फिल्म पायरेसी कानून में 40 वर्ष बाद संशोधन किया गया।
इस कानून का उद्देश्य फिल्म पायरेसी पर अंकुश लगाने की फिल्म उद्योग की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करना है।
फिल्म पायरेसी रोकने के लिए मजबूत प्रबंध करने के कदम उठाए जा रहे हैं।
नई दिल्ली। सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने शुक्रवार को कहा कि फिल्म पायरेसी (फिल्मों के अनधिकृत कारोबार एवं वितरण) से उद्योग को सालाना 20 से 25 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है और इसे रोकने के लिए मजबूत प्रबंध करने के कदम उठाए जा रहे हैं।
उन्होंने सोसल मीडिया साइट एक्स पर कहा, “फिल्म पायरेसी के कारण भारत में सालाना 20-25 हजार करोड़ रुपये का नुकसान होता है।" उन्होंने लिखा, “इसके खिलाफ कार्रवाई करते हुए सिनेमैटोग्राफ कानून के तहत सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, सीबीएफसी मुंबई और क्षेत्रीय कार्यालयों में भी नोडल अधिकारियों की नियुक्ति की गयी है।”
सूचना प्रसारण मंत्रालय की एक विज्ञप्ति के अनुसार केंद्रीय फिल्म प्रमाणन परिषद (सीबीएफसी) और सूचना एवं प्रसारण अधिकारी पायरेटेड फिल्मी सामग्री वाली किसी भी वेबसाइट/ऐप/लिंक को ब्लॉक करने/हटाने का निर्देश देने के लिए अधिकृत किए गए हैं। कॉपीराइट कानून और आईपीसी के तहत अभी तक कानूनी कार्रवाई को छोड़कर पायरेटेड फिल्मी सामग्री पर सीधे कार्रवाई करने के लिए कोई संस्थागत तंत्र नहीं था।
मंत्रालय का कहना है कि इंटरनेट के प्रसार और लगभग प्रत्येक व्यक्ति द्वारा नि:शुल्क में फिल्मी सामग्री देखने में रुचि रखने के साथ, पायरेसी में तेजी देखी गयी है।
उपरोक्त कार्रवाई से पायरेसी के मामले में सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा तुरंत कार्रवाई की जा सकेगी और उद्योग को राहत मिलेगी।
बयान में कहा गया है कि पायरेसी के कारण फिल्म उद्योग को हर वर्ष 20,000 करोड़ रुपये का नुकसान होने के कारण सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने पायरेसी रोकने के लिए कड़े कदम उठाए हैं। इस वर्ष मानसून सत्र के दौरान संसद द्वारा सिनेमैटोग्राफ (संशोधन) कानून, 1952 को पारित करने के बाद, सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने पायरेसी केखिलाफ शिकायतें प्राप्त करने और बिचौलियों को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर पायरेटेड सामग्री को हटाने का निर्देश देने के लिए नोडल अधिकारियों का एक संस्थागत तंत्र स्थापित किया है।
विधेयक के बारे में संसद में अनुराग ठाकुर ने कहा था कि इस कानून का उद्देश्य फिल्म पायरेसी पर अंकुश लगाने की फिल्म उद्योग की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करना है। इस कानून में 40 वर्ष बाद संशोधन किया गया, ताकि 1984 में अंतिम महत्वपूर्ण संशोधन किए जाने के बाद डिजिटल पायरेसी सहित फिल्म पायरेसी के खिलाफ प्रावधानों को इसमें शामिल किया जा सके। संशोधन में न्यूनतम तीन महीने की कैद और तीन लाख तक रुपये के जुर्माने की सख्त सजा शामिल है, सजा को तीन साल तक बढ़ाया जा सकता है और ऑडिटेड सकल उत्पादन लागत का पांच प्रतिशत तक जुर्माना लगाया जा सकता है।
इस व्यवस्था के तहत मूल कॉपीराइट धारक या इस उद्देश्य के लिए उनके द्वारा अधिकृत कोई भी व्यक्ति पायरेटेड सामग्री को हटाने के लिए नोडल अधिकारी को आवेदन कर सकता है। यदि कोई शिकायत किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाती है जिसके पास कॉपीराइट नहीं है या कॉपीराइट धारक द्वारा अधिकृत नहीं है, तो नोडल अधिकारी निर्देश जारी करने से पहले शिकायत की वास्तविकता तय करने के लिये मामले दर मामले के आधार पर सुनवाई कर सकता है।
कानून के तहत नोडल अधिकारी से निर्देश प्राप्त करने के बाद, डिजिटल प्लेटफॉर्म 48 घंटे की अवधि के भीतर पायरेटेड सामग्री देने वाले ऐसे इंटरनेट लिंक को हटाने के लिए बाध्य होगा।
सिनेमैटोग्राफ कानून, 1952 की नई सम्मिलित धारा 6एबी में प्रावधान है कि कोई भी व्यक्ति अनधिकृत रूप से किसी प्रदर्शनी स्थल पर लाभ के लिए जनता के सामने प्रदर्शित करने के लिये किसी भी फिल्म का उल्लंघन करने वाली प्रति का उपयोग नहीं करेगा और न ही उसके लिये किसी को प्रेरित करेगा।
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