ज्ञानवापी मामले में कोर्ट ने दिया मुस्लिम पक्ष को झटका Syed Dabeer Hussain - RE
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ज्ञानवापी मामले में कोर्ट ने दिया मुस्लिम पक्ष को झटका, जानिए क्या है ज्ञानवापी विवाद और इसका इतिहास?

हिन्दू पक्ष का दावा है कि ज्ञानवापी मस्जिद के नीचे 100 फीट ऊंचा विशेश्वर का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है। वहीं मुस्लिम पक्ष इससे इंकार करता आया है।

Priyank Vyas

राज एक्सप्रेस। ज्ञानवापी परिसर में स्थित श्रृंगार गौरी की रोजाना पूजा करने को लेकर चल रहे विवाद में वाराणसी कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका को ख़ारिज करते हुए इस मामले को सुनवाई के योग्य माना है। कोर्ट के इस फैसले के बाद जहां हिन्दू पक्ष में ख़ुशी का माहौल है, वहीं मुस्लिम पक्ष ने इस फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती देने की बात कही है। कोर्ट के फैसले के बाद अब इस मामले की सुनवाई हो सकती है। बता दे कि हिन्दू पक्ष की ओर से 18 अगस्त 2021 को याचिका दायर करके सालभर श्रृंगार गौरी पूजा की अनुमति मांगी गई थी।

क्या है ज्ञानवापी विवाद?

दरअसल वाराणसी में प्रसिद्द काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी हुई ज्ञानवापी मस्जिद है। इस मस्जिद को लेकर दावा किया जाता है कि इसे मुस्लिम आक्रांताओं ने मंदिर को तोड़कर बनाया है। इसके अलावा हिन्दू पक्ष का यह भी दावा है कि ज्ञानवापी मस्जिद के नीचे 100 फीट ऊंचा विशेश्वर का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है। वहीं मुस्लिम पक्ष इससे इंकार करता आ रहा है। इसके अलावा मुस्लिम पक्ष साल 1991 में संसद द्वारा पारित किए गए ‘प्लेसेस ऑफ़ वरशिप एक्ट’ का भी हवाला देता है। इस एक्ट के अनुसार, ‘साल 1947 में जो धार्मिक स्थल जैसे थे, उन्हें उसी हालत में कायम रखा जाएगा।’

क्या कहता है इतिहास?

इतिहास की बात करें तो माना जाता है कि करीब 2050 साल पहले महाराजा विक्रमादित्य ने यहां मंदिर का निर्माण करवाया था। 1194 में मोहम्मद गौरी ने मंदिर को लूटने के बाद उसे तुड़वा दिया। इसके बाद 1447 में मंदिर को स्थानीय लोगों ने मिलकर बनाया, जिसे जौनपुर के शर्की सुल्तान शाह ने वापस तुड़वा दिया। 1585 में अकबर के नौ रत्नों में से एक राजा टोडरमल ने इसका वापस पुनर्निमाण कराया, लेकिन 18 अप्रैल 1669 को मुगल आक्रंता औरंगजेब ने वापस मंदिर को ध्वस्त करवा दिया और वहां मस्जिद बनवा दी। इसके बाद इंदौर की महारानी देवी अहिल्या बाई ने वापस यहां मंदिर का निर्माण करवाया। 1809 में यह विवाद तब बढ़ गया जब हिन्दू पक्ष ने ज्ञानवापी मस्जिद उन्हें सौंपने की मांग की। इसके बाद से इस जगह को लेकर हिन्दू और मुस्लिम पक्ष के बीच विवाद बना रहा।

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