दिल्ली हाईकोर्ट की विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' फाइनल वार्निंग
I.N.D.I.A के संक्षिप्त नाम के इस्तेमाल को लेकर कोर्ट में जवाब देने का दिया अंतिम अवसर
10 अप्रैल को होगी मामले की सुनवाई और सुनाया जाएगा फैसला
दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने आज विपक्षी गठबंधन को आदेश दिया कि एक जनहित याचिका पर एक सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करना होगा जिसमें गठबंधन द्वारा I.N.D.I.A के संक्षिप्त नाम के इस्तेमाल को चुनौती दी गई है। मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की खंडपीठ ने कहा कि गठबंधन के लिए जनहित याचिका पर जवाब देने का यह आखिरी मौका होगा और मामले की सुनवाई 10 अप्रैल को की जाएगी और इसका निपटारा भी उसी दिन किया जाएगा।यह याचिका एक कारोबारी गिरीश भारद्वाज ने पिछले साल 3 अगस्त को दायर की थी।
यह याचिका एक कारोबारी गिरीश भारद्वाज ने पिछले साल 3 अगस्त को दायर की थी जिसको लेकर कोर्ट ने अब तक 8 बार राजनीतिक दलों और चुनाव आयोग से जवाब देने के मौके दिए गए है। गिरीश भारद्वाज की ओर से वकील वैभव सिंह ने कहा कि विपक्षी दलों और केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए आठ मौके दिए गए लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया जिसपर कोर्ट ने तत्काल सुनवाई की अर्जी खारिज करते हुए कहा कि सुनवाई की अगली तारीख पहले से ही 10 अप्रैल तय है और विपक्षी दलों और केंद्र सरकार को एक सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करना होगा।दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने का यह आखिरी और अंतिम अवसर होगा।
गिरीश भरद्वाज ने अपनी याचिका में कहा था कि विपक्षी दल अपने स्वार्थी कार्य के लिए I.N.D.I.A नाम का उपयोग कर रहे हैं और यह आगामी आम चुनावों के दौरान शांतिपूर्ण, पारदर्शी और निष्पक्ष मतदान पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है"। उन्होंने कहा कि, प्रतीक और नाम अधिनियम, 1950 की धारा 2 और 3 के तहत 'इंडिया' नाम का उपयोग निषिद्ध है। दिल्ली हाईकोर्ट ने अगस्त 2023 में 26 विपक्षी दलों और चुनाव आयोगको नोटिस जारी किया था।
हालाँकि,चुनाव आयोग ने विवाद पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया था और कहा कि वह जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (Representation of the People Act, 1951) के तहत राजनीतिक गठबंधनों को विनियमित नहीं कर सकता है। ईसीआई ने अपने जवाब में केरल उच्च न्यायालय के एक ऐसी ही मामले के फैसले का हवाला दिया जिसमें यह माना गया कि राजनीतिक गठबंधनों के कामकाज को विनियमित करने के लिए संवैधानिक निकाय को अनिवार्य करने वाला कोई वैधानिक प्रावधान नहीं है।
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