क्या होती है कार्बन डेटिंग Raj Express
भारत

ज्ञानवापी : जानिए क्या होती है कार्बन डेटिंग? और हिन्दू पक्ष क्यों कर रहा है इसकी मांग?

कार्बन डेटिंग के जरिए पुरानी लकड़ी, मिटटी, चट्टान की उम्र का पता लगाया जा सकता है। इस तकनीक की खोज शिकागो यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट विलियर्ड लिबी ने की थी।

Priyank Vyas

राज एक्सप्रेस। ज्ञानवापी मस्जिद में मिले कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग की मांग को लेकर कोर्ट पहुंचे हिन्दू पक्ष को बड़ा झटका लगा है। शुक्रवार को वाराणसी कोर्ट ने शिवलिंग जैसी दिखाई देने वाली आकृति का कार्बन डेटिंग कराने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कथित शिवलिंग को सुरक्षित रखने की बात कही है। ऐसे में कार्बन डेटिंग से कथित शिवलिंग को क्षति पहुंचती है तो यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन होगा। ऐसा होने से लोगों की धार्मिक भावनाओं को भी चोंट पहुंचेगी। यही कारण है कि कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया। अब हिन्दू पक्ष कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकता है। ऐसे में अब सवाल उठ रहा है कि कार्बन डेटिंग क्या होती है? और हिन्दू पक्ष क्यों कार्बन डेटिंग कराने की मांग कर रहा है?

कार्बन डेटिंग क्या होती है?

दरअसल कार्बन डेटिंग एक ऐसी प्रक्रिया है, जिससे यह पता लगाया जा सके कि कोई चीज कितनी पुरानी है। कार्बन डेटिंग के जरिए पुरानी लकड़ी, मिटटी, चट्टान या किसी कंकाल के जरिए उस जीव की उम्र का पता लगाया जा सकता है। इस तकनीक की खोज साल 1949 में शिकागो यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट विलियर्ड लिबी ने की थी।

कैसे पता लगाई जाती है उम्र?

दरअसल हमारे वायुमंडल में कार्बन के तीन मुख्य आइसोटोप्स है, जिन्हें कार्बन 12, कार्बन 13 और कार्बन 14 कहा जाता है। इनमें से कार्बन 12 और कार्बन 13 तो स्थिर रहता है, लेकिन कार्बन 14 की मात्रा घटती रहती है। एक रिपोर्ट के अनुसार करीब 5730 साल में कार्बन 14 की मात्रा आधी हो जाती है। जब किसी पौधे, जानवर या जीव की मृत्यु होती है तो वातावरण से इनका कार्बन का आदान-प्रदान बंद हो जाता है। ऐसे में वैज्ञानिक उनमें मौजूद कार्बन-12 और कार्बन-14 के अनुपात में बदलाव का अध्ययन करके उसकी सही उम्र पता लगा सकते हैं। इसी तरह कार्बन-12 और कार्बन-14 का अध्ययन करके पुरानी लकड़ी, मिटटी, चट्टान की उम्र का भी अंदाजा लगाया जा सकता है।

कार्बन डेटिंग की मांग क्यों की थी ?

दरअसल कोर्ट के आदेश पर ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में हुए सर्वे में वहां शिवलिंग जैसी आकृति मिली थी। तब हिन्दू पक्ष ने दावा किया था कि यह आकृति असल में एक शिवलिंग है, वहीं मुस्लिम पक्ष का दावा है कि वो शिवलिंग नहीं बल्कि फव्वारा है जो हर मस्जिद में होता है। ऐसे में हिंदू पक्ष ने याचिका दायर कर शिवलिंग की कार्बन डेटिंग कराने की मांग की थी। इसके पीछे हिन्दू पक्ष की दलील है कि कार्बन डेटिंग के जरिए यह पता लगाया जाए कि मस्जिद में मिली उस आकृति की सही उम्र क्या है। ताकि यह साफ़ हो सके कि वह वाकई फव्वारा है या कुछ और।

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