राज एक्सप्रेस। आज देश के पूर्व प्रधानमंत्री और भाजपा के संस्थापक अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती है। अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर में 25 दिसंबर 1924 को हुआ था। साल 1998 से लेकर साल 2004 तक देश के प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी की राजनीतिक यात्रा और सत्ता में रहते हुए उनके फैसलों के बारे में तो सभी जानते हैं। लेकिन उनके जीवन का एक हिस्सा ऐसा भी है, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। वह हिस्सा है जिंदगी भर कुंवारे रहे अटल बिहारी वाजपेयी की प्रेम कहानी का, जो ना अधूरी रही और ना कभी पूरी हुई।
कॉलेज में हुआ था प्यार :
दरअसल इस कहानी की शुरुआत हुई थी 40 के दशक में। उस समय अटल बिहारी वाजपेयी ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज में पढ़ाई करते थे। इसी दौरान उन्होंने पहली बार राजकुमारी कौल को देखा। खुबसूरत राजकुमारी को देख वाजपेयी उन्हें अपना दिल दे बैठे थे। इस बीच दोनों की बातचीत बढ़ी तो राजकुमारी भी उन्हें पसंद करने लगी थी।
जब वाजपेयी ने लिखा प्रेम पत्र :
इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने प्रेम का इजहार करने के लिए राजकुमारी के नाम एक प्रेम पत्र लिखा और उसे एक किताब के अंदर रखकर राजकुमारी को दे दिया। अब वह अपने पत्र के जवाब का बेसब्री से इंतजार करने लगे लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला। हालांकि कहा जाता है कि राजकुमारी ने उनके पत्र का जवाब दिया था, लेकिन वह उन तक पहुंच ही नहीं पाया।
जुदा हुई दोनों की राहें :
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार राजकुमारी कौल के घर वाले इस रिश्ते के लिए बिल्कुल भी राजी नहीं थे और उन्होंने राजकुमारी की शादी दिल्ली के रामजस कॉलेज में दर्शन शास्त्र पढ़ाने वाले ब्रज नारायण कौल से कर दी। वहीं दूसरी तरफ अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति में व्यस्त हो गए।
दिल्ली में हुई फिर मुलाकात :
करीब एक से डेढ़ दशक बाद अटल बिहारी वाजपेयी सांसद बनकर दिल्ली आ गए जबकि राजकुमारी के पति रामजस कॉलेज के हास्टल के वार्डन बन गए। इसके बाद तो अटल बिहारी वाजपेयी और कौल परिवार के बीच अच्छे संबंध बन गए। उन दिनों अटल बिहारी अक्सर प्रोफेसर कौल के घर पहुंच जाते थे। बाद में जब दिल्ली में अटल बिहारी वाजपेयी को बड़ा बंगला मिला तो राजकुमारी कौल, उनके पति और उनकी बेटियां वाजपेयी के घर में शिफ्ट हो गए थे।
रिश्ते को लेकर उठे सवाल :
राजनीति के अंदरखाने में भी अटल बिहारी वाजपेयी और राजकुमारी के रिश्ते को लेकर बातें होती थीं, लेकिन मीडिया ने इसे कभी मुद्दा नहीं बनाया। वहीं राजकुमारी ने भी एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि, ‘वाजपेयी और मुझे अपने पति को इस रिश्ते के बारे में कभी सफाई नहीं देनी पड़ी।’ साल 2014 में जब राजकुमारी का निधन हुआ तो उनके अंतिम संस्कार में लालकृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज समेत आरएसएस के बड़े नेता भी पहुंचे थे। दूसरी तरफ कांग्रेस की नेता सोनिया गांधी ने भी चुपचाप वाजपेयी के निवास पर जाकर राजकुमारी के निधन पर अपनी संवेदना प्रकट की थी।
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