आखिर चुनाव आयोग कैसे तय करता है किसको मिलेगा पार्टी चिन्ह? Syed Dabeer Hussain - RE
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आखिर चुनाव आयोग कैसे तय करता है किसको मिलेगा पार्टी चिन्ह?

Priyank Vyas

राज एक्सप्रेस। महाराष्ट्र में चल रही सियासी हलचल हर दिन एक नया मोड़ लेती नजर आ रही है। राष्ट्रीय कांगेस पार्टी के नेता अजित पवार की बगावत के बाद से ही पार्टी दो गुटों में बंटती दिखाई दे रही है। जहां एक तरफ अजित पवार पार्टी पर अपना दावा ठोंक रहे हैं। तो वहीं महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम शरद पवार भतीजे अजित पवार से एनसीपी को बचाने के लिए खुलकर सामने आए हैं। दोनों गुटों के द्वारा पार्टी पर अपना दावा मजबूत किया जा रहा है और इसी सिलसिले में गुटों की बैठकें भी चल रही है। ऐसे में लोगों के मन में यह सवाल आ रहा है कि आखिर यह कैसे तय किया जाता है कि पार्टी किसकी होगी? और चुनाव चिन्ह किसके हिस्से में आएगा? चलिए हम बताते हैं विस्तार से।

चुनाव आयोग कैसे करता है फैसला?

दरअसल जब किसी पार्टी में मतभेद होता है और पार्टी को लेकर चुनाव आयोग के समक्ष दावा पेश किया जाता है। तब चुनाव आयोग द इलेक्शन सिंबल्स ऑर्डर, 1968 के पैरा 15 के अनुसार यह फैसला करता है कि पार्टी का चिन्ह किसका होगा। इसके लिए सबसे पहले चुनाव आयोग पार्टी में निर्णय लेने वाली कमेटी में किस गुट के कितने सदस्य हैं? और किस गुट में सदस्यों की संख्या कितनी है? यह देखता है। इसके बाद वह चुने हुए विधायकों, सांसदों के समर्थन को देखते हुए अपना फैसला सुनाता है।

स्थिति साफ नहीं होने की स्थिति में क्या होता है?

हालांकि जब चुनाव आयोग के सामने ऐसी परिस्थिति आ जाती है जब यह साफ़ नहीं हो पाता कि समर्थन किस गुट के पास अधिक है। ऐसे में चुनाव आयोग विधायकों और सांसदों का बहुमत देखकर अपना फैसला सुनाता है। यदि वर्तमान स्थिति को देखें तो जहां एक तरफ अजित पवार के पास 32 विधायकों का समर्थन मिलता नजर आ रहा है। तो वहीं शरद पवार कुल 14 विधायकों के समर्थन के साथ खड़े हुए हैं। ऐसे में चुनाव आयोग उनके दावे पर तब विचार करेगी जब उनके समर्थन में अधिक विधायक आते हैं।

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