फीस वृद्धि के चलते क्या बच्चों से छीना जा रहा है उनका मौलिक अधिकार? सोशल मीडिया
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फीस वृद्धि: जेएनयू की तरह इन विवि में भी हुए छात्र आंदोलन

जेएनयू में फीस वृद्धि के खिलाफ आंदोलन चल रहा है। एम.फिल कर रहे छात्र ने उच्च शिक्षा को लेकर मानव संसाधन विकास मंत्रालय को लिखा पत्र। क्या समाज के एक बड़े वर्ग से उनके मौलिक अधिकार को छीना जा रहा है?

Author : प्रज्ञा

राज एक्सप्रेस। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में पिछले कई दिनों से विरोध प्रदर्शन हो रहा है। प्रदर्शन हॉस्टल मेन्युअल, शुल्क वृद्धि, पुस्तकालय के समय में बदलाव आदि के विरोध में हो रहा है। विद्यार्थियों के विरोध के चलते दिनांक 13 नवंबर 2019 को मानव संसाधन मंत्रालय के शिक्षा सचिव आर. सुब्रमण्यम ने ट्वीट कर शुल्क वृद्धि में प्रमुख वापसी की घोषणा की।

इसके बाद भी जेएनयू में विरोध प्रदर्शन नहीं थमा। बच्चों का कहना है कि, ये प्रमुख वापसी केवल दिखावा भर है और जब तक बढ़ी हुई फीस पूरी तरह वापस नहीं होगी प्रदर्शन जारी रहेगा।

इसके बीच विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह हुआ, जिसका आयोजन कैम्पस के बाहर आईसीटीई परिसर में किया गया। विद्यार्थी यहां भी अपना विरोध दर्ज़ कराने पहुंचे और नेल्सन मंडेला सड़क को जाम कर दिया। जिसके बाद पुलिस और बच्चों में झड़प हो गई।

बच्चों के आंदोलन को राजनीतिक रूप देने की हर कोशिश होती नज़र आ रही है। जिस तरह से इतने दिनों के प्रदर्शन के बाद भी वीसी बच्चों से नहीं मिलते हैं, प्रमुख समाचार चैनल और पत्रकार विद्यार्थियों के आंदोलन को गलत ठहराते हैं, एक विशेष दल के यूजीसी परिसर के सामने विरोध प्रदर्शन करने के तुरंत बाद सरकार फीस वृद्धि में प्रमुख वापसी की घोषणा करती है, ये सब एक असल मुद्दे का राजनीतिकरण ही लगता है।

इस राजनीति के बीच दिल्ली विश्वविद्यालय के 96वें दीक्षांत समारोह में एक विद्यार्थी ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय को एक पत्र लिखा। 4 नवंबर 2019 को लिखे गए इस पत्र में शिक्षा के निजी और व्यवसायीकरण, विद्यार्थियों और शिक्षकों की भर्ती में आरक्षण नीति के अनुचित तरह से लागू होने और योग्यता को ब्राह्मणवादी नज़रिए से मापने पर चिंता जताई गई है।

ये पत्र जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से एम.फिल कर रहे छात्र ने लिखा है। स्नातक और परास्नातक की पढ़ाई दिल्ली विश्वविद्यालय से करने वाले इस छात्र ने दीक्षांत समारोह में सम्मानित होने के दौरान ये पत्र मंत्रालय को लिखा। (सुरक्षा की दृष्टि से विद्यार्थी का नाम ज़ाहिर नहीं किया जा रहा है)

भारतीय शिक्षा नीति पर चिंता ज़ाहिर करते हुए एक विद्यार्थी द्वारा लिखा गया पत्र।

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के आंदोलनरत छात्रों के समर्थन में लिखा गया यह पत्र तत्कालीन समय में उच्च शिक्षा की हालत पर सोचने के लिए मजबूर करता है।

पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में हुई फीस वृद्धि, हॉस्टल और पुस्तकालय के समय में बदलावों की घटनाएं चिंतनीय हैं।

