र था। इसमें भाजपा, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, बजरंग दल और शिवसेना की मिलीभगत थी।
जुलाई 2006 में सरकार ने अयोध्या में विवादित स्थल पर बने अस्थाई राम मंदिर की सुरक्षा के लिए बुलेटप्रूफ कांच का घेरा बनाए जाने का प्रस्ताव दिया, इस प्रस्ताव का मुस्लिम समुदाय ने विरोध किया, बुलेटप्रूफ कांच का घेरा बनाने का प्रस्ताव खारिज कर दिया गया।
19 मार्च 2007 : कांग्रेस सांसद राहुल गाँधी ने चुनावी दौरे में विवादित बयान दिया कि अगर नेहरू-गांधी परिवार का कोई सदस्य प्रधानमंत्री होता तो बाबरी मस्जिद न गिरी होती, उनके इस बयान पर पूरे देश की राजनीतिक हलकों में कड़ी आलोचना हुई।
30 जून-नवंबर 2009 : 17 वर्षों के बाद बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के मामले की जांच के लिए गठित लिब्रहान आयोग ने अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंपी। इसी साल, 7 जुलाई को उत्तर प्रदेश सरकार ने स्वीकार किया कि अयोध्या विवाद से जुड़ी 23 जरूरी फाइलें सचिवालय से गायब हो गई हैं। 24 नवंबर को लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों में पेश की गयी, इस आयोग ने अटल बिहारी वाजपेयी और मीडिया को दोषी ठहराया, जबकि नरसिंहराव को क्लीन चिट मिली।
20 मई 2010 : विध्वंस के मामले में लालकृष्ण आडवाणी और अन्य नेताओं के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने को लेकर दायर पुनरीक्षण याचिका हाईकोर्ट में खारिज हो गई, इसके बाद 26 जुलाई 2010 को अयोध्या विवाद पर हाईकोर्ट में सुनवाई पूरी हुई।
सितंबर 2010 : 8 सितंबर को हाईकोर्ट ने अयोध्या विवाद पर फैसला सुनाने की तारीख तय की। 28 सितंबर को हाईकोर्ट द्वारा फैसला टालने की अर्जी को खारिज कर दिया गया।
30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इसके तहत विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटा गया, इसमें एक हिस्सा राम मंदिर, दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े को मिला, लेकिन हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ 14 अपील दाखिल हुईं। 9 मई 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी।
मार्च-अप्रैल 2017 : 21 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने आपसी सहमति से विवाद सुलझाने की बात कही। सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती सहित बीजेपी और आरएसएस के कई नेताओं के खिलाफ आपराधिक केस चलाने का आदेश दिया।
नवंबर-दिसंबर 2017 : 8 नवंबर को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात के बाद शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी ने कहा कि, "विवादित स्थल पर राम मंदिर बने, वहां से दूर हटके मस्जिद का निर्माण किया जाए।" 16 नवंबर को आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर ने मामले को सुलझाने के लिए मध्यस्थता की कोशिश की, उन्होंने कई पक्षों से मुलाकात की, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई भी हुई, जिसके बाद कोर्ट ने 8 फरवरी तक सभी दस्तावेजों को पूरा करने के लिए कहा।
फरवरी-जुलाई 2018 : 8 फरवरी को सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से पक्ष रखते हुए वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने सुप्रीम कोर्ट से मामले पर नियमित सुनवाई करने की अपील की, लेकिन अपील ख़ारिज कर दी गयी, राजीव धवन ने कोर्ट से मांग की कि साल 1994 के इस्माइल फारूकी बनाम भारतीय संघ के फैसले को पुर्नविचार के लिए बड़ी बेंच के पास भेजा जाए, सुप्रीम कोर्ट ने राजीव धवन की अपील पर फैसला सुरक्षित रख लिया।
