भारत।दिल्ली स्पेशल कोर्ट ने श्रीनगर में ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ्रेंस (APHC) के कार्यालय को सील करने का आदेश जारी किया था। आज सुबह-सुबह राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ्रेंस (APHC) के कार्यालय को सील करने के लिए श्रीनगर के राजबाग पहुंची। अदालत में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने कार्यालय का इस्तेमाल विरोध प्रदर्शनों की रणनीति बनाने और सुरक्षा बलों पर पथराव की गतिविधियों के लिए किए जाने की बात कही थी।
कश्मीर घाटी में अशांति फैलाने का आरोप:
यह मामला अलगाववादी नेता नईम अहमद खान से जुड़ा हुआ है, जो 14 अगस्त, 2017 से न्यायिक हिरासत में हैं। नईम अहमद खान पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने कश्मीर घाटी में “अशांति पैदा करने” का आरोप लगाया है, जिसके लिए उसे 24 जुलाई, 2017 को गिरफ्तार किया गया था। पिछले साल नईम खान को दिसंबर में जमानत देने से इनकार कर दिया गया था।
पटियाला हाउस कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश मलिक ने कार्यालय कुर्क करने के लिए यूएपीए की धारा 33(1) के तहत एनआईए की याचिका पर कार्यालय की कुर्की का आदेश पारित किया। एनआईए ने अदालत को बताया कि संपत्ति का आंशिक रूप से खान और उसके सहयोगियों का स्वामित्व है।
एनआईए (NIA) ने लगाए ये आरोप :
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) के अनुसार, राजबाग स्थित कार्यालय का उपयोग विभिन्न विरोध प्रदर्शनों की रणनीति बनाने, सुरक्षा बलों पर पथराव की गतिविधियों के वित्तपोषण, बेरोजगार युवकों की भर्ती करने के लिए “गैरकानूनी गतिविधियों के साथ-साथ आतंकवादी गतिविधियों” को अंजाम देने के लिए किया गया था, ताकि जम्मू-कश्मीर सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए अशांति पैदा की जा सके।
नईम खान के वकील द्वारा यह प्रस्तुत किया गया था कि कार्यालय का केवल आंशिक रूप से स्वामित्व उसके पास था, जबकि अन्य सह-मालिकों को कुर्की से पहले कोई नोटिस नहीं दिया गया था।
अदालत ने ये कहा :
इस पर अदालत ने कहा कि खान के अलावा कार्यालय से जुड़े कई अन्य आरोपी मामले में अभियोजन का सामना कर रहे हैं। अदालत ने कहा कि इस प्रक्रिया में यह देखने की जरूरत नहीं है कि अगर कोई अन्य व्यक्ति जो सह-मालिक होने का दावा करता है और यह मानता है कि कुर्की की ऐसी प्रक्रिया उचित नहीं है, तो कानून के अनुसार कानूनी अधिकार प्राप्त कर सकता है। अदालत ने कहा कि संपत्ति की कुर्की अपने आप में मुकदमे पर कोई असर नहीं डालती है, और इसे किसी भी तरह से आरोपी के खिलाफ सजा या अपराध के निष्कर्ष के रूप में नहीं माना जा सकता है।
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