शिक्षा का अधिकार हमारे मौलिक अधिकारों में से एक तो है लेकिन जिस तरह से इस क्षेत्र में निजीकरण बढ़ रहा है और जातिगत, धर्म आधारित विसंगतियां जन्म ले रही हैं, समाज की आखिरी ईकाई तक इस अधिकार की पहुंच मुश्किल दिखाई पड़ती है।

पत्र में भारत सरकार के व्यवहार पर भी सवाल खड़े किए गए हैं। साथ ही समाज के अनगिनत लोगों (जिनमें से अधिकतर वंचित वर्गों से ताल्लुक रखते हैं) तक शिक्षा की पहुंच पर चिंता जताई गई है। इस परिस्थिति में भारत के एक सामाजवादी देश होने पर भी प्रश्न उठते हैं।

इन महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में भी हुए फीस वृद्धि के खिलाफ आंदोलन-

1. हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय, उत्तराखंड-

जेएनयू के इतर कई महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में छात्र अनेक कारणों से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। उत्तराखंड राज्य के आयुष छात्र पिछले लगभग डेढ़ महीने से शुल्क वृद्धि के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं। हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय की छात्र संघर्ष समिति और एनएसयूआइ पहली बार संयुक्त रूप से प्रशासन का विरोध करने सड़क पर उतरी।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, छात्रों ने उच्च न्यायालय में इसके खिलाफ याचिका दायर की, जिसे न्यायालय ने सही मानते हुए शुल्क वृद्धि वापस लेने का आदेश दिया लेकिन निजी महाविद्यालयों ने इस आदेश को नहीं माना है।

विद्यार्थी लगातार आंदोलन कर रहे हैं लेकिन प्रशासन और सरकार की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला है, जिसके चलते छात्रों की तरफ से मुख्य याचिकाकर्ता ललित तिवारी ने 12 नवंबर से क्रमिक अनशन और 14 नवंबर से आमरण अनशन का ऐलान किया था।

हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय में इस विरोध प्रदर्शन के साथ एक आंदोलन और चला। टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट के अनुसार, विधि(एलएलबी) के विद्यार्थियों को हाल ही में ये पता चला कि, विश्वविद्यालय बार काउंसिल ऑफ इंडिया से संबद्ध नहीं है और इसलिए उनकी डिग्री की मान्यता नहीं है।

विश्वविद्यालय के दो कैम्पस, पौढ़ी में स्थित डॉ. बी गोपाल रेड्डी और एसआरटी कैम्पस, टिहरी को बार काउंसिल से मान्यता प्राप्त नहीं है। साल 2010 से विश्वविद्यालय ने अपनी संबद्धता के लिए शुल्क नहीं जमा की है, जिसके चलते बार काउंसिल ने इसे रद्द कर दिया है।

2. आर्मी इंस्टीट्यूट ऑफ लॉ, मोहाली-

मोहाली, पंजाब में स्थित आर्मी इंस्टीट्यूट ऑफ लॉ के बच्चों ने 15 अक्टूबर 2019 से एक हफ्ते का आंदोलन किया। ये विरोध प्रदर्शन शुल्क वृद्धि के खिलाफ, छात्रावास के समय को रात 11 बजे तक बाध्य न करने और छात्रों के प्रशासन में प्रतिनिधित्व की मांग को लेकर था।

3. भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान (आईआईटी)-

वहीं भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बॉम्बे के एम. टेक और पीएचडी विद्यार्थियों ने 7 नवंबर को शुल्क वृद्धि के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। आईआईटी काउंसिल द्वारा हाल में कुछ प्रस्तावों को मंजूरी मिली, जिनमें ट्यूशन फीस में 300 प्रतिशत वृद्धि और एम. टेक के विद्यार्थियों को मिलने वाले मासिक वजीफे को खत्म करना शामिल है। छात्रों ने इस ही के विरोध में आंदोलन किया।

