केन्द्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण सोशल मीडिया
भारत

सरकारी कंपनियों में विनिवेश-निजीकरण कैसे, क्या होंगे परिणाम?

ये सार्वजनिक उपक्रम भारत पेट्रोलियम कॉर्प (BPCL) और शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया, बिजली कंपनियां THDCIL और Neepco एवं लॉजिस्टिक्स फर्म Concor हैं।

Author : Neelesh Singh Thakur

राज एक्सप्रेस।

ज्वलंत प्रश्न-

  1. केंद्र को सरकारी कंपनियां बेचने से क्या लाभ?

  2. किन तीन रास्तों से सरकार खत्म करना चाह रही राजकोषीय घाटा?

  3. विनिवेश, निजिकरण और संपत्ति विक्रय में कितना कम होगा सरकार का हस्तक्षेप?

केंद्र में शासित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की एनडीए सरकार ने सरकारी प्रभुत्व वाली कंपनियों को बेचने की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कैबिनेट की मीटिंग में पांच बड़ी भारतीय कंपनियों में विनिवेश प्रक्रिया की जानकारी दी।

भारत में आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया का नतीजा सिफर वाला निकल रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था के आंकड़े कमाई कम जबकि खर्च ज्यादा होने की हकीकत बयान कर रहे हैं। मौजूदा समय भारत का राजकोषीय घाटा 6.45 लाख करोड़ रुपए है। ऐसे में सरकार ने फिलहाल अपनी 5 सरकारी कंपनियों के निजीकरण के रास्ते निवेश का रास्ता ढूंढ़ा लगता है!

इसके बाद कितने कतार में?

वित्त मंत्री सीतारमण ने कैबिनेट मीटिंग के बाद 5 कंपनियों के विनिवेश (डिसइन्वेस्टमेंट) को मंज़ूरी दे दी है। नीति आयोग के सूत्रों के मुताबिक विनिवेश या बिक्री के लिए भारत सरकार को पूरी 46 कंपनियों की सूची दी गई है, जिसमें से दो दर्जन से अधिक के नामों को भी जल्द हरी झंडी मिलने वाली है।

मतलब जल्द ही केंद्र सरकार और कई बड़े नामों के निजी होने का ऐलान कर दे तो चौंकने वाली बात नहीं होगी! सरकार ने इस साल 1.05 लाख करोड़ रुपए कमाने का लक्ष्य निर्धारित किया है लेकिन याद रखें सरकार इस कमाई के लिए विनिवेश, निजीकरण और संपत्ति की बिक्री का रास्ता कंपनियों की वित्तीय और बाजार में हैसियत के हिसाब से करेगी।

गौर करें वित्त मंत्री ने पांच कंपनियों के साथ डिसइनवेस्टमेंट (Disinvestment) यानी विनिवेश की बात कही है। यानी सरकार BPCL समेत पांच कंपनियों के साथ अपने लाभ के हिस्से को कम कर देगी। सरकार इसके (विनिवेश) के जरिए अपनी कंपनियों के कुछ हिस्से को निजी क्षेत्र या किसी अन्य सरकारी कंपनी को बेच सकती है।

(इस बारे में सरकार क्या करेगी? ये उसके अगले कदम से ही पता चल पाएगा, अभी तो फिलहाल विनिवेश की ही बात सीमित है।)

इसी तरह बहुधा निजीकरण और विनिवेश को एक ही तरह परिभाषित किया जाता है। लेकिन (डिसइनवेस्टमेंट-Disinvestment) और निजीकरण (प्राइवेटाइजेशन-Privatization) अलग-अलग प्रक्रिया हैं। निजीकरण की प्रक्रिया में सरकार अपनी कंपनी में 51 प्रतिशत या फिर उससे अधिक हिस्से को बेचने का रास्ता चुनती है। ऐसा करने से कंपनी के प्रबंधन अधिकारों पर सरकार के बजाए क्रेता का हक हो जाता है।

इंडियन बिजनेस सेक्टर्स की हालत पर गौर करें तो टेक, ट्रांसमिशन, बैंक, ऑयल एंड एनर्जी से लेकर सभी जगह मंदी की बयार है। डॉमेस्टिक कंपनियों के पास कैपिटल नहीं है, ऐसे में विनिवेशीकरण की प्रक्रिया में विदेशी कंपनियों का प्रभुत्व भी देखने को मिल सकता है।

दरअसल सरकार ने कंपनियों के कामकाज को पेशेवर रुख देने के मकसद से प्राइवेटाइज़ेशन का रास्ता चुनने का तर्क दिया है। सरकार का मानना है कि, निजीकरण से कामकाज में पारदर्शिता आ सकेगी। फिर उन निजी कंपनियों का क्या जिनके कामकाज पर ही पहले से सवाल उठ रहे हैं?

