राज एक्सप्रेस। आखिरकार कर्नाटक (Karnataka) में पिछले कुछ दिनों से चल रहा सियासी संकट खत्म हो चुका है। कांग्रेस ने सिद्धारमैया (Siddaramaiah) और डीके शिवकुमार (D.K. Shivakumar) के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर चल रही खींचतान का हल निकाल लिया है। कांग्रेस ने सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया है जबकि डीके शिवकुमार को उपमुख्यमंत्री बनने के लिए मना लिया है। ऐसे में आज हम जानेंगे कि किसी राज्य का उपमुख्यमंत्री कितना ताकतवर होता है और उसके पास क्या-क्या शक्तियां होती हैं।
आपको बता दें कि संविधान के अनुच्छेद-164 में मुख्यमंत्री और मंत्रियों का जिक्र है, लेकिन वहां उपमुख्यमंत्री जैसे किसी पद का जिक्र नहीं है। यानि यह पद कोई संवैधानिक पद (Constitutional Post) नहीं है। उपमुख्यमंत्री के पास वही शक्तियां होती हैं, जो अन्य मंत्रियों के पास होती हैं। वह शपथ भी मंत्री पद की ही लेता है। उपमुख्यमंत्री उन्हीं विभागों का काम देखता है, जो उसे सौंपे जाते हैं। जैसा अन्य मंत्री करते हैं।
ऐसा नहीं है कि मुख्यमंत्री की अनुपस्थिति में उपमुख्यमंत्री उसके सारे काम करता है। दरअसल उपमुख्यमंत्री को यह भी अधिकार नहीं है कि वह कैबिनेट की बैठक की अध्यक्षता कर सके। हालांकि विशेष परिस्थितियों में मुख्यमंत्री के आदेश पर वह ऐसा करता है, लेकिन उसके लिए भी उपमुख्यमंत्री होना जरूरी नहीं है। कोई मंत्री भी यह काम कर सकता है। उपमुख्यमंत्री ना तो मुख्यमंत्री के पास जाने वाली फाइल को देख सकता है, ना दूसरे मंत्रियों के विभाग में दखल दे सकता है और ना ही राज्य के बड़े अधिकारियों का तबादला कर सकता है।
देखा जाए तो उपमुख्यमंत्री का पद संवैधानिक ना होकर सियासी है। कई बार किसी जाति या क्षेत्र को प्रतिनिधित्व देने के लिए उस जाति या क्षेत्र से किसी को उपमुख्यमंत्री बना देते हैं। जैसे आंध्रप्रदेश में अलग-अलग क्षेत्र को प्रतिनिधित्व देने के लिए पांच उपमुख्यमंत्री बनाए गए हैं। दरअसल उपमुख्यमंत्री का पद भले ही संवैधानिक ना हो, लेकिन जनता के बीच यही संदेश जाता है कि वह सरकार में नंबर दो की पोजीशन में हैं।
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