एम. टेक और पीएचडी के विद्यार्थियों की फीस आईआईटी से सभी संस्थानों में बढ़ी है। मानव संसाधन मंत्रालय का तर्क है कि बच्चे ऐसे ही एम. टेक और पीएचडी में दाखिला ले लेते हैं जबकि वे इन कोर्सेस को पूरा नहीं करते इसलिए फीस को बढ़ाया जाना चाहिए ताकि केवल जिन्हें ये कोर्स करना हो वो बच्चे ही दाखिला लें।

बच्चों ने इसका विरोध करते हुए कहा है कि, इन कोर्सेस में ड्रॉप आउट संख्या बढ़ने का कारण बेहतर पढ़ाई और लैब्स की सुविधा नहीं होना है, न कि कम फीस होना। मंत्रालय को आईआईटीज़ में पढ़ाई का स्तर बढ़ाने के लिए प्रयास करने चाहिए लेकिन वे यहां की फीस बढ़ाकर बच्चों को पढ़ाई से दूर करना चाहते हैं। ऐसे में आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग से आने वाले बच्चे तकनीकी शिक्षा हासिल नहीं कर पाएंगे।

आईआईटी बीएचयू के छात्रों ने देशव्यापी विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया था। 7 नवंबर को उन्होंने फीस वृद्धि के खिलाफ आंदोलन किया। इस आंदोलन में आईआईटी बॉम्बे के साथ आईआईटी मद्रास के विद्यार्थियों ने भी उनका साथ दिया।

4. नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी, बैंग्लोर-

इस ही साल जुलाई में नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी, बैंग्लोर में भी फीस बढ़ाने को लेकर आंदोलन हो चुका है। समाचार वेबसाइट न्यूज़ क्लिक के अनुसार, नेशनल लॉ स्कूल में 1.80 लाख से बढ़ाकर फीस को 2.30 लाख प्रतिवर्ष कर दिया गया था। जिसके विरोध में विद्यार्थियों ने प्रदर्शन किया।

5. हिन्दू महाविद्यालय, दिल्ली-

पिछले साल दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू महाविद्यालय में छात्रावास की फीस बढ़ाने को लेकर भी छात्र विरोध प्रदर्शन कर चुके हैं। अगस्त 2018 में महाविद्यालय ने छात्रावास की फीस 51000 से बढ़ाकर 70000 कर दी थी, जिसके विरोध में छात्रों ने आंदोलन किया।

6. बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नलॉजी साइंस(बिट्स)-

इसके पूर्व मई 2018 में बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नलॉजी साइंस(बिट्स) के छात्रों ने फीस वृद्धि के विरूद्ध आंदोलन किया था। हैदराबाद, गोआ और पिलानी कैम्पस के विद्यार्थियों ने 2018-19 सत्र में बढ़ी हुई फीस के विरोध में प्रदर्शन किया। बिट्स प्रशासन ने हर साल 15 प्रतिशत फीस बढ़ाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। छात्रों का कहना था कि साल 2011 से हर साल फीस बढ़ाई जा रही थी।

7. गुरू गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी, दिल्ली-

गुरू गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी ने इस साल के शुरूआत में फीस बढ़ाई और जो बच्चे आखिरी साल में थे या जो पास हो चुके थे उन से भी पिछले सालों की फीस बढ़ी हुई फीस के अनुसार जमा करने को कहा। इसके विरोध में विद्यार्थियों ने 2 जून 2019 को दिल्ली के जंतर-मंतर पर इकट्ठा हो प्रदर्शन किया था।

विश्वविद्यालय में 80 से अधिक महाविद्यालय और 20 से अधिक सरकारी संस्थान हैं, जिनमें हज़ारों बच्चें पढ़ते हैं। बच्चों को महज़ 10 से 15 दिन का वक्त फीस जमा करने के लिए दिया गया था।

