जैन मुनि आचार्य विद्यासागर महाराज ने ली समाधी Raj Express
छत्तीसगढ़

Acharya Vidyasagar Maharaj : जैन मुनि आचार्य विद्यासागर महाराज ने ली समाधी, अंतिम यात्रा में उमड़ा जनसैलाब

Acharya Vidyasaga Samadhi : अंतिम यात्रा में आचार्य श्री के शिष्य समेत कई भक्तगण शामिल हुए है। आचार्य विद्या सागर महाराज के पार्थिव शरीर को अग्नि कुंड के पास लाया गया है।

Author : Deeksha Nandini

हाइलाइट्स

  • आचार्य विद्यासागर जी महाराज की अंतिम यात्रा में शिष्य समेत भक्त हुए शामिल।

  • अग्निकुंड के पास पूजन के बाद हुआ आचार्य का अंतिम संस्कार।

Jain Acharya Vidyasagar Passes Away : राजनांदगांव, छत्तीसगढ़। डोगरगढ़ स्थित चंद्रगिरि तीर्थ में जैन मुनि आचार्य विद्यासागर महाराज का आज निधन हो गया है। जिसके बाद उनकी अंतिम यात्रा निकाली गई। इस दौरान उनके अंतिम दर्शन के लिए भारी संख्या में जन सैलाब उमड़ा है। अंतिम यात्रा में आचार्य श्री के शिष्य समेत कई भक्तगण शामिल हुए है। आचार्य विद्या सागर महाराज के पार्थिव शरीर को अग्नि कुंड के पास लाया गया है। बताया जा रहा है कि, अंतिम यात्रा के बाद पार्थिव शरीर को अग्निकुंड के पास रखा गया है, यहाँ पूजन के बाद आचार्य श्री का अंतिम संस्कार किया गया है।

बताया जा रहा है कि, आचार्यश्री अंतिम सांस तक सजग अवस्था में रहे और मंत्रोच्चार करते हुए उन्होंने देह त्यागी। समाधि के समय उनके साथ जैन मुनि योगसागर जी महाराज, समतासागर जी महाराज, प्रसादसागर जी महाराज संघ समेत उपस्थित थे।

वैराग्य की भावना बचपन से ही

आचार्यश्री का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक राज्य के बेलगांव जिले के सदलगा गांव में हुआ था। जैन धर्म के संस्कार और वैराग्य की भावना बचपन से ही उनके कार्यों में परिलक्षित होती थी और उन्होंने 30 जून 1968 को राजस्थान के अजमेर नगर में मात्र 22 वर्ष की युवास्था में ही अपने गुरू आचार्यश्री ज्ञानसागर जी महाराज से मुनिदीक्षा ग्रहण की थी। आचार्यश्री ज्ञानसागर महाराज ने अपने शिष्य मुनि विद्यासागर की कठिन तपस्या को देखते हुए उन्हें कुछ ही वर्षों में आचार्य पद सौंप दिया था। आचार्यश्री विद्यासागर महाराज लगभग 45 वर्ष पहले मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड अंचल में आए थे और इस अंचल में जैन समाज की भक्ति, सजगता और समर्पण के बीच अधिकांश समय इसी अंचल में बिताया।

आचार्य ने साढ़े तीन सौ मुनि और आर्यिका दीक्षाएं दी

आचार्यश्री ने अपने जीवनकाल में लगभग साढ़े तीन सौ मुनि और आर्यिका दीक्षाएं दी हैं। इसके अलावा हजारों की संख्या में ब्र्रमचारी भैया और दीदियां भी उनसे दीक्षित हैं। उनके शिष्य और देश के अनेक प्रसिद्ध जैन संत देश के विभिन्न अंचलों में पद विहार करते हुए धर्म की प्रभावना कर रहे हैं। आचार्यश्री की अस्वस्थता के समाचार के चलते हजारों की संख्या में उनके अनुयायी पहले से ही डोंगरगढ़ पहुंच चुके थे। उनकी समाधि की सूचना के बाद देश के विभिन्न हिस्सों से हजारों की संख्या में अनुयायी डोंगरगढ़ की तरफ रुख कर रहे हैं।

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