राज एक्सप्रेस। ‘वारिस पंजाब दे’ संगठन का प्रमुख और खालिस्तानी समर्थक अमृतपाल सिंह पिछले 14 दिनों से फरार है। पुलिस लगातार उसकी तलाश में है। वहीं अमृतपाल भी लगातार अपनी लोकेशन बदलकर पुलिस को चकमा दे रहा है। इस बीच अमृतपाल सिंह ने एक वीडियो संदेश भी जारी किया है। इस वीडियो में अमृतपाल ने उसके खिलाफ की गई कार्रवाई को पूरे सिख समुदाय के खिलाफ की गई कार्रवाई कहा है। साथ ही उसने अकाल तख्त जत्थेदार से 'सरबत खालसा' बुलाने के लिए भी कहा है। अमृतपाल ने सिख समुदाय के युवाओं से 'सरबत खालसा' में भाग लेने की अपील की है।
सरबत खालसा क्या है?
‘सरबत खालसा’ में ‘सरबत’ का मतलब ‘सभी’ और ‘खालसा’ का मतलब ‘सिख’ होता है, यानि सरबत खालसा’ का मतलब है सभी सिख। दरअसल सरबत खालसा असल में सिखों की एक सभा होती है। इसमें दुनियाभर के सिख संगठनों को बुलाया जाता है। इस दौरान सभी लोग मिलकर किसी मुद्दे पर विस्तृत चर्चा करते हैं। इसके बाद हो भी फैसला होता है, उसे तख्त साहिब के जत्थेदार सुनाते हैं। इस फैसले को सभी को मानना होता है।
सरबत खालसा का इतिहास :
दरअसल सरबत खालसा की शुरुआत 16वीं शताब्दी में हुई थी। उस समय साल में दो बार वैशाखी और दिवाली पर सिख समुदाय के लोग एक जगह इकट्ठा होते थे। इसके बाद सरबत खालसा समय-समय पर बुलाई जाती रही। हालांकि 1805 में पंजाब के महाराज रणजीत सिंह ने सरबत खालसा बुलाने पर रोक लगा दी। इसके बाद 100 साल से भी अधिक समय तक सरबत खालसा नहीं बुलाई गई। साल 1925 में जब अंग्रेजों ने गुरुद्वारों का प्रबंधन अपने हाथ में लेने के कोशिश की तो सरबत खालसा हुई थी। वहीं साल 1984 में हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद साल 1986 में भी सरबत खालसा बुलाई गई थी। इस दौरान यह तय हुआ था कि अकाल तख्त को भारत सरकार के पैसों से नहीं बल्कि कार सेवा के जरिए बनाया जाएगा।
कौन बुलाता है सरबत खालसा?
सिखों के छठें गुरु गुरु हरगोबिंद सिंह ने अकाल तख़्त की स्थापना की थी। यह आज भी सिख धर्म की सर्वोच्च संस्था है। इसके मुखिया को जत्थेदार कहा जाता है। माना जाता है कि सरबत खालसा को बुलाने का अधिकार सिर्फ अकाल तख़्त के पास होता है। हालांकि सरबत खालसा बुलाने को लेकर कई बार विवाद भी होता रहा है।
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