इन सबके अतिरिक्त निजी महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में फीस विनियमन को लेकर सरकार का कोई खाका नज़र नहीं आता। ये अपनी मर्ज़ी से विभिन्न कोर्सेस की फीस तय करते हैं और कभी भी उसे बढ़ा देते हैं। छोटे-छोटे निजी विद्यालयों की फीस भी कई दफा इतनी अधिक होती है कि एक सामान्य मध्यवर्गीय परिवार के लिए भी उसका वहन मुश्किल होता है।

शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जो भारतीय समाज में मौजूद अनेकानेक विसंगतियों और भेदभाव को दूर कर सकता है। शिक्षित व्यक्ति वर्षों की गुलामी और समाज की रूढ़ियों को तोड़कर न सिर्फ खुद को आज़ाद करता है, बल्कि अपने परिवार और समुदाय की तरक्की के लिए भी काम करता है।

दुनिया के 135 देशों की तरह भारत में भी शिक्षा का अधिकार मौलिक अधिकारों की श्रेणी में है। पिछले कुछ सालों में यहां सरकारी शिक्षा व्यवस्था में काफी बदलाव हुए हैं। जहां एक तरफ देश की राजधानी दिल्ली में सरकारी विद्यालयों की हालत में सुधार की कई रिपोर्ट्स सामने आई हैं तो वहीं नवोदय जैसे राष्ट्रीय विद्यालय की फीस पिछले साल 200 से 1500 रूपए तक बढ़ा दी गई।

साल 2013 के पहले जवाहर नवोदय विद्यालयों में कोई फीस नहीं लगती थी। इस साल पहली बार नौवीं से बारह्वीं के बच्चों के लिए 200 रूपए फीस तय की गई। जिसे साल 2018 में बढ़ा कर 600 रूपए कर दिया गया। वहीं सरकारी नौकरी करने वाले अभिभावकों के बच्चों के लिए इसे 1500 रूपए प्रतिमाह कर दिया गया है।

जेएनयू विरोध प्रदर्शन के दौरान कई विद्यार्थियों और पूर्व विद्यार्थियों ने अपनी कहानियां दुनिया को सुनाईं।

तात्कालिक सत्र में 40 प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं जिन्हें फीस बढ़ने के कारण अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ सकती है। वे इतने सक्षम नहीं है कि बढ़ी हुई फीस जमा कर सकें, ऐसे में पढ़ाई छोड़ वापस घर जाने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं है।

नवोदय विद्यालय में बढ़ी फीस की घोषणा के बाद भी कई छात्र सामने आए और उन्होंने बताया था कि अगर नवोदय जैसा विद्यालय नहीं होता तो वे शायद पढ़ ही नहीं पाते। ऐसे लाखों विद्यार्थी हैं जो सरकारी विद्यालयों, विश्वविद्यालयों की बदौलत ही अपने पढ़ने का सपना पूरा कर पाते हैं। अगर इनकी फीस भी उनकी पहुंच से अधिक हो जाएगी तो वे कभी अपनी सामाजिक परिस्थिति से बाहर नहीं आ पाएंगे।

विभिन्न महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में फीस बढ़ने की कई खबरें लगातार सामने आ रही हैं। ऐसे में, भारत जैसे विभिन्न स्तरों पर विभाजित देश, जहां की 22 प्रतिशत जनसंख्या (आखिरी जनगणना के मुताबिक) राष्ट्रीय गरीबी रेखा के नीचे निवास करती है, में शिक्षा का मौलिक अधिकार सब तक कैसे पहुंचेगा?

कई प्रश्न हमारे सामने मुंह बहाए खड़े हैं।

क्या हम समाज के एक बहुत बड़े वर्ग से उसके मौलिक अधिकार को छीन रहे हैं?

क्या हमारी कोशिशें उन्हें हमेशा निष्कासित और गरीब ही बने रहने देने की ओर नहीं हैं?

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