राज एक्सप्रेस। देश इन दिनों तीन-तरफा 'कोरोना वायरस, आर्थिक सुस्ती, नागरिकता संशोधन कानून' जैसी चुनौतियों को सामना कर रहा है और इन तीनों मामले की खबरें भी काफी सुर्खियों में बनी हुई हैं। इस दौरान पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश की मौजूदा 3 चुनौतियों के बारे में सुझाव दिए हैं।
पूर्व PM मनमोहन सिंह ने कहा-
सबसे पहले पूर्व PM मनमोहन सिंह ने देश की मौजूदा 3 चुनौतियां को बताते हुए कहा कि, ''आज देश 'कोरोनावायरस-आर्थिक सुस्ती-CAA के खिलाफ विरोध व हिंसा की चुनौती का सामना कर रहा है। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी को देश को सिर्फ अपने शब्दों से नहीं, कृत्यों से भरोसा दिलाना होगा की देश इन चुनौतियों से पार पाने में सक्षम है।''
यह 3 चुनौतियों से भारत के आंतरिक सामाजिक ढांचे को नुकसान पहुंचेगा। साथ ही विश्व में आर्थिक और लोकतांत्रिक शक्ति के रूप में देश की वैश्विक पोजिशन को भी खतरा उत्पन्न होगा।पूर्व PM मनमोहन सिंह
तीनों चुनौतियों पर PM मोदी को मनमोहन सिंह के सुझाव :
डॉ.मनमोहन सिंह का पहला सुझाव कोरोनावायरस पर दिया, जिसमें उनका यह कहना है कि, ''मोदी सरकार को सारी ताकत और प्रयास कोरोनावायरस को काबू करने पर लगा देना चाहिए और पर्याप्त तैयारी करनी चाहिए।''
डॉ.मनमोहन सिंह ने अपने दूसरे सुझाव में PM मोदी को यह सलाह दी है कि, ''नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को बदला जाए या वापस लिया जाए, ताकि ज़हरीला हो चुका सामाजिक वातावरण खत्म हो व राष्ट्रीय एकता बहाल हो।''
वहीं, अपने तीसरे सुझाव में मनमोहन सिंह ने आर्थिक सुस्ती पर कहा कि, ''विस्तृत तथा सटीक वित्तीय योजना लागू की जाए, ताकि खपत की मांग बढ़े और अर्थव्यवस्था को सुधारा जा सके।''
जानकारी के लिए बताते चलें कि, डॉ.मनमोहन सिंह 10 साल (2004-2014 तक) देश के प्रधानमंत्री रहे हैं और उन्होंने समाचारपत्र 'द हिन्दू' में प्रकाशित आलेख में देश की मौजूदा स्थिति को 'भयावह तथा म्लान' करार दिया है। साथ ही मनमोहन सिंह ने यह भी कहा कि, "बहुत भारी मन से मैं यह लिख रहा हूं, मैं खतरों के इस जमघट से बेहद चिंतित हूं, जो न सिर्फ भारत की आत्मा को तोड़ सकते हैं, बल्कि आर्थिक और लोकतांत्रिक शक्ति के रूप में हमारी वैश्विक छवि को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं।"
दिल्ली हिंसा का किया जिक्र :
दिल्ली हिंसा का ज़िक्र करते हुए मनमोहन सिंह ने कहा, ''हमारे समाज के उद्दंड वर्ग, जिसमें राजनेता भी शामिल थे, उनके द्वारा साम्प्रदायिक तनाव को हवा दी गई और धार्मिक असहिष्णुता की आग को भड़काया गया। कानून एवं व्यवस्था से जुड़ी संस्थाओं ने नागरिकों और न्याय संस्थानों की रक्षा के अपने धर्म को छोड़ दिया और मीडिया ने भी हमें निराश किया।''
छटपटाती अर्थव्यवस्था के दौर में इस तरह की सामाजिक अशांति के असर से मंदी को गति ही मिलेगी, आर्थिक विकास का आधार होता है सामाजिक सद्भाव और इस समय वही खतरे में है। टैक्स दरों को कितना भी बदल दिया जाए, कॉरपोरेट वर्ग को कितनी भी सहूलियतें दी जाएं, भारतीय तथा विदेशी कंपनियां यहां निवेश नहीं करेंगी, जब तक हिंसा के अचानक भड़क उठने का खतरा बना रहेगा।डॉ.मनमोहन सिंह
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