बस्तर दहशरा का परंपरागत रथ निर्माण के औजारों के साथ पूजा कर शुभारंभ होगा।
इस बार चंद्रग्रहण की वजह से बस्तर दशहरा 107 दिनों तक रहेगा।
31 अक्टूबर को माता की विदाई पूजा विधान के साथ होगा समापन।
Bastar Dussehra 2023: छत्तीसगढ़ में त्योहारों की धूम मची हुई है। ऐतिहासिक बस्तर दशहरा का पर्व सोमवार को 17 जुलाई 2023 से शुरू हो रहा है। ऐसे में लोगों के अंदर एक अलग ही उत्साह और उमंग नजर आ रही है। इस बार बस्तर दशहरा 75 दिनों का नहीं बल्कि पूरे 107 दिनों तक रहेगा, 107 दिनों तक बड़ी संख्या में लोग इसमें शामिल होंगे। इसका शुभारंभ आज मां दंतेश्वरी मंदिर के सामने पाट-जात्रा विधान के साथ होगा। इस पूजा विधान को पूरा करने के लिए शुक्रवार देर शाम को ग्राम बिलोरी के जंगल में साल के पेड़ का चयन कर पूजा-अर्चना कर काटा गया।
इस लकड़ी से रथ निर्माण के लिए बनाए जाने वाले औजार में हथौड़ा आदि बनाया जायेगा। जिसे मां दंतेश्वरी मंदिर जगदलपुर के सामने ग्रामीणों के द्वारा लाई गई साल की लकड़ी से बनाया जाएगा। बस्तर दशहरा की परंपरानुसार, अन्य परंपरागत रथ निर्माण के औजारों के साथ पूजा कर बस्तर दशहरा का शुभारंभ किया जायेगा।
बस्तर दशहरा इस वर्ष 107 दिनों तक मनाया जाएगा। बस्तर दशहरा पर्व 17 जुलाई को शुरू होकर 31 अक्टूबर तक चलेगा। हिंदू पंचाग के अनुसार बस्तर दशहरा की शुरूआत 17 जुलाई पाट जात्रा विधान के साथ होगी, 27 सितंबर डेरी गड़ाई पूजा विधान, 14 अक्टूबर काछनगादी पूजा विधान, 15 अक्टूबर कलश स्थापना, जोगी बिठाई पूजा विधान, 21 अक्टूबर बेल पूजा विधान, रथ परिक्रमा पूजा विधान, 22 अक्टूबर निशा जात्रा पूजा विधान, महाअष्टमी पूजा विधान, 23 अक्टूबर कुंवारी पूजा विधान, जोगी उठाई और मावली परघाव पूजा विधान, 24 अक्टूबर भीतर रैनी रथ परिक्रमा पूजा विधान, 25 अक्टूबर बाहर रैनी रथ परिक्रमा पूजा विधान, 26 अक्टूबर को काछन जात्रा पूजा विधान, 27 अक्टूबर को कुटुंब जात्रा पूजा विधान, एवं 31 अक्टूबर को माता की विदाई पूजा विधान के साथ आगामी वर्ष के लिए बस्तर दशहरा का परायण होगा
उल्लेखनीय है कि बस्तर के आदिवासियों की आराधना देवी मां दंतेश्वरी के दर्शन करने हेतु हर साल देश विदेश भक्त और पर्यटक पहुंचते हैं। बस्तर दशहरा के एतिहासिक तथ्य के अनुसार वर्ष 1408 में बस्तर के काकतीय शासक पुरुषोत्तम देव को जगन्नाथपुरी में रथपति की उपाधि दिया गया था, तथा उन्हें 16 पहियों वाला एक विशाल रथ भेंट किया गया था। इस तरह बस्तर में 615 सालों से दशहरा मनाया जा रहा है। राजा परुषोत्तम देव ने जगन्नाथ पुरी से वरदान में मिले 16 चक्कों के रथ को बांट दिया था। उन्होंने सबसे पहले रथ के चार चक्को को भगवान जगन्नाथ को समर्पित किया और बाकी के बचे हुए 12 चक्कों को दंतेश्वरी माई को अर्पित कर बस्तर दशहरा एवं बस्तर गोंचा पर्व मनाने की परंपरा का श्रीगणेश किया था, तब से लेकर अब तक यह परंपरा चली आ रही है।
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