बजट में घोषणा- एक तरह से फाइनेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण ने PSU यानी पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग्स में से सरकारी निवेश 51 परसेंट से कम करने की मंशा बजट पेश करते वक्त ही जता दी थी। इसके क्या परिणाम होंगे वो आप जान ही चुके हैं। मतलब साफ है सरकारी कंपनियों से सरकार का दायित्व एक तरह से नगण्य हो जाएगा।

प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हिस्सा- ये पक्ष भी अहम है कि किसी सरकारी उपक्रम में सरकार का प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से कितना हिस्सा है। इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (IOCL) में सरकार का 51.5% प्रत्यक्ष प्रभुत्व है जबकि लाइफ इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन (LIC) के 6.5% शेयर्स के जरिए भी सरकार की अप्रत्यक्ष साझेदारी है।

ऐसे में सरकार यदि IOCL के प्रत्यक्ष हिस्से को कम भी करती है तो भी उसका अप्रत्यक्ष प्रभाव कंपनी पर रहेगा। फिर सरकार का निजिकरण का दावा भी प्रभावित हो सकता है, क्योंकि नए निवेशक को सरकार के दवाब में निर्णय लेने पड़ सकते हैं। हालांकि ये फिलहाल एक प्रत्याशा मात्र है।

इतिहास पर गौर- पिछले रिकॉर्ड्स को देखने से साफ पता चलता है कि पुराने विनिवेश के मामलों में किसी सरकारी कंपनी के नुकसान की भारपाई विनिवेश के नाम पर दूसरे सरकारी उपक्रमों के जरिए की गई है। जिससे कंपनियों का नुकसान तो कम हुआ लेकिन कामकाज सरकारी ढर्रे पर ही चलता रहा।

विनिवेश गति- मोदी सरकार का तय टारगेट की तुलना में विनिवेश काफी धीमी गति से चल रहा है। तय 1.05 लाख करोड़ के लक्ष्य में से सरकार ने फिलहाल तकरीबन 17,365 करोड़ रुपए जुटाए हैं। एयर इंडिया का मामला भी निवेश-विनिवेश और पूरी तरह बेचने के पेंच में अटका है।

ये संभावना- कंपनियों के कामकाज में अंतर आने से परिश्रम और कॉस्टिंग पर कंपनियों का फोकस होगा। छंटनी की दशा में कर्मचारियों को पीएफ के भुगतान का भी अतिरिक्त बोझ कंपनियों पर तो पड़ेगा ही देश में बेरोजगारी दर बढ़ने की भी समस्या सामने आ सकती है। सोचनीय है कभी इस पटरी पर चलने वाला संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) अब एनडीए के रास्ते का विरोध कर रहा है?

बीपीसीएल समेत किन पर प्रभाव?

कैबिनेट ने भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) समेत पांच सरकारी कंपनियों में विनिवेश प्रक्रिया को मंजूरी दी है।

भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (BPCL) के साथ कंटेनर कॉर्पोरेशन (कॉनकॉर), टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कार्पोरेशन इंडिया लिमिटेड (THDCL), नॉर्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पॉवर कार्पोरेशन लिमिटेड (NEEPCO) और शिपिंग कॉर्पोरेशन (SCI) में विनिवेश को भी मंज़ूरी मिली है।
निर्मला सीतारमण, वित्त मंत्री, भारत सरकार

ये अहम निर्णय-

  1. केंद्र सरकार बीपीसीएल में 53.4 % और शिपिंग कॉर्पोरेशन में 63.5% हिस्सेदारी को कम करेगी। अप्रत्यक्ष होल्डिंग को मिलाकर भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड में सरकार का 53.29 प्रतिशत हिस्सा है।

  2. विनिवेश प्रक्रिया से नुमालीगढ़ रिफाइनरी में बीपीसीएल की 61 फीसदी हिस्सेदारी को अलग रखा गया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि, नुमालीगढ़ रिफाइनरी एक सार्वजनिक उपक्रम बनेगी।

  3. कैबिनेट ने शेयर अनुपात को 51 प्रतिशत से कम करने की इजाजत दी। यानि एक तरह से सभी कंपनियों में सरकारी हिस्सा 51 फीसदी से कम किया जा सकता है।

  4. शिपिंग कॉर्पोरेशन यानि भारतीय जहाजरानी निगम में 63.75 प्रतिशत सेल और कंटेनर कॉर्पोरेशन में 30.9 प्रतिशत हिस्से के विनिवेश का निर्णय लिया गया है।

  5. कॉनकॉर, THDCIL में भी बड़े बदलाव के सरकारी संकेत हैं। सरकार का कॉनकोर में 54.80 फीसद हिस्सा है।

  6. नेशनल थर्मल पॉवर कार्पोरेशन (NTPC) अब THDCIL में केन्द्र सरकार की हिस्सेदारी खरीदेगी। साथ ही NTCP के जरिए सरकार नॉर्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (NEEPCO) में भी हिस्सा साझा करेगी।

तीन सूचीबद्ध संस्थाओं में बिक्री से अनुमानित तौर पर 85,000 करोड़ रुपये तक का राजस्व जुटाने में मदद मिल सकती है।

सरकार की विनिवेश प्रक्रिया में ईंधन रिटेलर भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) और शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया, बिजली कंपनियां टीएचडीसीआईएल एवं नीपको के साथ ही लॉजिस्टिक्स फर्म कॉनकोर शामिल हैं।

सरकार ने निजीकरण के रास्ते मुनाफे का रास्ता ऐसे दौर में चुना है जब तमाम सेक्टर्स के बड़े नाम परेशानी से जूझ रहे हैं। अब देखना है कि पिछले विनिवेशों के मुकाबले इस बार का विनिवेश कितना प्रभावी साबित होगा।

ताज़ा ख़बर पढ़ने के लिए आप हमारे टेलीग्राम चैनल को सब्स्क्राइब कर सकते हैं। @rajexpresshindi के नाम से सर्च करें टेलीग्राम पर।

ताज़ा समाचार और रोचक जानकारियों के लिए आप हमारे राज एक्सप्रेस वाट्सऐप चैनल को सब्स्क्राइब कर सकते हैं। वाट्सऐप पर Raj Express के नाम से सर्च कर, सब्स्क्राइब करें।

SCROLL FOR NEXT