27 सितंबर 2018 : कोर्ट ने इस्माइल फारूकी बनाम भारतीय संघ के 1994 पर फैसला देते हुए कहा कि 'मस्जिद इस्लाम का अनिवार्य अंग नहीं' मामले को बड़ी बेंच को भेजने से इनकार करते हुए कहा था कि अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में दीवानी वाद का निर्णय साक्ष्यों के आधार पर होगा और पूर्व का फैसला सिर्फ भूमि आधिग्रहण के केस में ही लागू होगा।
29 अक्टूबर 2018: सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जल्द सुनाई पर इनकार करते हुए केस जनवरी 2019 तक के लिए टाल दिया।
24 नवंबर 2018 को शिवसेना का अयोध्या में कार्यक्रम हुआ, इस सभा में उद्धव ठाकरे ने अपने भाषण में बीजेपी को भरपूर कोसा। उन्होंने मोदी सरकार की तुलना कुंभकरण से करते हुए कहा कि "मैं यहां कोई लड़ाई लड़ने नहीं आया हूं, आज तो मैं सिर्फ सोए हुए कुंभकरण को जगाने आया हूं। कुंभकरण 6 महीने सोते थे, आज के कुंभकरण पिछले 4 सालों से सोए हुए हैं। मैं उनको जगाने आया हूं। जो वादा करते हैं, जो वचन देते हैं, उसे निभाना चाहिए। चलो सब लोग मिलकर मंदिर बनाते हैं।"
25 नवंबर 2018 : अयोध्या में विश्व हिंदू परिषद की अगुवाई में धर्म सभा हुई, इस धर्म सभा में हिंदू संत रामभद्राचार्य ने कहा कि बहुत जल्द ही भव्य राम मंदिर का निर्माण करना होगा। भाजपा पर आरोप लगाया कि पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की वजह से तारीख का ऐलान नहीं किया जा रहा है। इसके साथ ही विश्व हिंदू परिषद का कहना था कि अब करो या मरो का वक्त है, देश का बहुसंख्यक समाज अब इस मामले का हल होते हुए देखना चाहता है।
1 जनवरी 2019 : पीएम मोदी ने अपने पहले इंटरव्यू में कहा कि, "अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए अध्यादेश पर फैसला कानूनी प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही लिया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है और संभवत: अपने अंतिम चरण में है। उन्होंने कहा कि कानूनी प्रक्रिया पूरी होने दीजिए, इसके बाद जो भी सरकार की जिम्मेदारी होगी उसे पूरा किया जाएगा।"
8 मार्च 2019 : सुप्रीम कोर्ट ने मामले को मध्यस्थता के लिए भेजा। पैनल को 8 सप्ताह के अंदर कार्यवाही खत्म करने को कहा, परन्तु अगस्त 2019 तक मध्यस्थता पैनल समाधान निकालने में विफल रहा
1 अगस्त को मध्यस्थता पैनल ने रिपोर्ट प्रस्तुत की, 2 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता पैनल मामले का समाधान निकालने में विफल रहा, 6 अगस्त से सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की रोजाना सुनवाई शुरू हुई।
16 अक्टूबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले में सुनवाई पूरी हुई और फैसला सुरक्षित रखा गया।
अयोध्या विवाद पर आया अंतिम फैसला
सुप्रीम कोर्ट से पहले इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2010 में अपना फैसला सुनाया था। 30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2.77 एकड़ जमीन का बंटवारा कर दिया गया था। कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला विराजमान के बीच जमीन बराबर बांटने का आदेश दिया था। हाई कोर्ट के इस फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसपर लंबी सुनवाई के बाद शनिवार (9 नवंबर 2019) को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया और विवादित जमीन रामलला को देने का आदेश दिया।
इसके बाद अयोध्या में 5 अगस्त को पीएम मोदी के द्वारा भूमि पूजन किए जाने के बाद से वैदिक रीति रिवास से राम मंदिर निर्माण का काम शुरू हो चूका है ताजा जानकारी के मुताबिक राम जन्मभूमि परिसर में पत्थरों को ले जाने का काम भी शुरू हो चुका है. परन्तु आज भी 6 दिसंबर की तारीख स्याह है।
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