राज एक्सप्रेस। बीते दिनों गुजरात सरकार ने बिलकिस बानो से गैंगरेप और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के दोषियों को रिहा कर दिया है। सरकार ने माफ़ी नीति के तहत 15 अगस्त को 11 अभियुक्तों को आजाद कर दिया है। सरकार के इस फैसले की देशभर में आलोचना हो रही है। कई लोग सरकार के इस फैसले को गलत बता रहे हैं। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी इस मामले को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा है। इसके अलावा बिलकिस बानो और उनके पति याकूब रसूल भी सरकार के इस फैसले से हैरान और दुखी हैं।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल 27 फ़रवरी 2002 को कुछ लोगों ने गोधरा के पास साबरमती एक्सप्रेस के कोच को जला दिया, जिससे उसमें बैठे 59 कारसेवकों की मौत हो गई। इस घटना से गुजरात में दंगे भड़क उठे। ऐसे में दंगाइयों से बचने के लिए पांच महीने की गर्भवती बिलकिस बानो अपने परिवार के साथ अपना गांव छोड़कर दूसरे गांव पहुंचीं और खेतों मे छिप गईं। 3 मार्च 2002 को 20-30 लोगों की भीड़ ने बिलकिस बानो और उनके परिवार पर हमला कर दिया। इस दौरान बिलकिस बानो के साथ रेप किया गया। यही नहीं दंगाइयों ने उनके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या कर दी, जबकि 6 सदस्य वहां से भाग गए थे।
कोर्ट ने सुनाई सजा?
इस मामले में बिलकिस बानो ने कोर्ट में सभी आरोपियों की पहचान की। सीबीआई की विशेष अदालत ने साल 2008 में 11 लोगों को इस मामले में दोषी पाया और उन्हें रेप, हत्या और गैरकानूनी तौर पर एक जगह इकट्ठा होने के आरोप में उम्रकैद की सजा सुनाई थी। वहीं सात लोगों को सबूतों के अभाव में छोड़ दिया गया।
सरकार ने क्यों की सजा माफ़?
दरअसल नियमों के अनुसार किसी भी कैदी को यदि उम्रकैद की सजा होती है तो उसे कम से कम चौदह साल तो जेल में बिताने ही होते है। 14 साल की सजा पूरी होने के बाद उम्र, अपराध की प्रकृति, जेल में व्यवहार, बीमारी, अपराध करने की क्षमता सहित अन्य चीजों को देखते हुए उनकी सजा को घटाया जा सकता है। हालांकि ऐसा जरूरी नहीं है। कई बार अपराधियों की सजा को उम्र भर के लिए बरकरार रखा जाता है।
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