गांधीनगर, गुजरात। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह-राज्य गुजरात में मुख्यमंत्री बदलने की कवायद के बाद सत्तारूढ़ भाजपा के लिए नए मंत्रिमंडल का गठन, लगता है, जी का जंजाल बनता जा रहा है।
पार्टी को आज दोपहर बाद प्रस्तावित मंत्रियों के शपथ ग्रहण कार्यक्रम को भी आनन-फ़ानन में टालना पड़ा। राजभवन में दोपहर बाद 4:20 पर इस कार्यक्रम के आयोजन के लिए मंच तैयार हो गया था और बाजाब्ता इसका बैनर भी लग गया था पर मंत्रियों के चयन को लेकर पार्टी की कथित अंदरूनी खींचतान के चलते इसे हटा लिया गया। बताया जा रहा है कि इसे अब कल दोपहर डेढ़ बजे आयोजित करने की योजना है।
दरअसल, गत 11 सितंबर को अचानक तत्कालीन मुख्यमंत्री को हटाने और अगले दिन पहली बार के विधायक भूपेन्द्र पटेल को राज्य की कमान सौंपने के भाजपा के निर्णय के बाद से पार्टी में अंदरूनी कलह का पिटारा खुल गया लगता है। श्री पटेल ने 13 सितंबर को अकेले शपथ ली थी और तब राज्य भाजपा प्रमुख सी. आर. पाटिल ने कहा था कि मंत्रियों का चयन और शपथ प्रक्रिया एक-दो दिन में पूरी हो जाएगी।
श्री पाटिल के घर और भाजपा प्रदेश मुख्यालय में औपचारिक तथा अन्य स्थानों पर अनौपचारिक बैठकों के दौर पर दौर जारी हैं पर मंत्रियों की अंतिम सूची बन नहीं पा रही। पार्टी सूत्रों ने बताया कि मामला शीर्ष नेतृत्व तक भी कई बार पहुंचा है और किरकिरी से बचने के लिए इसे जल्द से जल्द निपटाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
सूत्रों ने बताया कि राज्य में मंत्रिमंडल के गठन के फ़ार्मूले को लेकर मुश्किल है। उपमुख्यमंत्री हो या नहीं, हो तो एक हो या दो। पुराने मंत्रिमंडल से किन किन लोगों की छंटनी की जाए, पाटीदार मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद अन्य के चयन में जातीय संतुलन किस तरह साधा जाए- ये बातें तो अपनी जगह हैं, सबसे बड़ा सिरदर्द वरिष्ठ नेताओं को संतुष्ट करने को लेकर है।
प्रधानमंत्री मोदी के राज्य में उन तक सीधी पहुंच वाले लोग हैं तो गुजरात के ही निवासी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पूर्व मुख्यमंत्री तथा अब उत्तर प्रदेश की राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल के समर्थकों और चहेतों के अपने भी प्रत्यक्ष-परोक्ष गुट हैं। भाजपा के संगठन महामंत्री बी. एल. संतोष तथा गुजरात प्रभारी केंद्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव ने कल पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी और नाराज बताए जा रहे पूर्व उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल के अलावा पूर्व शिक्षा मंत्री भूपेन्द्र चूड़ासमा के साथ बैठक की थी। पूर्व मंत्रियों की छंटनी, नए लोगों के चयन और विभागों आदि को लेकर माथा-पच्ची अब भी जारी है। अगले साल विधान सभा चुनाव होने के कारण पार्टी दिग्गज नेताओं को नाराज करने का जोखिम भी नहीं उठा सकती। भाजपा को श्री मोदी के इस राज्य में हर हाल में जीत हासिल करना होगा। ढाई दशक से अधिक समय से लगातार सत्ता पर काबिज भाजपा को पता है कि सत्ता विरोधी आम भावना के साथ ही साथ अपनो की अधिक नाराजगी खासी मारक हो सकती है।
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