राज एक्सप्रेस। बीते साल दिसंबर में रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने यह कहकर सभी को चौंका दिया था कि अमेरिका भारत को दक्षिण अटलांटिक संधि संगठन यानि नाटो में शामिल करना चाहता है। अब नाटो में अमेरिका की स्थायी प्रतिनिधि जूलियन स्मिथ ने भारत के नाटो में शामिल होने को लेकर बड़ी बात कही है। दरअसल जूलियन स्मिथ ने कहा है कि, ‘अगर भारत चाहे तो नाटो के दरवाजे और ज्यादा जुड़ाव के लिए उसके लिए खुले हैं।’ साथ ही उन्होंने कहा है कि, ‘अगर भारत रूचि लेता है तो नाटो भारत के साथ और अधिक सहयोग के लिए तैयार है।’ ऐसे में आज हम जानेंगे कि आखिर नाटो क्या है और भारत क्यों इसका सदस्य नहीं बनना चाहता है।
नाटो क्या है?
दरअसल दक्षिण अटलांटिक संधि संगठन यानि नाटो असल में 30 देशों का एक समूह है। यह संगठन राजनीतिक और सैन्य साधनों के माध्यम से अपने सदस्य देशों को सुरक्षा की ग्यारंटी देता है। इसकी स्थापना साल 1949 में हुई थी। इस संगठन का निर्माण द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ के यूरोप में विस्तार के खतरे को रोकने के उद्देश्य से किया गया था। इसकी स्थापना 12 देशों ने मिलकर की थी, उसके बाद अन्य देश इस संगठन में शामिल होते गए।
कैसे काम करता है नाटो?
दरअसल नाटो के किसी भी सदस्य देश पर आक्रमण पूरे नाटो संगठन पर आक्रमण माना जाता है। यानि अगर कोई देश नाटो के किसी सदस्य देश पर हमला करता है तो उस स्थिति में नाटो के सभी देश मिलकर उस हमले का जवाब देंगे। हालांकि अगर नाटो का ही कोई सदस्य देश किसी अन्य सदस्य देश पर हमला करता है तो इस स्थिति में नाटो कोई भूमिका नहीं निभाता है।
भारत नाटो में क्यों शामिल नहीं होना चाहता?
दरअसल भारत अपनी रक्षा जरूरतों के लिए रूस पर निर्भर है। ऐसे में अगर भारत नाटो में शामिल होता है तो रूस से उसकी दोस्ती पर असर पड़ना तय है। इसके अलावा अगर भारत नाटो का हिस्सा बनता है तो इस स्थिति में नाटो के सदस्य देश अपनी सेनाओं को भारत में भी भेज सकेंगे। ऐसे में यह भारत की संप्रभुता का उल्लंघन होगा। इसके अलावा नाटो का नियम है कि किसी सदस्य देश पर हमला होने की स्थिति में सभी सदस्य देश मिलकर जवाब देंगे। ऐसे में अगर भारत नाटो में शामिल होता है तो उसे बेवजह दूसरे देशों की लड़ाई का हिस्सा बनना पड़ सकता है।
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